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आईना

aina

राहुल द्विवेदी

आईने में आज देखने पर

बेतरतीब बालों ने

चुग़ली कर दी

काले घने बाल विरल हो

अब सफ़ेद हो गए हैं

बल पड़ते माथे के चमड़े

अब सिकुड़ गए हैं

चेहरे पर रहने वाली कांति

अब झुर्रियों में बदल गई है

कुछ और गहरे जाकर देखा

तब महसूस हुआ कि

पहले जहाँ नमी हुआ करती थी

वह आँख अब सूख गई है

यह आईना भी

कितना सपाट है

सबका सब

जस का तस

लौटा देता है देखने वाले को

बिना किसी छुपाव-दुराव के

किए गए बर्ताव

भारी पड़ जाते हैं आईने पर

अक्सरहाँ देखा गया है

सच को सच बोलने की

कीमत टूटन में चुकानी पड़ती है

हर एक आईने को।

स्रोत :
  • पुस्तक : मै, तुम और ईश्वर (पृष्ठ 11)
  • रचनाकार : राहुल द्विवेदी
  • प्रकाशन : आपस पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स
  • संस्करण : 2022

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