अर्थ शब्दों में नहीं तुम्हारे भीतर है
arth shabdo.n me.n nahii.n tumhaare bhiitar hai
मोहन राणा
Mohan Rana
अर्थ शब्दों में नहीं तुम्हारे भीतर है
arth shabdo.n me.n nahii.n tumhaare bhiitar hai
Mohan Rana
मोहन राणा
और अधिकमोहन राणा
मैं बारिश में शब्दों को सुखाता हूँ
और एक दिन उनकी सफ़ेदी ही बचती है
जगमगाता है बरामदा शून्यता से
फिर मैं उन्हें भीतर ले आता हूँ
वे गिरे हुए छिटके हुए क़तरे जीवन के
उन्हें चुन जोड़ बनाता कोई अनुभव
जिसका कोई अर्थ नहीं बनता
बिना कोई कारण पतझर उनमें प्रकट होता
बाग़ की सीमाओं से टकराता
कोई बरसता बादल,
दो किनारों को रोकता कोई पुल उसमें
आता जैसे कुछ कहने,
अक्सर इस रास्ते पर कम ही लोग दिखते हैं
यह किसी नक़्शे में नहीं है
कहीं जाने के लिए नहीं यह रास्ता,
बस जैसे चलते-चलते कुछ उठा कर साथ लेते ही
बन पड़ती कोई दिशा
जैसे गिरे हुए पत्ते को उठा कर
कि उसके गिरने से जनमता कोई बीज कहीं
- रचनाकार : मोहन राणा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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