Font by Mehr Nastaliq Web

अंतरंग के लिए

antrang ke liye

मोना गुलाटी

मोना गुलाटी

अंतरंग के लिए

मोना गुलाटी

और अधिकमोना गुलाटी

    कीर्केगार्द का आस्तिक शव तुम्हारे कंधों पर पटककर मैंने

    तुम्हें अनाम देश में बदल देना चाहा है। एक

    लंबी गुहा में रेंगते हुए सर्प को पकड़कर मैंने अपनी भुजाओं

    पर लपेट लिया है। तुम्हें दे देनी चाही हैं मैंने

    तमाम लास्य मुद्राएँ!

    एक भयावह यंत्रणा से मुक्त करने के लिए तमाम शताब्दी को

    मैंने अपने रक्त को उड़ेल दिया

    कौपीन वस्त्रों पर,

    ‘संध्या तुम्हारे बिना बहुत उदास होती है’ और

    गापिकाओं की मुद्रा में आह्वान करती हूँ आदि-पुरुष का!

    मैंने खोदनी चाही हैं मृत दार्शनिकों की क़ब्रें और

    कुहराम। कामू हो या नीत्शे,

    सभी ने अंत में कर ली थी आत्महत्या?

    मैंने करना चाहा है नृत्य : तांडव

    शताब्दी के गर्भ में से निकालकर

    मैंने उन आकांक्षाओं को फेंक देना चाहा है समुद्र

    के नीचे, जिनके कारण उन्नीसवीं शताब्दी में उत्पन्न हुए

    थे मानसिक रोगी और फ़्रायड।

    देश में फैला हुआ प्रकंपन भुतहे आकार में

    बदल गया है और अस्थियों के नीचे चरमराता है

    तुम्हारा कटा हुआ हाथ। मैंने

    अपनी माँ से किए हुए प्रणों को तोड़ दिया था

    बहुत पहले और तुम्हारे लिए लिखती रही

    कविताएँ और मृत्यु-वक्ष पर अपने अपमान और जिंघासाएँ!

    मैंने होना चाहा है तुम्हारी मित्र, आत्मीय

    और अभिन्न और माँ और बेटा और अंतरंग

    {प्रेमिका और पत्नी दोनों विशेषणों से मुझे घृणा है।}

    मेरी तुम्हें बच्चा बना देने की इच्छा है और

    इच्छा है काट देने की तुम्हारे असाहित्यिक बक़ौल

    तुम्हारे साहित्यिक मित्रों के ठहाके और

    शराब और जिंस औरतें।

    मेरी इच्छा तुम्हें मादा और नर की श्रेणियोंसे अलग

    ऊँचे पहाड़ पर पटक देने की है। तुम

    लौटो उज्जैन से या बंबई या केरल या

    आंध्र से, मेरे

    टख़नों के नीचे फिसलते हुए समुद्र को कोई

    फ़र्क़ नहीं पड़ता। तुम्हारी पत्नी तुम्हें या तुम उसे करो

    प्यार या घृणा।

    मुझे बचकाना लगता है। मुझे बचकाना

    लगता है कि तुम अपने बच्चे के लिए

    ग्लोब के अंधे कोनों को उभरने देते हो, तुम

    कल्पना करते हो कीड़ों से उभरते

    बुद्धिजीवियों की जो नमस्कार-मुद्रा में घिनौने शब्दों

    और आकृतियों तक में

    बदल देते हैं अपने चेहरों को। मुझे

    समुद्र के किनारे गड़ी ऐंथना की प्रतिमा

    सुंदर लगती है, मुझे अच्छा लगता है

    ‘कौलस्यस्’ की टाँगों के नीचे से गुज़र जाना जहाज़ों

    का, मैं तुम्हें कंधों से उछालकर हवा में या

    समुद्र की तलहटी में फेंक देना चाहती

    हूँ। तुम चाहो तो पा सकते हो राजकमल

    के गलित अंग, पुरुष होने का गंदा दंभ

    या अमिताभ की शांत मुस्कराहट या

    मात्र मेरे पैरों के नीचे खिलखिलाता हुआ समुद्र

    और ब्रह्मांड।

    स्रोत :
    • पुस्तक : महाभिनिष्क्रमण (पृष्ठ 73)
    • रचनाकार : मोना गुलाटी
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए