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आँसू गहराई की आकस्मिकता है : चार

ansu gahrai ki akasmikta hai ha chaar

संदीप रावत

संदीप रावत

आँसू गहराई की आकस्मिकता है : चार

संदीप रावत

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    एकाकी!

    इस परिवेश

    के साथ लगा हुआ

    एक विस्मयादिबोधक चिह्न हूँ

    अचानक हो हर कहीं

    मुझे घेरे हुए

    अचानक ‘कहीं नहीं’ हो

    केवल इतना ही जानता हूँ तुमको

    ओ! बारिश

    एकाकी

    कितना कम जानता हूँ मैं ख़ुद को

    ‘एकाकी’ शब्द

    हज़ारों भाषाओं से बना

    हवा, रंगों, परछाइयों, पहाड़ों, आहटों भरा

    एक असीमित परिवेश है—अनजान

    एकाकी होने में नहीं लगता क्षण

    एक साधारण स्थानीय परिवेश का अनजानापन

    और स्वतंत्रता लगती है

    किसी स्वामित्व को नहीं करती स्वीकार इसीलिए तो भाषा हूँ काव्य हूँ एकाकी

    स्वामी तो एक स्वप्न है

    स्वप्न कब किसका हुआ

    इतने क़रीब और ख़ामोश हूँ कि दिखाई पड़ती हूँ दूर किन्हीं दूसरी चीज़ों के बारे में बात करती हुई

    जबकि सदियों से मैं कर रही हूँ केवल स्वयं से बातें

    कुछ भ्रम इतनी धीमी गति से टूट रहे हैं कि लाखों वर्ष गुज़र गए हैं

    प्रेम एक ख़ाली-भरा असीमित परिवेश है जिसके बनने में

    एक सूरज के बनने जितना अंधकार (अ-समय ) लगता है

    कभी-कभी स्याह निःशब्दता बहते हुए

    प्रकाश और ऊष्मा उत्सर्जित करती है इस दौरान

    संसार से मेरा संबंध पूरी तरह बदल जाता है

    यह कहा जा सकता है कि प्रेम के एकांत का विकास

    दुख के एक विशाल घने बादल के रूप में

    शुरू होता है

    मैंने नदियों के किनारे तुम्हें इतना याद नहीं किया जितना समंदर यात्रा करते हुए

    एक वक़्त बाद जब हम मिलेंगे तो बात करते हुए

    शब्दों, आँखों, हाथों का प्रयोग कम से कम करेंगे और सागरीय परिवेश का अधिक से अधिक

    गहराई के हाथ

    ख़ुद पर से सारे विचार उतार चले

    गहराई का अनुभव भी

    गहराई एक विसर्जन है

    आँसू गहराई की आकस्मिकता है

    हँसी भी होती है एक आकस्मिक गहराई

    एकाकी

    आह! कितना एकाकी परिवेश है

    हँसी आँसू के फूलों में

    स्रोत :
    • रचनाकार : संदीप रावत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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