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अद्भुत लीला

adbhut lila

अनुवाद : एन. एन. बठेजा

सोभराज निर्मलदास 'फ़ानी'

और अधिकसोभराज निर्मलदास 'फ़ानी'

    शूर वीर शूलों के कांक्षी, शूल सदा उनकी है सेज

    प्रियतम के मौज को तत्पर, आनंद अनुभव करते हैं

    जिनके हृदय में पीड़ नहीं, वे शुष्क निष्ठुर हैं

    लंपट विषय-भोग में, मौजी खर अविचार

    वे शूरवीर शाश्वत प्रसन्न, वे नश्वर-तन वातूल

    शूलों से निभाओ तो, अंत:दर्पण हो उज्ज्वल

    गढ़न गढ़ैया एक है, भिन्न-भिन्न रूप पसार

    सोना सुनार एक है, गहने अनंत प्रकार

    अँगूठी बिंदिया चोखी, बड़ी जो रौनकदार

    लौंग, चूड़ियाँ, कंठियाँ, कंगन चमकदार

    बहुगुण ललना के लिए, स्वर्ण-जटित शृंगार

    नक़्श विविध नकाश इक, उससे बाँधो चित्त-धार

    पाओगे सुख-सार; बढ़िया थोक समूह से

    एक ही काष्ठ कुरूप से, सहस्र-रूप सुतार

    अद्भुत लीला अगम की, जिसके खेल अपार

    शिल्प कला हर परत में, ईश्वरीय विस्तार

    नाशवंत अनेकता से, उपजे सद्विचार

    साक्षी सृजनहार; कोई गुरु-प्रसाद से

    बागडोर हाथ एक के, जो फिर-फिर फिराता

    मानव इसी खेल से, है अत्यंत अज्ञात

    ‘नानक लिख्या नाल’ गति, कोई ज्ञानी समझाता

    कर्मों का फल जीव को, है योनियों में भटकाता

    किंतु आदि-कर्म वृक्ष बीज गाँठ कोई विज्ञ सुलझाता

    सेवा साधु-संग फल, सहज में है लाता

    गूँगा गुड़ खाता; मुस्कराता मुँह से नहीं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 745)
    • रचनाकार : सोभराज निर्मलदास 'फ़ानी'
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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