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औरतें

aurten

उदय प्रकाश

और अधिकउदय प्रकाश

    वह औरत पर्स से खुदरा नोट निकाल कर कंडक्टर से अपने घर

    जाने का टिकट ले रही है

    उसके साथ अभी ज़रा देर पहले बलात्कार हुआ है

    उसी बस में एक दूसरी औरत अपनी जैसी ही लाचार उम्र की दो-तीन

    औरतों के साथ

    प्रोमोशन और महँगाई भत्ते के बारे में बातें कर रही है

    उसके दफ़्तर में आज उसके अधिकारी ने फिर मीमो भेजा है

    वह औरत जो सुहागन बने रहने के लिए रखे हुए है करवाचौथ का निर्जल व्रत

    वह पति या सास के हाथों मार दिए जाने से डरी हुई सोती-सोती अचानक चिल्लाती है

    एक औरत बालकनी में आधी रात खड़ी हुई इंतज़ार करती है

    अपनी जैसी ही असुरक्षित और बेबस किसी दूसरी औरत के घर से लौटने वाले अपने शराबी पति का

    संदेह, असुरक्षा और डर से घिरी एक औरत अपने पिटने से पहले

    बहुत महीन आवाज़ में पूछती है पति से—

    कहाँ ख़र्च हो गए आपके पर्स में से तनख़्वाह के आधे से ज़्यादा रुपए?

    एक औरत अपने बच्चे को नहलाते हुए यों ही रोने लगती है फूट-फूटकर

    और चूमती है उसे पागल जैसी बार-बार

    उसके भविष्य में अपने लिए कोई गुफा या कोई शरण खोजती हुई

    एक औरत के हाथ जल गए हैं तवे में

    एक के ऊपर तेल गिर गया है कड़ाही का खौलता हुआ

    अस्पताल में हज़ार प्रतिशत जली हुई औरत का कोयला दर्ज कराता है

    अपना मृत्यु-पूर्व बयान कि उसे नहीं जलाया किसी ने

    उसके अलावा बाक़ी हर कोई है निर्दोष

    ग़लती से उसके ही हाथों फूट गई क़िस्मत और फट गया स्टोव्ह

    एक औरत नाक से बहता ख़ून पोंछती हुई बोलती है

    क़सम खाती हूँ, मेरे अतीत में कहीं नहीं था प्यार

    वहाँ था एक पवित्र, शताब्दियों लंबा, आग जैसा धधकता सन्नाटा

    जिसमें सिंक रही थी सिर्फ़ आपकी ख़ातिर मेरी देह

    एक औरत का चेहरा संगमरमर जैसा सफ़ेद है

    उसने किसी से कह डाला है अपना दुख या उससे खो गया है कोई ज़ेवर

    एक सीलिंग की कड़ी में बाँध रही है अपना दुपट्टा

    उसके प्रेमी ने सार्वजनिक कर दिए हैं उसके फोटो और पत्र

    एक औरत फोन पकड़ कर रोती है

    एक अपने आपसे बोलती है और किसी हिस्टीरीया में बाहर सड़क पर

    निकल जाती है

    बिना बाल काढ़े बिना किन्हीं कपड़ों के

    कुछ औरतें बस अड्डे या प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ी हैं यह पूछती हुई

    कि उन्हें किस गाड़ी में बैठना है और कहाँ जाना है इस संसार में

    एक औरत हार कर कहती है—तुम जो जी आए, कर लो मेरे साथ

    बस मुझे किसी तरह जी लेने दो

    एक पाई गाई है मरी हुई बिल्कुल तड़के शहर के सी पार्क में

    और उसके शव के पास बैठा रो रहा है उसका डेढ़ साल का बेटा

    उसके झोले में मिलती है दूध की ख़ाली बोतल, प्लास्टिक का छोटा-सा गिलास

    और एक लाल-हरी गेंद जिसे हिलाने से आज भी आती है घुनघुने जैसी आवाज़

    एक औरत जो तेज़ाब से जल गई है ख़ुश है कि बच गई है उसकी दाईं आँख

    एक औरत तंदूर में जलती हुई अपनी उँगलियाँ धीरे से हिलाती है

    जानने के लिए कि बाहर कितना अँधेरा है

    एक पोंचा लगा रही है

    एक बर्तन माँज रही है

    एक कपड़े पछींट रही है

    एक बच्चे को बोरे पर सुलाकर सड़क पर रोड़े बिछा रही है

    एक फ़र्श धो रही है और देख रही है राष्ट्रीय चैनल पर फ़ैशन परेड

    एक पढ़ रही है न्यूज़ कि संसद में बढ़ाई जाएगी उनकी तादाद

    एक औरत का कलेजा जो छिटक कर बोरे से बाहर गिर गया है

    कहता है—मुझे फेंक कर किसी नाले में जल्दी लौट आना,

    बच्चों को स्कूल जाने के लिए जगाना है

    नाश्ता उन्हें ज़रूर दे देना, आटा मैं गूँथ आई थी

    राजधानी के पुलिस थाने के गेट पर एक-दूसरे को छूती हुईं

    ज़मीन पर बैठी हैं दो औरतें बिल्कुल चुपचाप

    लेकिन समूचे ब्रह्मांड में गूजता है उनका हाहाकार

    हज़ारों-लाखों छुपती हैं गर्भ के अँधेरे में

    इस दुनिया में जन्म लेने से इंकार करती हुई

    वहाँ भी खोज लेती हैं उन्हें भेदिया ध्वनि तरंगें

    वहाँ भी, भ्रूण में उरती है हत्यारी कटार।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रात में हारमोनियम (पृष्ठ 31)
    • रचनाकार : उदय प्रकाश
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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