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भइया हम सिच्छामित्र अही

bhaiya hum sichchhamitr ahi

अनुज नागेंद्र

अनुज नागेंद्र

भइया हम सिच्छामित्र अही

अनुज नागेंद्र

और अधिकअनुज नागेंद्र

    सब हेयदृष्टि से अस चितवयँ जइसे मनई अपवित्र अही।

    भइया हम सिच्छामित्र अही।

    हम गली मोहल्ला जाइ-जाइ शिक्षा कै अलख जगाई थै।

    लरिकन का प्रेरित कइ-कइ के स्कूले तक लै आई थै।

    'सब पढ़यँ' अउर 'सब बढ़यँ' पाठ लगातार दोहराई थै।

    'शिक्षा अभियान' कै नारा मा, कोखा से जोर लगाई थै।

    हम जिउ लगाइ के कक्षा मा सब आपन पाठ पढ़ाई थै।

    मेहनत जिम्मेदारी से कब आपन जिव छटकाई थै।

    यानी की एहि नौकरी बरे, हम नाकन चना चबाई थै।

    तौ कइसेउ एक महीना तक दुइ जूनी रोटी पाई थै।

    आदर्स रूप हम सिच्छक कय, सौ प्रतिसत धवल चरित्र अही।

    भइया हम सिच्छामित्र अही।

    वोहकय करनी हम काउ कही जे पूरा वेतन पावत बा।

    के केतने बजे से आवत बा के केतना मज़ा उड़ावत बा।

    जे शिक्षक परमानेंट अहै, समझय आपन दास हमैं।

    दिन-रात सुनावत रहा करय आपन फर्जी बकवास हमैं।

    जेतना सरकारी हुकुम होय सबकय हम पालन करा करी।

    विद्यालय की सारी गतिविधि कै मन से संचालन करा करी।

    ना तौ तनखाह बराबर बा, ना तौ सम्मान बराबर बा।

    अपने भविष्य की चिंता मा बस अटकी जान बराबर बा।

    सिच्छा की फोटोग्राफी मा पेंसिल से खींचा चित्र अही।

    भइया हम सिच्छामित्र अही।

    जब कम पइसा मा काम केहे तौ हम सिच्छक कै पात्र

    भये।

    मुल जइसेन हक कै बात केहे हम घोसित भाय अपात्र भये।

    नेता मंन्त्रिव कै जै बोले सबके उप्पर बिसवास केहे।

    फिर एनके हा हा छू छू मा जीवन कै सत्यानास केहे।

    अध्यापक भाइव के मुँह से हम एक सहायक कहा गये।

    जब साथ संग कै बात चली तौ हम नालायक कहा गये।

    कुल कोट-कचहरी दौड़ि-धूपि देखे कुलतू खुदगरजी बा।

    सबकय हम देखे दया-मया सबकय अस्वासन फरजी बा।

    अब तौ सबका गंधात अही केहु कहतय नहीं कि इत्र अही।

    भइया हम सिच्छामित्र अही।

    सरकार देखाइस एक सपना मुल बेरहमी से तोरि दिहिस।

    पहिले अँधरे का आँखि दिहिस फिर दुइनव आँखी फोरि दिहिस।

    येहि चकाचौंधि मा लाखन कै अरमान टूटिगा, छला गयेन।

    कुछ करजा-रिन मा डूबि गयेन, कुछ लोग रसातल चला गयेन।

    कुछ जने तौ ओवरऐज भयेन कुछ जने येही मा भटकि गयेन।

    कुछ जने येही सब सदमा मा आखिर फांसिव पै लटकि गयेन।

    हम हिम्मत कइके लड़त अही देइहैं हमरिउ मू कान कबौ।

    एतना निष्ठुर तौ अहैं नहीं, सुनिहैं हमरौ भगवान कबौ।

    आखिर हमहूँ सब वोनहीं कै संरचना 'अनुज' बिचित्र अही।

    भइया हम सिच्छामित्र अही।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुज नागेंद्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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