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आज लौटाती हूँ तुम्हें

aaj lautati hoon tumhein

सुमन केशरी

सुमन केशरी

आज लौटाती हूँ तुम्हें

सुमन केशरी

और अधिकसुमन केशरी

    आज लौटाती हूँ मैं तुम्हें

    क्षिति जल पावक गगन समीर

    हाँ ऐसा ही होगा एक दिन

    कि मैं तुम्हें पानी की बूँदों में मिलूँगी

    देखोगे तुम अपना मुख मुझमें

    और गह लूँगी तुम्हारी छाया अपने तल में

    अंतर्तल में...

    हाँ ऐसा ही होगा इक दिन

    मैं तुम्हें मिट्टी में मिलूँगी

    तुम्हारे पाँवो तले बिछी

    सहलाती... गुदगुदाती... बुदबुदाती कोई मंत्र

    तुम्हारे पैरों की छाप सहेजती

    भीतर

    अंतर्मन में...

    हाँ ऐसा ही होगा एक दिन

    तुम महसूस करोगे मेरी गंध

    सुबह की ठंडी बयार में

    दुपहर की गरमाती हवा में

    रात की सिहरन में

    तुम्हारी साँसों में पैठती

    समेट लूँगी तुम्हारी उत्कंठाओं को

    अपने भीतर...

    आज लौटाती हूँ तुम्हें

    क्षिति जल पावक गगन समीर....

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुमन केशरी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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