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अभिव्यक्ति की समस्या

abhiwyakti ki samasya

मोना गुलाटी

मोना गुलाटी

अभिव्यक्ति की समस्या

मोना गुलाटी

और अधिकमोना गुलाटी

    अब मुझे शब्दों से भय लगता है : शब्द मुझे

    नहीं बोलते, वह मुझसे अलग होकर

    परिंदों की भाँति फड़फड़ाते हैं और नीले आकाश में

    गुम हो जाते हैं।

    मेरी धमनियों में फड़कता हुआ रक्त अब कोई शब्द

    नहीं चुन पाता अपने को खोलने के लिए,

    मुट्ठियों में बंद घूमता है वृत्ताकार होकर

    पीला चक्रव्यूह :

    मेरे मस्तिष्क में लगातार होती है झनझनाहट

    वायलिन के काँपते हुए स्वर, मृदंग की उठती-बैठती

    थाप और अनंत मौन में काँपता हुआ अट्टहास, मेरी

    आकृति को विदूषक बनाता हुआ एकांत,

    बिना शब्द पाए

    छूट जाता है बहते हुए पानी में; और

    मैंने स्वयं के व्यापक चुप्पी के साथ पिघलते हुए पाया है;

    मेरे पिघलने को समझने के लिए आपको

    बादलों में छिपी चमकती सफ़ेद पहाड़ी बर्फ़ को देखना होगा

    नदी के बहते टकराव को पीना होगा—

    शब्द, भाषा, भंगिमा मुझे कुछ नहीं पकड़ पाता; मुझमें

    एक फिसलता हुआ बहाव है निमग्न; अब

    मुझे शब्दों से भय लगता है : शब्द जो

    ख़ाली पृष्ठ हैं, जिन्हें हर व्यक्ति अपनी इच्छानुसार

    आँकता है और अपनी मर्ज़ी से खोलता है, मेरे संलाप

    के वाहक नहीं हैं : शब्द मुझे नहीं बोलते—

    मुझे एहसास है कि अब मेरी यात्राएँ तुम तक

    नहीं हो सकती,

    मुझे अपने भीतर ही होना है

    वृत्ताकार चक्रवात : व्यक्त।

    स्रोत :
    • पुस्तक : महाभिनिष्क्रमण (पृष्ठ 101)
    • रचनाकार : मोना गुलाटी

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