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बैलगाड़ी

bailagaड़i

सोमप्रभ

सोमप्रभ

बैलगाड़ी

सोमप्रभ

और अधिकसोमप्रभ

    एक दृश्य घट रहा है

    इस दृश्य के भीतर कई बैल गन्ने से लदी

    गाड़ियाँ खींच रहे हैं

    और पहिए

    घड़ियों के बरअक्स

    और अंकों की भाषा में नहीं

    अपनी ध्वनि में वक़्त का बयान कर रहे हैं

    पहिए घूमते हैं

    सारी रात आवाज़ करते हैं

    एक पहिया ऐसी ध्वनि देता है

    जैसे कोई निरंतर विलाप करता चला जा रहा है

    दूसरा पहिया घूमता है

    और बैलों की फुँफकार से संगत करता है

    एक पहिया चूँ से निकलने वाली

    आवाज़ें कई मात्राओं के साथ

    निकालता है

    एक बैलगाड़ी बड़ी सुरीली धुन के साथ

    धुँध में चलती चली जाती है

    एक पहिया बस घूमता है

    घड़ियाँ इस तरह समय को व्यक्त नहीं करतीं

    और अपदस्थ हो जाती हैं

    पहिए की ऐसी आवाज़ों से पहले के क्षण में

    बैलगाड़ियाँ रुकी हैं

    और आदमी सोच रहा

    कि अबकी वहाँ पहुँचने तक

    कितना बचेगा गन्ना

    अबकी रास्ते में जबरन और माँगकर

    कितने गन्ने सरक जाएँगे बोदों से बाहर

    तौल मशीन कितना कम तौलेगी

    अबकी सारा रास्ता

    पहिए के किन क़िस्सों पर बीतेगा वक्त

    इस तरह बैलगाड़ियाँ

    चीनी बनाने के मौसम में

    रवाना हो रही हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सोमप्रभ
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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