बाबर समरकंद के रास्ते पर है
समरकंद बाबर के रास्ते पर
बाबर हर थोड़ी दूर पर
पूछता है,
समरकंद अब कितनी दूर है?
बाबर को कोई जवाब नहीं मिलता।
ऊपर चिलचिलाती हुई धूप है
नीचे धूल है,
बाबर का घोड़ा चलने में मशग़ूल है।
समरकंद अब कितनी दूर है?
बाबर चिल्लाता है।
कोई जवाब नहीं—
केवल बाबर का घोड़ा हिनहिनाता है।
बाबर के पहले
बाबर की ख़बर पहुँच चुकी है,
रास्तों पर भीड़ है,
बाबर भीड़ के बीच से गुज़रता है—
‘ख़ुदा के लिए।’ बाबर गिड़गिड़ाता है।
‘समरकंद अब कितनी दूर है?’
बाबर का सवाल
बाबर के पास लौट आता है।
बाबर सिज़दे में झुकता है
शहर देख रुकता है,
‘समरकंद! समरकंद!’ बुर्ज़ देख
बाबर किलकारी भरता है।
‘समरकंद पीछे रह गया है!’
कहता हुआ शहरयार
बाबर के पास से गुज़रता है।
बाबर समरकंद के रास्ते पर है
समरकंद बाबर के रास्ते पर।
- पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 102)
- रचनाकार : श्रीकांत वर्मा
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 1992
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