बहनों और भाइयों
bahnon aur bhaiyon
बहनों और भाइयों
मैं कोई नेता नहीं
न भाषणकर्त्ता हूँ
मैं आप से वोट माँगने नहीं आया
क्योंकि मैं न ‘आयाराम’ हूँ
न ‘गयाराम’।
मैं सुरमा बेचने नहीं आया
और ना ही मेरे पास पीड़ा का कोई पाँचवर्षीय इलाज है
जिस दवा को खाकर आप शिकवा करें
कि रोग बढ़ता गया दवा खाते खाते।’
मैं कोई जादूगर भी नहीं
जो चाटों-वाटों की एक ही थैली से
आप को ‘O’ और ‘R’ निकालकर दिखा सकें।
मैं सपेरा भी नहीं
क्योंकि मेरा सर्प मुद्दत से बे-जान है, मुर्दा जैसा
जिस पर विटामिन का या बीन का कोई कोई असर नहीं होता
मेरा नाम संग्राम है
(यह सालगराम भी हो सकता था)
पर विश्वास दिलाता हूँ
कि मैं कोई हड़ताली नहीं
ना नक्सलबाड़ी हूँ
इंक़लाब मेरा धंधा नहीं
इंक़लाब से पहले दो चीज़ों की ज़रूरत होती है-
नए नारे की।
घोर संकट की।
मेरे पास कोई नया नारा नहीं
और पिछले बीस वर्षों में
आप सारे पुराने नारे भोग चुके हो।
संकट है, पर गंभीर नहीं
क्योंकि आप भाना (भाणा) मानने के आदी हो
और यह आदत सुरक्षित रखती है
आत्म को अनात्म से
साधु को चोर से
विश्वास को शंका से
और राजा को रंक से
इंक़लाब के बाद ज़रूरत होती है
एक वाद की
जो सारे विवाद को हज़्म कर सके
पर मेरे पास तो वेदना है, वाद नहीं।
आप पूछोगे कि आख़िर मैं कौन हूँ
यदि मैंने कहा कि
मैं इंसान हूँ
आप हँस दोगे
यदि कहूँ कि मैं चोर हूँ
तो आप फिर भी हँसेगे
यदि कहूँ, मैं आपके चरणों की धूल हूँ
आप समझोगे मैं कोई भिखारी हूँ
यदि कहूँ
कि मैं ‘मैं’ हूँ
तो दोष लगाओगे कि मैं ‘मनमुख’ हुँ।
ख़ैरअन्ततः बात यह है
कि मैं माइक्रोफोन ठीक करने आया हूँ।
यह माइक्रोफोन भी बड़ी विचित्र वस्तु है
भाषणकर्त्ता के अर्थ अपने पास रख लेता हूँ
और शब्द आपको प्रसारित करता हूँ
आप शब्दों पर भी मुग्ध हो जाते हो
भले गुरुद्वारे में बैठे हों
या जुलूस में।
मालिक हो
मुझसे अधिक जानते हो
'मैं मुरख की केतक बात है।’
- पुस्तक : मेरी प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 34)
- रचनाकार : जसबीर सिंह आहलूवालिया
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2002
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