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बनी-बनाई धारणाओं से बेपरवाह बबूल

bani banai dharnaon se beparwah babul

अर्पण कुमार

अर्पण कुमार

बनी-बनाई धारणाओं से बेपरवाह बबूल

अर्पण कुमार

और अधिकअर्पण कुमार

    धान के लहलहाते खेत के किनारे

    मुस्तैदी से खड़ा है बबूल

    छोटे पत्तों और

    पीले फूलों के साथ,

    उसकी संपदा में शामिल हैं

    ख़ूब स्वस्थ और लंबे काँटे

    जो ओझल रहते हैं

    दूर से

    अमूमन हमारी दृष्टि से

    मगर जो गहरे धँसे हैं

    हमारे अवचेतन में,

    अपनी क्षमता भर

    छाया भी दे रहा है वह

    जिस ओर हमारा ध्यान

    अमूमन कम जाता है,

    गोंद हो या दातून

    बबूल ने बनाई रखी है

    अपनी उपयोगिता,

    बबूल बीच में जाते हैं

    खेत और पानी के

    रोकते हैं यथाशक्ति

    खेतों के कटाव को

    हम जो मानें

    मगर, हरे-पीले धान

    हरे-पीले बबूल को

    अपना अभिभावक

    मानते हैं

    कभी माना गया

    बबूल को विष्णु-निवास

    और

    इसके काटने को महापाप,

    तुलना में रखकर आम की

    उपहास भी उड़ाया गया उसका

    बनी-बनाई

    अच्छी-बुरी हमारी धारणाओं से

    बेपरवाह बबूल

    मदमस्त और उल्लसित दृश्यमान हैं

    निकटवर्ती और सुदूर

    कई-कई अंचलों में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अर्पण कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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