बड़ी होती लड़कियों के लिए शोकगीत
baDi hoti laDakiyon ke liye shokagit
विशाल श्रीवास्तव
Vishal Shrivastava
बड़ी होती लड़कियों के लिए शोकगीत
baDi hoti laDakiyon ke liye shokagit
Vishal Shrivastava
विशाल श्रीवास्तव
और अधिकविशाल श्रीवास्तव
लड़कियाँ बड़ी हो जाती हैं
प्रायः कुछ जल्दबाज़ी में ही
वृद्धि के प्रतिमान और औसत ध्वस्त करती
सपनों की फैंटेसी में दुनिया में रेशम बुनने की उम्र
आती हैं छोड़
बासी होती मासूमियत पर
लावण्य का पर्दा ओढ़कर
निर्मम दुनिया की सतह पर
झिझक कर रख देती हैं पाँव
किसी मुश्किल मुहावरे-सी होती हैं लड़कियाँ
बोलने में आसान, समझने में मुश्किल
शब्दों-सी कठिन दुनिया का अभ्यास करतीं
लड़कियाँ पर्स में बची रेजगारी से
घर लौटने के किराए का हिसाब करती हैं
रोज़ अख़बार पढ़ते हुए
ख़ुद से जुड़ी ख़बरों को भूलने की करती हैं कोशिश
मायूसी से भरे निर्जन क्षितिज पर
उम्मीद जैसा कोई दुर्लभ शब्द तलाश करती लड़कियाँ
कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हैं
एकदम बदल जाती हैं लड़कियाँ।
- पुस्तक : पीली रोशनी से भरा काग़ज़ (पृष्ठ 27)
- रचनाकार : विशाल श्रीवास्तव
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2016
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