स्वतंत्रता की अधिकता से उपजती है उच्छृंखलता
यांत्रिकता लील जाती है स्वाभाविकता को
गतिशीलता क्षीण होकर जड़ता बन जाती है
अश्लीलता से पुष्ट होती है कुरूपता
जीवन सिर्फ़ आस्था और तर्क से नहीं चलता
कोई सिद्ध मंत्र और गणितीय सूत्र भी नहीं
जिससे हल हो जाएँ सारी समस्याएँ
विचारों की बौछार से सूख जाता है दर्शन
स्थापनाओं में कहीं पीछे छूट जाता है सत्य
दृष्टांतों के बोझ तले टूट जाती है प्रामाणिकता
क़ानून से अधिकारों की रक्षा होती है
क़ानून में ही उड़ाई जाती हैं उसकी धज्जियाँ
निर्णय से न्याय की उम्मीद होती है
निर्णय में ही होती है अन्याय की प्रबल संभावना
अतियों से बर्बाद हो जाता है सुख
अतियों में ही संगठित होते हैं दुःख
अनुशासन एक दुर्लभ फूल है काँटों से घिरा
मनुष्य मात्र धैर्यपूर्वक हो सकता है उसका संगी
वह एक सौंदर्य है–जीवन के लिए–एक गुण
आधिक्य से भटक जाती है उसकी यात्रा
आधिक्य में ही रूपांतरित हो जाता है वह कट्टरता में
द र अ स ल
‘कहीं से कहीं तक होकर’ भी वह ‘नहीं है’
यह सृष्टि कितनी अनुशासित है
और कितनी अनुशासनहीन
धर्म बहुत अनुशासित होकर
अधर्मियों का रक्षक बन जाता है
भक्ति बहुत अनुशासित होकर
बन जाती है करुणा की शत्रु
ज्ञान बहुत अनुशासित होकर
आतंकियों का संगी बन जाता है
चिकित्सा बहुत अनुशासित होकर
बन जाती है मरीज़ों के लिए विपदा
नेतृत्व बहुत अनुशासित होकर
हत्यारों का समूह बन जाता है
राष्ट्र बहुत अनुशासित होकर
बन जाता है असहमतों का वधस्थल
ऐसे समय में
जब संसार के सबसे ताक़तवर लोग
दिन का अधिकांश समय
बहुत अनुशासित होकर
शासितों की अपूर्व सेवा में गुज़ारते हैं
मैं तनिक अनुशासनहीनता करूँ
और कविता में कहूँ तो–
दुनिया बहुत अनुशासित होकर
घड़ी बन जाती है
और तंत्रों की आवाज़ें टिक-टिक
दुनिया के तमाम लोग
अपने-अपने देशों में
अपनों से ही पीछे छूटते जाते हैं
सड़कों पर पिटते हैं, भूख से लड़ते हैं
गोलियों और बमों के छर्रों के बीच
संयोगवश रह जाते हैं सकुशल
नफ़रत, अन्याय, विश्वासघातों से
यदि नष्ट नहीं होते हैं
सूक्ष्म से सूक्ष्मतर हमलों से भी
बच निकलते हैं तो–
घरों, अस्पतालों, तंबुओं या शरणार्थी शिविरों के
अपने-अपने कमरों में क़ैद
बहुत अनुशासित तरीक़े से
मनुष्यता की रक्षा के लिए
मरते
जाते
हैं
- रचनाकार : सुघोष मिश्र
- प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.