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छिनमा केस मनई बदलि गवा,केस बरतै-बरत बुताइ गवा।

chhinma kes manii badali gava,kes baratai barat butai gava.

अनुज नागेंद्र

अनुज नागेंद्र

छिनमा केस मनई बदलि गवा,केस बरतै-बरत बुताइ गवा।

अनुज नागेंद्र

और अधिकअनुज नागेंद्र

    छिनमा केस मनई बदलि गवा,केस बरतै-बरत बुताइ गवा।

    सारा छल कपट भुलाइ गवा, लागत बा सतजुग आइ गवा।

    कुल ऊँचनीच कै भेद मिटा, सब जातपात भूलि गवा।

    सब इरखादोख भुलाइ गवा, सब खुराफ़ात भूलि गवा।

    ना धन दौलत कै फिकिरि अहै, जायदाद कै चिन्ता अब।

    ना कोट-कचहरी थाने मा, कौनो बिबाद कै चिंता अब।

    ना कौनौ चिंता फिकिरि अहै अब एहका भागा दौड़ी कै।

    मनई सच्चाई जानि गवा, लागत बा पइसा कौड़ी कै।

    सब बरहौ विंजन भूलि गवा, स्वाद जानिगा रोटी कै।

    सब मुर्ग मुसल्लम छूटि गवा, सब लज्जत भूला बोटी कै।

    ना गहना गीठी कै सिंगार, ना सूट बूट कै चिन्ता बा।

    ना एहका फिकिरि डकैती कै ना तनिक लूट कै चिंता बा।

    दुनिया कै माया मोह मिटी, सब अहंकार भा छू मंतर।

    मन दुरविचार से साफ भवा, सब कदाचार भा छू मंतर।

    कुछ तितिर बितिर भा रहें मुला अब घरभै साथे रहत अहैं।

    आपस की मेलमोहब्बत से सब सारा सुख-दुख सहत अहैं।

    सब सादा जीवन जियत अहैं, अबसब कै ऊँच बिचार अहै।

    आज मउत के बदले मा, सब मानइ का तइयार अहै।

    संस्कार कै बात करै, रामायन देखै टीबी मा।

    माई बाबू कै फिकिरि करै, दिन काटै बच्चा बीबी मा।

    ना चाईं-चुंगली करत अहै ना बइठा तेरह राज पढ़ै।

    घरहिंन मा पूजापाठ करै, घरहिंन मा रोज नमाज़ पढ़ै।

    दान-धरम मू लौटि आइ, दूसरे कै दुख बाँटत बा।

    जेहकै जेतनी सामरथि अहै,मिलि दुख कै बदरी छाँटतबा।

    अब आँखि खुली बा मनई के, अब एका एहसास भवा।

    हर मंदिर-महज़िद से बढ़िके,बा अस्पताल बिसुवास भवा।

    येहि परलैअउर मुसीबत मा जिउ होमे पुलिस जवानखड़ा।

    चारिउ मू नर्स डाक्टर तौ जइसे बनिके भगवान खड़ा।

    सब मंदिर महजिद बंद अहैं,सब ईश्वर अल्ला खिन्न अहैं।

    कलमा-रामायन बंद अहै, पंडित-मोलबी उच्छिन्न अहैं।

    जौ प्रकिति रूठि गै दुनिया से तौ सबकै बाका बन्द भवा।

    देबी देउता, धरम-करम चारिउ मू नाका बंद भवा।

    हर जीव बराबर धरती कै मालिक का सबइ पियार अहैं।

    इनका जौ कटब्या तुहूँ बरे, पँहटे मालिक तलवार अहैं।

    एहि बरे जीव पै दया करा, चारिउ मू पेड़ लगावा तू।

    मार-काट सब बंद करा, सबसे अपनत्व जतावा तू।

    अब मिलिजुलि के संकलप करा हम रहब हमेसा साथे मा।

    अपनी करनी से टीकि देब चंदन भारत के माथे मा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुज नागेंद्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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