अय दिल! तुझे हुआ क्या है?
ay dil! tujhe hua kya hai?
यहाँ कोई जन्म नहीं लेता
न आदमी, न औरत, न पशु, न पंछी
जो कुछ जीवित नज़र आ रहा है
वह एक गढ़ा हुआ सच है
देखो ये कितना बड़ा अचरज है
यहाँ बग़ावत का अर्थ अपनी तरह से पनपना है
और औरत को तो उगना भी मना है
वह, यहाँ केवल उगाने वाली बँधुआ है
अय दिल! पर तुम्हें क्या हुआ है?
तू तो इस मक्कारी में अच्छा भला है।
आस-पास आवाज़ें नहीं, चुभन हैं
जहाँ ख़ामोशी है
वहाँ भी उदासियों के ही जश्न हैं
जिधर वीराना उगा है
वहाँ ज़िंदगी के नाम पर धूल है
जहाँ घने जंगल बिखरे हैं
वहाँ बेतरतीबी के सूख हुए फूल हैं
प्यासा कोई नहीं है,
एक छटपटाता हुआ कुँआ है
अय दिल! पर तुम्हें क्या हुआ है?
तू तो इस अय्यारी में अच्छा भला है।
तारों पर झूली हुई हैं साँसें
छतों पर आत्महत्या के विचार घूम रहे हैं
कमरों के भीतर सोई है चरित्रहीनता
आदमी आईनों में ख़ुद को ही चूम रहे हैं
कुछ स्त्रियों में एक आक्रोश है
पर उसमें भी इतनी बनावट है कि
अक्सर उनके स्त्री होने पर ही संदेह हुआ है
अय दिल! पर तुम्हें क्या हुआ है?
तू तो इस ख़ुमारी में अच्छा भला है।
- पुस्तक : पूर्वग्रह 166-67 (पृष्ठ 185)
- संपादक : प्रेमशंकर शुक्ल
- रचनाकार : राहुल कुमार बोयल
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