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अयोध्या

ayodhya

आशुतोष प्रसिद्ध

क्षमा चाहूँगा

असमंजस में हूँ कि इसे क्या होना है?

आधुनिक होने हेतु प्राचीन

या प्राचीन होने हेतु आधुनिक

यह कौन-सा शहर है?

जिसे एक ही समय पर

आधुनिक और प्राचीन दोनों होना है?

दीपावली पर जो शहर भर में

भगवा ध्वज मढ़े गए थे

वे अब लाल हो रहे हैं

गिरते और टूटते घरों के गर्दो-गुबार से

सजावट की लाल-पीली-नीली रौशनी

काली पड़ गई है।

आधुनिक प्राचीनता

और प्राचीन आधुनिकता की शर्त पर

शहर के नवीनीकरण के लिए

मंदिरों को छोड़कर

अधिकतम पुराने को खदेड़

किया जा रहा बाहर

सनद रहे ,

मंदिर, अधिकतम पुराने में नहीं

न्यूनतम पुराने में आता है

कल लेबर चौराहे की भीड़ में

कोई लेबर कह रहा था

यह धाम सुंदर हो जाएगा

तो बहुत अच्छा दिखेगा

कोई कह रहा

धाम तो क़ब्ज़ा लेंगे

भगवा और पीले झंडे थामे लोग

और हमें भगा दिया जाएगा

हम कामगारों का यहाँ कोई नहीं है

हमको नहीं चाहिए

इनमें से कुछ भी

धाम, राम और नाम

हमको बस काम चाहिए काम

राम से पेट नहीं भरता

नहीं जलता चूल्हा

नहीं पकती रोटी

ख़ून बहता है बस ख़ून…

एक दूसरे लेबर ने उसे ज़ोर से डाँटकर कहा

तुम क्या जानो

लोगों को मिलेगा आराम

और आराम

इस सदी में सबसे ज़रूरी चीज़ है।

भीड़ से कोई धीरे से बोला—

‘इनसे तो अच्छे थे वाम’

कभी-कभी ही सही

मगर कहते तो थे—

अवाम

आ-वाम!

किसी बूढ़े मज़दूर ने तो यह तक कहा

बिक गए हैं सब ऊँचे दाम

छोड़कर राज-पाट का काम

दशरथ कर रहे हैं दिहाड़ी

सबके बीच जब मैंने

धीरे से क्षोभ भरे स्वर में

माथा पकड़े कहा—

‘हे राम’

सबने आश्चर्य से पूछा—

कौन-से राम?

कहाँ के राम?

नहीं जानते,

गिरते घरों के मलबे में दबकर मर गए राम

जिनका ले रहे हो नाम।

घर लौटा तो रोटियाँ डाँटकर बोलीं

ख़ामोशी से रहो और बस बोलो

काम

काम!

स्रोत :
  • रचनाकार : आशुतोष प्रसिद्ध
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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