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अधूरी कविता के अंतिम शब्द से बातचीत

adhuri kawita ke antim shabd se batachit

सोमदत्त

सोमदत्त

अधूरी कविता के अंतिम शब्द से बातचीत

सोमदत्त

और अधिकसोमदत्त

    मैं लौटूँगा

    फिर...

    जैसे लौटती है हवा वृक्ष की कोशिकाओं में प्राण देकर घुटती हुई साँस को

    जैसे लौटता है पक्षी पत्तियों के पड़ोस में बीच डाल पृथ्वी के अछूते अंग में

    जैसे लौटता है कारीगर किसी औज़ार की ओर निपट कर दूसरे औज़ार की

    तड़प से

    शब्द

    अभी जाने दे मुझे घुर्रक बजाती पसरे-पसरे अकबकाती कबरी गाय के पास

    धौंकनी-सी चल रही हैं उसकी पसलियाँ अभी

    ख़ून जा रहा है उसके गोबर में,

    चुरमुराते खट्टे सड़े गोश्त की बदबू

    अपने दोनों गोश्तदार पुट्ठों ओर जाँघों में साधे

    हरे पेड़ से बछड़े के पास

    माँ-बेटे दोनों

    ताप में तपे

    अलग-अलग महामारियों की चपेट में

    उनका सगा आया है आधी रात पाँव-पाँव चार कोस

    तू ऋष्यमूक पर्वत है उनकी संजीवनी के लिए

    कीचड़-कादो

    हवा-पानी

    साँप-बिच्छू से मत डर मेरे लिए

    मत डर अलगाव-बिछोह के सन्नाटे से

    बता

    तूने नहीं भोगी ये भुगताने?

    तूने छिपाई आपबीती

    लोगबाग तो जानते हैं

    कहते, बताते, लिखते हैं—

    कैसे

    साल-दर-साल समय की मार झेल

    अपनी आग, अपनी सच्चाई में तपते-पनपते

    बार-बार उठे-निखरे

    नई ताक़त, नए उभार, नए अर्थ-विस्तारों के साथ

    हर बार

    अपरी बिरादरी का विस्तार

    अंतरंग की भीतरी गहराई

    बढ़ाते हुए

    इसी कीचड़-कादो, हारी-बीमारी, सुख-दुख की ताक़त समेटकर

    सिझा पका रस में बदल

    अपनी गर्भनाज को सदा धारण किए शब्द

    मैं जिसकी गर्भनाल जन्म लेते ही तोड़ दी गई

    उसे

    जाने दे, बीज और माटी कोख और मज्जा के पास

    समर के बीचोंबीच

    वहाँ भी होगा अपने बिरादरों की गूँज में

    हिस्सा लेने दे मुझे जीवन-मरण के संग्राम में

    लौटूँगा...

    स्रोत :
    • पुस्तक : निषेध के बाद (पृष्ठ 132)
    • संपादक : दिविक रमेश
    • रचनाकार : सोमदत्त
    • प्रकाशन : विक्रांत प्रेस
    • संस्करण : 1981

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