एक अकेला पंछी जब आधी रात को चहचहाता है
तो इसके मायने क्या हैं
क्या सिर्फ़ यह कि उसकी नींद समय से पहले खुल गई है
और उसका समयबोध गड़बड़ा गया है
और वह भौंचक है कि दूसरे पंछी क्यों नहीं चहचहा रहे
और वह दूसरों से कह रहा है कि भाई तुम भी तो चहचहाओ
जागो-जागो
वह बार-बार कहता है कि
भोर भई
अब जागो
या क्या वह बीमार है
और असहनीय पीड़ा को व्यक्त करने का उसके पास कोई और तरीक़ा नहीं
सिवाय इसके कि जिसे हम कहते हैं चहचहाना
वह करे?
क्या उसका कोई मरणासन्न है या मर चुका है
और वह दूसरों को मदद के लिए पुकार रहा है
यह जानते हुए कि इस वक़्त कोई पंछी आएगा भी कैसे
मगर फिर भी वह पुकार रहा है कि जिस तरह भी हो आओ भाई
पंछी सुन रहे हैं मगर जवाब नहीं दे रहे हैं
क्या करें जवाब देकर जब अँधेरे में कुछ कर ही नहीं सकते?
या हो सकता है कि वे भी सोए हों मेरी पत्नी और बच्चों की तरह बेसुध और उन्होंने कुछ सुना न हो
या क्या नींद में पंछी को कोई ऐसी ख़ुशी मिल गई है
जो उससे समेटी नहीं जा रही
क्या वह यथार्थ और स्वप्न का अंतर भूल चुका है
और गा रहा है वह अनवरत
कोई इसे चाहे सुने या न सुने
उसे मतलब नहीं किसी से
क्या आधी रात को एक अकेले पंछी के चहचहाने का कोई अर्थ नहीं?
क्या तब भी नहीं जब वह चहाचहाकर अचानक फिर मौन हो गया हो
और मतलब नहीं भी हो तो क्या इसमें कोई मतलब समझने की कोशिश करना बेकार है?
क्या इससे बेचैन नहीं होना चाहिए?
चाहे या बेचैनी कितनी बेमतलब और फ़ौरी क्यों न हो?
- रचनाकार : विष्णु नागर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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