कहते हैं कोस भर चलते ही पानी
का आस्वाद बदल जाता
पग थोड़ा और बढ़ाते ही
बोलियाँ, भाषाएँ नवीन रूप में
ठिठोली करते
हुए गले लगती हैं;
एक सखी दूर किसी गिरि शृंखलाओं की तस्वीरें भेज कहती है चित्त को स्वस्थ करने
यहाँ की बदली ताज़ी हवा बहुत लाभप्रद है!
इस तरह बाज़ दफ़ा बदलाव की बातें कानों तक पहुँचती हैं!
पर शंकालु स्वभाव की प्रवृत्ति
इस शाश्वत परिवर्तन को स्वीकार्य मानते हुए
झिझकते हुए संभावनाएँ तलाशती है
कि बदलना इतना सत्य है तो चलो तलाशते
हैं वो दृष्टि जिसके सामने संस्कारों से लदी देह लिए हम साथ चलते हुए ठिठकें तो वे
क्रोधित होने के बजाए मुग्ध हो स्नेहसिक्त करें
इतनी घृणा के मध्य जब जीवन एक त्रासदी की तरह
घटित हो रहा है
फिर भी चाहती जब कभी तुम
पुकारो मेरा नाम तो
हवा महके और
साँस भरते हुए कुछ राहत की उम्मीद पाते ही आँखें मूँद इधर के बाशिंदों के होंठ बुदबुदा उठे अहा प्रेम!
जानते तो होगे ही प्रिय
हर काँधा दुःख को साथ-साथ लिए ही फिरता है
पक्के साथी की तरह
तो बदलाव कुछ देर को ही इतना हो कि
वो जो हमेशा रोता हुआ
मिलता है
थोड़ा मनबहलाव के लिए ही सही अबकी हँसी उसके अधर पर ठहरे देर तक
और जाते हुए अपनी उजास उसकी चौखट पर छोड़ जाए!
बदलाव हो तो बस अपने लिए सुख कि कामना करते हुए इस भरे संसार से दो पल का एकांत चुराते हुए मुख पर रत्ती भर भी
परिताप की छाया न पड़े!
- रचनाकार : भावना झा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.