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नंगी गालियाँ

nangi galiyan

नाज़िश अंसारी

नाज़िश अंसारी

नंगी गालियाँ

नाज़िश अंसारी

और अधिकनाज़िश अंसारी

    एक मर्द हँसता है

    हँसता ही रहता है

    एक स्त्री रोती है

    रोती ही रहती है

    रात अँधेरे

    दमघोंटू चीख़ सुनकर

    माँ आती है

    पिता भी साथ है

    वे लगाना चाहते हैं उसे किनारे

    मर्द दिखाता है सारे प्रमाणपत्र

    कुछ सामाजिक

    कुछ वैयक्तिक अधिकार

    बकता है गालियाँ

    मर्दानी-जनानी सारी गालियाँ

    ठहराता है उसे चरित्रहीन

    पराए मर्द से बात कर लेना भर

    स्त्री की चरित्रहीनता की परिभाषा रही है हमेशा से

    माँ की विशाल ममता

    पिता का भारी-भरकम संरक्षकत्व

    दब कर मर जाते हैं उस पिद्दी प्रमाणपत्र तले

    औरत फाड़ती है काग़ज़ का पुर्ज़ा

    ढकेल कर ममता और संरक्षण

    दौड़ती है

    और भागती ही चली जाती है

    हाँफते हुए गिरता चल जाता है

    सारा वात्सल्य

    सारा दंभ

    अहं सारा

    और निष्ठुरता सारी

    मैं चाहती हूँ घूसकर सपने में

    रोक लूँ बदहवासी उसकी

    झिंझोड़ कर कहूँ उससे कि

    मासूमियत से कोई भी रेस नहीं जीती जाती

    मेरे चाहे हुए पर लगता है अलार्म घड़ी का ढेला

    और टूट कर बिखर पड़ती है रात

    सुबह को शिकायत है खिंचाव की

    रानों की पिंडलियों की

    मेरी कलई पर भी एक नीला निशान है

    चिपक रहा है रात का कसैलापन

    मैं देख रही हूँ ज़बान को घुमा-फिरा कर

    सोच रही हूँ :

    नंगी गालियों का स्वाद कैसा होता है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : नाज़िश अंसारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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