पर न किसी की दशा एकसी नित रहती है
par na kisi ki dasha eksi nit rahti hai
विजयानंद त्रिपाठी
Vijayanand Tripathi
पर न किसी की दशा एकसी नित रहती है
par na kisi ki dasha eksi nit rahti hai
Vijayanand Tripathi
विजयानंद त्रिपाठी
और अधिकविजयानंद त्रिपाठी
पर न किसी की दशा एकसी नित रहती है,
पछिवा पुराना हवा बदलती ही बहती है।
बखतियार ने अखतियार जब किया यहाँ पर।
रहा खार ही खार बहार गयी अपने घर।
बदल गया एक वार ही, मगध विहार असार हो।
सुख-समृद्धि कैसे रहे, जहाँ न उचित विचार हो॥
- पुस्तक : कविता-कौमुदी, दूसरा भाग-हिंदी (पृष्ठ 72)
- संपादक : रामनरेश त्रिपाठी
- रचनाकार : विजयानंद त्रिपाठी
- प्रकाशन : हिंदी-मंदिर, प्रयाग
- संस्करण : 1996
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