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अगर चले जाते तुलसी दरबार!

agar chale jate tulsi darbar!

शशिभूषण

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अगर चले जाते तुलसी दरबार!

शशिभूषण

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    नहीं गए तुलसीदास अकबर के दरबार

    ख़त भेज दिया जवाबी जब हुई पुकार

    'तुलसी अब क्या होंहिगे नर के मनसबदार!'

    अकबर रहा महान

    आज देखें तो उसका क्या दोष?

    उसने नवरत्न बनाना चाहा महान कवि को

    हालाँकि दुनिया जानती है लोग समझते हैं

    कोई होगा सम्राट तो फिर होगा कितना महान

    कितना चल पाएगा कविता के पीछे-पीछे

    कितनी पवित्रता होगी सजाने में कवि सभा

    राजा तो आख़िर राजा होता है

    वह हो नहीं सकता संत

    भले कर ले कविताई।

    तुलसी नहीं गए राज दरबार

    अकबर था बादशाह महान

    तुलसीदास राम के भक्त

    उनका कृष्ण से भी नहीं था राम-राम

    प्रिय था धनुष बाण प्रिय थे सिया राम

    कृष्ण के हाथ में बाँसुरी रही सर्वदा।

    क्या तुलसी महान अशोक के दरबार जाते

    अगर होते सम्राट अशोक के समकालीन?

    तुलसीदास को जानते बूझते यही कहा जा सकता है

    वे नहीं जाते किसी भी सम्राट के दरबार

    हर युग में कुछ कवि होते हैं

    मुक्तिबोध को ही ले लीजिए।

    तुलसी साधु रहे ग्रंथ लिखे महा पवित्र

    की राम की चाकरी रहे सदा ईमानदार

    लेकिन अंत में हुआ क्या साधुता का?

    पलट गया हरि युग निर्गुण संतों का

    मटियामेट हुआ सब काम धाम।

    लोग बताते तुलसी नहीं थे राम भक्त केवल

    बड़े थे कबीर उनसे कहते रहते थे—

    कबीर कूता राम का मुतिया मेरा नाउ

    गले राम की जेवड़ी जित खेंचे तित जाऊँ

    तुलसी रहे महा ख़ुद्दार

    उनकी होती जय-जयकार

    मगर पूछती है दुनिया सदा पूछेगी

    कबीर भी तो नहीं गए दरबार!

    स्रोत :
    • रचनाकार : शशिभूषण
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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