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अमरता

amarta

अरविंद चतुर्वेद

और अधिकअरविंद चतुर्वेद

    है तो मिट्टी की ही मूरत

    कच्ची मिट्टी की।

    उम्र की धूप में तपी

    दु:खों की आँच में पकी

    है तो मिट्टी की ही मूरत!

    यह आपका है प्यार

    कि लगता है

    रंग-रोगन लगने से आया है

    इसमें निखार

    वरना क्या है कि

    एक ठोकर में टूट सकती है यह

    या गलना ही है इसे

    किसी के आँसुओं में भीगकर

    है तो मिट्टी की ही मूरत

    कच्ची मिट्टी की।

    इसके बाहर भी है क्या कोई अमरता!

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुंदर चीज़ें शहर के बाहर हैं (पृष्ठ 44)
    • रचनाकार : अरविंद चतुर्वेद
    • प्रकाशन : प्रकाशन संस्थान
    • संस्करण : 2003

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