बत्तियों से पंक्चर हो गई है रात
battiyon se pankchar ho gai hai raat
बा. सी. मर्ढेकर
Ba. Si. Mardhekar
बत्तियों से पंक्चर हो गई है रात
battiyon se pankchar ho gai hai raat
Ba. Si. Mardhekar
बा. सी. मर्ढेकर
और अधिकबा. सी. मर्ढेकर
गो कि बत्तियों से पंक्चर हो गई है रात
फिर भी कोई अँधेरे में करता है पंप।
हँसने का पागलपन सवार है
फिर भी रह-रह के भौंकते हैं आँसू।
फट्ट से रबर-जैसी रात ये बैठ गई
और इस वक़्त,
दूसरा टायर भी नहीं है पास।
मन पर जमी हुई पपड़ियों की राशियों को
कुत्ते चाटते हैं।
जिससे बन पड़े, वह अपने-अपने
कंधों पर ढो ले रात,
पलकों को आँखों पर ओढ़े,
वह भी हँसते मुँह से
रबर की पंक्चर हुई रात में
भौंकते हैं रबर के ही श्वान।
- पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 147)
- रचनाकार : बा. सी. मर्ढेकर
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
- संस्करण : 1965
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