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अनुभव समुद्र

anubhaw samudr

स्वाति मेलकानी

स्वाति मेलकानी

अनुभव समुद्र

स्वाति मेलकानी

और अधिकस्वाति मेलकानी

    मैं देखती हूँ ख़ुद को

    समुद्र की लहरों के पास

    और गीली रेत पर चलने से

    मेरे पैरों में गुदगुदी होती है

    मैं दौड़ती हूँ समुद्र किनारे

    और डूबता सूरज

    मेरी हथेलियों को

    छू जाता है

    किनारे की सीपियाँ

    लौटती लहरों के साथ

    फिर समुद्र में बहने लगती हैं

    और उन्हें जाता देखकर

    मैं उनके लौटने की

    प्रतीक्षा करती हूँ

    समुद्र किनारे

    शाम भर बैठकर

    मैं बैठना चाहती हूँ

    और रात भर...

    समुद्र से बाहर

    छलक आई लहरें

    भिगोती हैं मेरा चेहरा

    और मुझ पर जमी बर्फ़

    पिघलने लगती है...

    अपनी मुँदी आँखों के भीतर

    मैं समुद्र के तल पर उगी

    मूँगे की चट्टानों को

    स्पर्श करती हूँ...

    अनगिनत मछलियाँ

    मेरे दोनों ओर से गुज़र जाती हैं...

    समुद्र मेरे भीतर उतरता है

    और मैं गहराइयों की अनदिखी सुगंध में

    अपने संचित जीवन की

    डोर को

    धीरे-धीरे छोड़ देती हूँ

    मैं पहाड़ में रहती हूँ

    मैंने समुद्र कभी नहीं देखा

    मैंने समुद्र को अनुभव किया है

    स्रोत :
    • रचनाकार : स्वाति मेलकानी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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