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अगर तुमने मुझे अपनी शाख़ से तोड़ा न होता

agar tumne mujhe apni shakh se toDa na hota

नवनीत पांडे

नवनीत पांडे

अगर तुमने मुझे अपनी शाख़ से तोड़ा न होता

नवनीत पांडे

और अधिकनवनीत पांडे

    तुमने मेरा हृदय छेद

    किसी का गलहार बनाया

    किसी के चरणों में परोसा

    मैं अपनी उम्र पूरी करता

    कभी नहीं मुरझाता

    ही सूखता

    फेंका जाता

    कचरे मानिंद

    खिला रहता

    बिखेरता रहता

    अपनी सीमाओं में

    जैसी भी है अपनी ख़ुश्बू

    अगर तुमने मुझे

    अपनी शाख़ से तोड़ा होता!

    स्रोत :
    • पुस्तक : अक्सर, 50-51 (पृष्ठ 207)
    • रचनाकार : नवनीत पांडे
    • प्रकाशन : पंचशील प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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