आकाश से आकाश गिरता है पत्तों की तरह
akash se akash girta hai patton ki tarah
सत्यपाल सहगल
Satyapal Sahgal
आकाश से आकाश गिरता है पत्तों की तरह
akash se akash girta hai patton ki tarah
Satyapal Sahgal
सत्यपाल सहगल
और अधिकसत्यपाल सहगल
आकाश से आकाश गिरता है पत्तों की तरह
हवा के परदे हिलते हैं
कोई फिर उन्हें खींच देता है
सामने वही पुरानी दुनिया
एक शहर है सामने
जो एक शहर था
चंद रास्ते हैं जो चंद रास्ते थे
उन पर धूल उड़ती है अब तक
पत्तों के बीच से आकाश दिखता है
पतंग की तरह
पतंग की तरह ऊँचा उठता हुआ
उड़ता हुआ
- रचनाकार : सत्यपाल सहगल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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