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आदतन

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डॉ. अजित

डॉ. अजित

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डॉ. अजित

और अधिकडॉ. अजित

    जल्दी भरोसा करना

    मैंने माँ से सीखा

    जल्दी ग़ुस्सा करना

    मुझे पिता ने सिखाया

    चुप रहना मैंने बहन से सीखा

    पहली प्रतिस्पर्धा मुझे भाई ने सिखाई

    सपने देखने मैंने सीखे

    धुर आवारा दोस्तों की सोहबत में

    जिनकी बातों की दिलचस्पी

    आज भी मरी नहीं मेरे भीतर

    प्रेम करना और छला जाना

    प्रेम का घोषित पाठ था

    जो लिखा था किसी दसवें उपनिषद में

    ये स्व-अर्जन स्व-निमंत्रण का परिणाम था

    इसलिए प्रेमिका को नहीं कर सकता रेखांकित

    इस संयोग के लिए

    माता, पिता बहन और भाई की तरह

    इतनी कमज़ोरियों के साथ बड़ा हुआ मनुष्य

    प्रेम बेहद जल्दी में करता है

    भरोसा उसकी गोद से उतरने को रहता है आतुर

    उसकी पीठ पर लिखे होते हैं

    व्यवहारिक होने का मंत्र

    उसके पास हमेशा रहती शिकायतें

    वो रचता है रोज़ अपना एकांत

    दुखों का ग्लैमर बचाता है उसका विशिष्टताबोध

    वो होता है मेरे जितना चतुर

    जो बदल देता है संज्ञा को सर्वनाम में

    जैसे मैंने बात ख़ुद से शुरू की

    और छोड़ दी उस पर लाकर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : डॉ. अजित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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