रौशन दिमाग़ भड़वे आराइयों के मारे
raushan dimagh bhaDwe araiyon ke mare
संजय चतुर्वेदी
Sanjay Chaturvedi
रौशन दिमाग़ भड़वे आराइयों के मारे
raushan dimagh bhaDwe araiyon ke mare
Sanjay Chaturvedi
संजय चतुर्वेदी
और अधिकसंजय चतुर्वेदी
रौशन दिमाग़ भड़वे आराइयों के मारे
ख़ामोश मारिफ़त है दंगाइयों के मारे
तारीख़ में सबू की हरकत हरामियाँ हैं
ईसा पनाह माँगे ईसाइयों के मारे
आबादियों से पहले बाज़ार आ गया था
अब साँस फूलती है महँगाइयों के मारे
परबत उठे ज़मीं से छूने को होशमंदी
फिर लड़खड़ा गए हैं बालाइयों के मारे
लो फिर बहार आई जंगल दहक रहे हैं
वादी खिली किसी की सन्नाइयों के मारे
पैदा हुए जबी से ऐसी वबा लगी है
अहल-ए-शफ़ा उसी की परछाइयों के मारे
जो सूरदास था वो उस पार देखता था
हम डूबने लगे हैं बीनाइयों के मारे
जो बोलना किसू से सच बोलना सबू से
दुनियाँ बची हुई है सच्चाइयों के मारे
- रचनाकार : संजय चतुर्वेदी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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