Font by Mehr Nastaliq Web

अंतरिक्ष की राख

antriksh ki rakh

मनीषा कुलश्रेष्ठ

मनीषा कुलश्रेष्ठ

अंतरिक्ष की राख

मनीषा कुलश्रेष्ठ

और अधिकमनीषा कुलश्रेष्ठ

    जाने कौन-सा क्षण था प्रिय जब

    तुम्हारी प्रेम और कामना से आवेष्टित छवि

    मुझसे खंडित हो गई

    और वह दिन कि आज का दिन

    मैं ख़ुद से उस तरह प्रेम नहीं कर सकी

    दर्पण सारे धुँधले हो गए

    सौंदर्य-प्रलेप सूखते रहे पात्रों में

    आसव सारे वाष्पित हो गए

    क्या तुम मानते हो?

    मुझसे ही खंडित हुई होगी!

    तुम्हारी व्यस्तता के पीछे छिपी

    उपेक्षा के खुरदुरे तल पर चलते

    मैं शायद लड़खड़ा गई थी

    कि जाने किसी भोले-भाले झूठ की

    फिसलन पर मेरा पैर रपटा था

    या कोई प्रवंचना कुसमय द्वार खटखटा गई थी

    हज़ारों सूर्य मानो एकदम बुझ गए थे

    केवल देह धरा पर बर्फ़ के बवंडर चले थे

    बल्कि कहीं अंतस के जीवंत द्वीप सदियों के लिए

    बर्फ़ में बदल गए थे

    भावुकता का समुद्र बर्फ़ीली चट्टानों पर

    सिर पटकता रहा था

    वे गीले मौसम फिर कभी लौटे ही नहीं थे

    तुम कहते हो, तुम वैसा ही प्रेम करते हो

    मै मान लेती हूँ

    मै भी दुहराती हूँ, हाँ तुम प्रेम करते हो

    इस सहज बात में मैं कोई कलुष नहीं पाती

    मगर क्या बात है कि तुम्हारे फेफड़ों से निकली

    समस्त ऊष्मा भी

    मेरी चेतना तो दूर, मन-शरीर क्या

    मेरी उँगलियों के पोरुओं तक को गर्मा नहीं पाती

    क्योंकि तुम्हारे हृदय से उठने वाले ऊष्ण भाव

    मुझ तक पहुँचते ही नहीं

    या बीच में ही कहीं वाष्पित हो जाते हैं

    मेरे हृदय से निकलती धमनियों-शिराओं में

    अब रक्त नहीं बहता

    एक घनीभूत उदासीनता वहाँ जमी है

    लहकती कामनाओं, बहती-बहकती श्लेष्माओं

    माँस-मज्जा, रज्जुओं पर

    अंतरिक्ष से उतरी राख छा गई है

    मैं सोचती हूँ, प्रेम से आविष्ट वह छवि तो

    जैसे भी टूटी, तुम्हारी थी और केवल छवि ही थी

    मेरा मुझसे प्रेम करना कैसे छूट गया?

    मेरा शृंगार मुझसे कैसे रूठ गया?

    मेरी कामनाएँ तो तुमसे पहले भी धधकती थीं

    उन्हें तुम्हारे पलटने पर भी धधकना था

    लास्य रचित इस देह को तो हरदम थिरकना था

    तुम्हारा प्रेम एक विप्लव था

    तुम्हारी छवि में साक्षात् अनंग विराजता था

    तुम्हारे अतीत के प्रगाढ़ अनुभवों ने मुझमें प्रस्तुत

    रति को और और उकसाया था

    हमने देह के गोपन की पराकाष्ठाओं को

    अनंत के छोर-अछोर तक पहुँचाया था

    तुम्हारी कल्पना मात्र मेरी देह पर कुमार संभव-सी बीतती थी

    अब यह देह तुमसे ही नहीं मुझसे भी रूठ गई है

    मेरा-तुम्हारा निरंतर प्रेम-जाप

    अब इसे बहलाता तक नहीं है

    कोई फाँस तो थी जो प्रेम के पग में गड़ी होगी

    हठात् तुम्हारी छवि हाथ से छूट गिरी होगी

    महान-अभंग प्रेम, अनंत आकर्षण, आत्माओं का अद्वैत

    कितने भ्रम इस छवि के साथ कण-कण बिखरे होंगे

    कि अब यह मन प्रेम शब्द पर अन्यमनस्क हो

    उँगली फिराता है, ये होंठ और कोई नाम तो नहीं जानते

    तुम्हारा नाम उच्चारते हुए अनमनेपन से घिर जाते हैं

    अब तुम्हारी पुकार में वह सघन लालसा होती है

    मेरे उत्तर भी अब तुमसे कोई आशा नहीं बाँधते

    मिलन के मेरे आग्रहों के निरंतर

    मंत्र-लिखित भूर्ज पत्र भूल गए हैं अपनी राह

    भटका करते हैं ठौर-बेठौर

    अपने पूर्व मिलन-संयोगों की

    समीक्षा करती फिरती है ये श्वास-समीर

    सुनो! इस ढीठ और चंचल मन ने तो नहीं माना था

    पर शायद देह ने पहली बार मान लिया था

    कि अब जो यह प्रेम है, चिरंतन है, एकनिष्ठ है

    ये जो स्पर्श हैं, वही लक्ष्य हैं, अलक्ष्य भी।

    किसी चित्र प्रहेलिका के दो टुकड़ों के

    अनायास ही जुड़ जाने की संपूर्णता पर इठलाती थी

    जाने किस संकुचित क्षण में

    किसी छूटे अदृश्य तीसरे टुकड़े की आशंका ने

    इसे काठ कर दिया है

    काष्ठ की यह पुत्तलिका बस अब मोह के धागों से बँधी है

    मन-प्राण-चेतन-अचेतन-राग-काम-अध्यात्म से नहीं!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनीषा कुलश्रेष्ठ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए