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हम भी सवाब लेंगे उनकी बुराइयों से

hum bhi sawab lenge unki buraiyon se

संजय चतुर्वेदी

संजय चतुर्वेदी

हम भी सवाब लेंगे उनकी बुराइयों से

संजय चतुर्वेदी

और अधिकसंजय चतुर्वेदी

    हम भी सवाब लेंगे उनकी बुराइयों से

    गर बच गया ज़माना रौशन हरामियों से

    कश्कोल बज रहे हैं ग़ुरबत निहारती है

    रहमत बरस रही है दाता की झोलियों से

    सारे जहाँ से अच्छा ये जामिआ हमारा

    लड़वा दे हमवतन को अपने ही भाइयों से

    उस्ताद खा गए हैं शक में जमालगोटा

    नौसादरों को डर है हर्राफ़ तूतियों से

    निरगुन कबू बोला कोमल पदावली में

    अनहद कबू गरजा शहनाज़ बिजलियों से

    परफ़ेसरों ने पाया भाँडूग़दर का भाँडा

    कोमल सियार मारे रंगबाज़ पिद्दियों से

    सोभा में चार भंचक सूधे परें पइयाँ

    कल रात गिर पड़े थे जन्नत की सीढ़ियों से

    जो मर गए वतन पे उनको तो इन्नालिल्ला

    स्वागत है भाँडुओं का काजू की बर्फ़ियों से

    दो चार सौ बचे हैं उनको भी नाप डालो

    तारीख़ साफ़ कर दो ज़िक़्र-ए-यज़ीदियों से

    अब छोड़ दो हमारी दोज़ख़ को नासपीटो

    हम तंग चुके हैं दीन-ए-इलाहियों से

    फ़िल्मों ने शाइरी का ये हाल कर दिया है

    घबरा गई है शीला बदनाम मुन्नियों से

    बीड़ी जलाने वाले जिगरा जला चुके हैं

    चलती है याँ सियासत तेंदू की पत्तियों से

    जंगल ज़मीन पानी की वाट लग चुकी है

    बस आक़बत बची है शहरों की गाड़ियों से

    ईमान बच गया है मुल्लों से पंडितों से

    इंसान क्या बचेगा भड़वे जदीदियों से

    गारी कबू दीजो बिरजू के बावरे कूँ

    छोरा पनाह माँगे गोकुल की छोरियों से

    क्या हम हैं क्या हमारी औक़ात है लफ़ंगो

    थी शाइरी तुफ़ैली सतगुरु की जूतियों से

    तू काएकू ज़ियादा हस्सास हो रिया है

    तेरे कू डर नहीं है चम्पू-वहाबियों से

    काहेका डर सबूका सबकाम चल्लिया है

    घिसता नको किसूका बाताँ हमारियों से

    आना भी चाहता है टेढ़ा भी हो रिया है

    ग़म्ज़ा है बेवड़े का अपनी सुराहियों से

    तालीम जामिया के गड्ढे में गिर गई है

    छुक-छुक चली थी गाड़ी बच्चों की झंडियों से

    इल्म-ओ-अदब में कैसे लौंडे लगे भए हैं

    घबरा गया है थाना ऐसे सिपाहियों से

    जनवाद का मसाला ठेके पे मिल रिया है

    टिल्लू चले हैं लेने उल्लू की मंडियों से

    तहज़ीब का अरस्तू हर दिन पछाड़ खाए

    इस्टूडियो में बैठे लिबरल मवालियों से

    फ़रमान चम्पुओं का आवाज़-ए-तख़्त-ए-लंदन

    लिखवा चुके हैं सारे पर्चे फ़िरंगियों से

    स्रोत :
    • रचनाकार : संजय चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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