एक
कच्चे रास्ते हैं
धूल और कीचड़ से भरे टूटे-फूटे ऊँचे-नीचे
मुख्य सड़क के बग़ल से फूटते हुए
आठ लेन की चमचमाती सड़क से कट कर कहीं खो जाते हैं
कभी उन पर बैलगाड़ी दिखती है
बुग्गी, भैंसे पर लुढ़कती हुई
ताँगा जिसे खींच रही है भूरे रंग की घोड़ी
गाभिन है
वह एक खच्चर की माँ बनेगी
मेहनती खच्चर जिसकी यौन आवश्यकताएँ शून्य होंगी
मुख्यधारा के लिए ढोएगा गाँवों से गुड़, सब्ज़ वग़ैरह
मुख्य पर जब कोई पहुँचता है पार कर उप की जकड़बंदी
पहले तो रपट जाता है
सोलह पहियों पर दौड़ता ट्रक ढो रहा है
पहाड़ों के करीने से कटे मांस के बड़े-बड़े टुकड़े
पीछे-पीछे पेड़ों के शव हैं उनकी उम्र कच्ची है
बत्तीस पहियों पर लेटे हैं एक दूसरे पर
अब उसे इसी विश्वात्मा में रहना है
इसी वसुधैव कुटुंब में उसे अपनी मड़इया डालनी है
इतना बड़ा विश्वास मत
और कहाँ वह कु-मति
बिसरा देनी है बोली-बानी
परब उपपूजाएँ
सह संस्कृतियों के लिए कोई जगह नहीं है
इस भूमंडलीकृत वैश्वीकरण में
जो अलग हैं वे दुर्घटनाओं के संभावित प्रक्षेत्र हैं
जब इतना विशाल बहुमत
तो शोर और चमक भी बहुमत
बातें भी बहुमत
विवाद बहुमत
खाना पहनना चलना बैठना पढ़ना सुनना सोना देखना लिखना छपना
बहुमत
चुप अल्पमत
बहुमत में इस तरह घुसते चले आते हैं अल्पमत
विराट में शून्य शून्य और शून्य
हम बहुमत का सम्मान करते हैं
अल्पमत कृपया बहुमत आने तक शांत रहें
बहु मत
बहु मत
बहु मत।
दो
जो बहुमत के साथ नहीं हैं
कृपया यहाँ से प्रस्थान करें
करें प्रस्थान
जाओ यहाँ से
जब पचास प्रतिशत से अधिक लोग
जो कि बहुमत होते हैं
प्रचंड होते हैं
पाँच साल के लिए मुहर लगा दिए हैं
तो तुम यहाँ क्या कर रहे हो?
लोकतंत्र है
तो इसका मतलब क्या
कुछ भी बोलोगे
लिखोगे
करोगे राष्ट्र का अपमान?
आपकी बात का कोई मतलब नहीं है
जितना कहा जा रहा है उतना करो
और सुन बे
उतना ही करियो।
तीन
एकमत इस पर एकमत हैं कि अब वे बहुमत में हैं
वे हर जगह हैं
बस में ट्रेन में रेस्त्राँ में
अख़बारों में टी.वी. में सीरियल में फ़िल्मों में
गिरहकट और हत्यारों में भी
यहाँ तक कि सुबह की सैर को निकले ढलती उम्र के थके घुटनों में भी
झुकिए थाली पर कौर उठाने को
खड़ा जैसे आपको घूर रहा हो एकमत
बातें कीजिए मत जानकर
डपट जाने का डर है
गली से गुज़रते हुए बहुत से एकमत देखते हैं आपको
फुसफुसाते हैं
फिर हँसते हैं
चौराहे पर तो रास्तों का मतांतर है
ट्रैफ़िक पुलिस ने हाथ से इशारे करते हुए हुड़का
दाएँ बाजू से निकलो
सभा में पीछे की ओर चुप बैठ सुन रहा था एकमत की दहाड़
आप ताली नहीं बजा रहे हैं
एक कार्यकर्ता ने चेतावनी दी
सब्ज़ ख़रीदते हुए किसी बिसरे फल का जब मैंने नाम लिया
इसे लीजिए
आजकल सब यही खा रहे हैं
एक अल्प का पीछा करते तमाम एक
दर्ज करते हुए उसके एक-एक शब्द
भोज भात में यह किसके साथ खड़ा था
इसके घर कितनी बार अल्पमत की डोर बेल बजती है
यह जो किताब इसने ख़रीदी है
पता करो इसका कौन है लेखक?
मुनादी फिर रिक्शे पर बज रही है
न जाने ज़िल्लेइलाही क्या नया पैग़ाम देंगे!
- रचनाकार : अरुण देव
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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