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औपचारिकता का परिवेश

aupacharikta ka pariwesh

जगदीश चतुर्वेदी

जगदीश चतुर्वेदी

औपचारिकता का परिवेश

जगदीश चतुर्वेदी

और अधिकजगदीश चतुर्वेदी

    हम सब कितने औपचारिक ढंग से मिलते हैं

    अपनी पत्नी से, अपनी प्रेमिका से

    अपने दोस्तों से, अपने अधिकारी से

    खीसें निपोरकर, गला दबाकर

    बनाई गई आवाज़ में।

    हम सब बहुत-बहुत खीझे रहते हैं

    अपने पड़ोसी के व्यवहार से

    अपने बस कंडक्टर की गुस्ताख़ी से

    और हमेशा कोसते रहते हैं अपनी बीवियों को

    जिनने हमें कायर बनाया।

    हर शादीशुदा मर्द कायर है

    हर शादीशुदा स्त्री फ्रस्ट्रेटेड है

    क्योंकि वह एक दूसरे को प्यार नहीं करते

    क्योंकि वह एक दूसरे को हेय समझते हैं

    क्योंकि उन्हें पास रहने से एक दूसरे की

    कमियाँ ही दिखाई देती हैं।

    हर मर्द ख़रगोश की तरह चुप है

    हर औरत बिल्ली की तरह ख़ूँख़्वार है

    औपचारिकता के परिवेश में

    सोचते रहते हैं एक दूसरे को

    ज़हर देने की बात

    निष्कर्ष :

    हर औरत अपने पति से घृणा करती है

    हर मर्द अपनी पत्नी को तलाक़ देना चाहता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विजप (पृष्ठ 57)
    • रचनाकार : जगदीश चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 1967

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