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अज्ञात की सुध में

agyat ki sudh mein

पारुल पुखराज

पारुल पुखराज

अज्ञात की सुध में

पारुल पुखराज

और अधिकपारुल पुखराज

    आँखें अबूझ नींद से ढँकी थीं

    देह जिससे वह जूझ रही थी

    होकर भी नहीं थी उसके पास

    रात के पहले पहर

    तारों की ठंडी चमक में

    किसी छाया की आकुल पुकार

    छेड़ती थी

    नाज़ुक रगों में बिहाग की सरगम

    कसे तारों को तर्जनी के मिज़राब से

    ज़रा कंपित कर

    सुदूर बियाबान से सुनती

    मधुर लयकारी

    सुलझाती

    संकोच के धागे

    ख़ुद निढाल हो

    नदी की धार पर विशाल बजरा

    तन उसका

    मध्यरात्रि

    जिसके पाल खुल कर हवा में सरगोशी कर रहे थे

    उस

    बेला

    वह कुछ भी हो सकती थी

    कोयल की कूक से बिंधा मन

    मालती की बेल पर टँका फूल

    चित्रकार की कल्पना में सतरंगी छींट

    रियाज़ी कंठ से उमगती द्रुत तान

    अबोध किलकारी

    प्रेमी हृदय में प्रतीक्षा का नेहदीप

    महुए की गंध

    सांरगी की हूक

    उस अज्ञात की सुध में

    वह बावड़ी का अँधेरा भी थी कहीं

    दूब की नोक से ढरकती ओस की बूँद भी

    आषाढ़ की सूनी रात

    वह

    कोई

    थिरक थी

    धुन थी

    कबीलाई गीत थी

    स्रोत :
    • रचनाकार : पारुल पुखराज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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