अस्सी का दौर और एक अव्यक्त रिश्ते से गुज़रते हुए
assi ka daur aur ek awyakt rishte se guzarte hue
रश्मि भारद्वाज
Rashmi Bhardwaj
अस्सी का दौर और एक अव्यक्त रिश्ते से गुज़रते हुए
assi ka daur aur ek awyakt rishte se guzarte hue
Rashmi Bhardwaj
रश्मि भारद्वाज
और अधिकरश्मि भारद्वाज
जबकि हममें से कइयों को इस बात पर भी दुविधा हो सकती है
कि हम प्रेम की संतानें हैं या नफ़रत की
या किसी रात एक दिनचर्या या अनिच्छा से ही गुज़रते हुए हमें सँजो लिया गया अपने गर्भ में
जबकि पुरानी, रंग उड़ी तस्वीरों के अलावा
हमने कभी नहीं देखा उन्हें फिर एक दूसरे की आँखों में झाँकते हुए
या हाथों में हाथ डाले समंदर से गलबहियाँ करते
जबकि कई बार हमें यह लगता रहा कि यह घर हमारे होने से ही घर बना हुआ है
और जो हम हटा दिए जाएँ तो दो लोगों के साथ रहने की कोई वजह बाक़ी नहीं रह जाएगी
जबकि हमने कभी नहीं सुना कि उन्होंने कहा एक दूसरे से, तुम्हारे बिना नहीं है मेरा वजूद
बल्कि रोज़-रोज़ की बहसों से तंग आकर कई बार सोचा और कहा भी कि
छोड़ क्यों नहीं देते आप लोग एक दूसरे को!
वे साथ बने ही रहे
बल्कि यह भी होता रहा कि कभी दूर होने पर हर शाम
सुनाई जाती रही एक दूसरे को दिन भर की हर घटना फ़ोन पर
फ़्रिज और आलमारी में रखी चीज़ें याद दिलाई जाती रहीं
लौटती के टिकट की तिथि पूछी जाती रही
लेकिन यह नहीं कहा गया कि तुम्हारे बिना घर ख़ाली-सा लगता है
यह भी कभी नहीं हुआ कि हमारे बचपन में हमें ही लिपटा कर ढेर सारे चुम्बन दिए गए हों
कहा गया हो कि तुम लोग आँखों के नूर हो
और एक दूसरे को आँखों ही आँखों में शुक्रिया कहा गया हो
हमारे लिए प्रेम हमेशा अव्यक्त ही रहा
लेकिन हम आज भी जानते हैं यह बात मन ही मन में
कि जो अव्यक्त है वही सबसे सुंदर है
अब जबकि हम उनके साथ नहीं हैं
जबकि कहा नहीं जाता होगा अब भी कोई शब्द
जिससे प्रेम जैसी कोई गंध आती हो
वे अब तक साथ बने हुए हैं
हमें यह विश्वास करने के लिए बाध्य करते हुए
कि प्रेम कुछ-कुछ ऐसा ही दिखता होगा।
- रचनाकार : रश्मि भारद्वाज
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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