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अधूरे में

adhure mein

तुषार धवल

तुषार धवल

अधूरे में

तुषार धवल

और अधिकतुषार धवल

    एक दिन हम लौट गए थे

    अपनी अपनी दिशाओं में

    अपनी अपनी भीड़ में डूब जाने को

    तुम्हारी भीड़ तुम्हें अपने भीतर भरकर

    तुम्हें मुझसे

    दूर घसीटती जा रही थी

    उसी भीड़ की ठेलती टाँगों के बीच से मेरी तरफ़ तड़प कर लपकती हुई

    हवा में खिंची रह गई तुम्हारी बाईं हथेली और उसका वह ज़र्द रंग

    मैं साथ लिए चलता हूँ

    चूमता हूँ हर माथे को अपने अधूरेपन में

    बटन टाँकता हूँ हर दरवाज़े पर जैसे वह कोई खुली रह गई क़मीज़ है

    जिसे चौखट ने अधूरा ही पहन लिया हो

    जैसे अधूरा अधूरेपन से साँस मिलाता है

    अधूरापन त्रासदी का पूर्ण कथन है

    और अधूरी त्रासदियाँ कभी पूरी नहीं होतीं

    वे लौटती हैं बार-बार

    हर बार खुरच कर भी मन नहीं भरता

    इधर जी नहीं भरता अधूरेपन से जिसे साथ लिए चलता हूँ

    हवा में खिंची रह गई तुम्हारी बाईं हथेली संग

    उसी से छूता हूँ इस धरती को

    उसके गर्भ को उसी से सहलाता हूँ

    अपने अधूरे होंठों से अधूरी हवा में चूमता हूँ तुम्हारे अधूरे चेहरे को अधूरे आकाश तले

    और ग़ज़ब-सा लगता है

    तुम्हारा प्रेम पी कर

    हर कुछ से

    प्रेम हो जाता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : तुषार धवल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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