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आपदा में अवसर

apada mein awsar

ऋतेश कुमार

ऋतेश कुमार

आपदा में अवसर

ऋतेश कुमार

और अधिकऋतेश कुमार

    बाबा कहते थे :

    अँधेरी रातों में

    काली शक्तियाँ हो जाती हैं जाग्रत

    ओझा-औगुन सिद्धि के लिए

    इंतज़ार करते हैं सबसे काली रात का

    आजी कहती हैं :

    पहले जब कच्ची दीवारों के मकान थे

    सेंध मार देते थे चोर

    अँधरिया में चोरी-चकारी बढ़ जाती है

    बच्चों से कहती हैं

    इधर-उधर मत जाना अँधेरी रात में

    कीड़ा काट खाएँगे

    काकी ने बताया था :

    तब मेरा जन्म नहीं हुआ था

    पड़ा था भयंकर अकाल

    स्कूलों में आता था गेहूँ सरकारी

    जदूननन सिंह मास्टर

    रख लेते थे अपने घर

    बेचते थे बोरा का बोरा छिपा के

    आँख घुमा के उन्होंने शरारत से कहा

    तोर काका भी कर लेता था जुगार

    उसमें से एकाध बोरा का

    अकाल में काम जाता था

    पिता जी ने बताई हैं कई कहानियाँ

    कैसे सूखल मिसिर ने

    ज़मीन हथिया लिया था सस्ते में

    चनेसर साह का

    जब उसके बाप हो गए थे बीमार

    बर्बाद हो गया था इलाज कराते

    और एक दिन खड़े बैल मर गया था बिचारे का

    गाँववालों की दबी ज़ुबान में

    फँसी रहती है

    मोहनी के मरने की कहानी

    अकेली पाकर

    जगेसर तिवारी ने लूट ली थी उसकी अस्मत

    चमटोली वाले आज भी कसमसाते हैं

    पर पुलिस-क़ानून सब ख़िलाफ़ हैं उनके

    मँगरू काका कहते हैं :

    बबुआ,

    अजब चाल है जग का

    सब रहता है मौक़ा का तलास में

    जैसे किसी पर आता है विपद

    आँख में सियार मुस्कराने लगता है इनके

    बताओ भला जन कहाँ जाए बचके

    इस आफ़त से

    मँगरू काका का बेटा

    अभी-अभी आया है दिल्ली से

    सत्रह सौ किलोमिटर चलकर पैदल

    बहू-बेटी को साथ लिए

    मँगरू काका ने

    अभी-अभी रखी है ज़रपेशगी

    अपनी ज़मीन

    सुरेंदर पाँड़े के यहाँ

    स्रोत :
    • रचनाकार : ऋतेश कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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