नौ लाख सितारों ने लूटा
nau lakh sitaron ne luta
बदनाम रहे बटमार मगर घर तो रखवारों ने लूट
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
दो दिन के रैन बसेरे की हर चीज़ चुराई होती है
दीपक तो अपना जलता है पर रात पराई होती है
गलियों से नैन चुरा लाए
तस्वीर किसी के मुखड़े की
रह गए खुले भर रात नयन दिल यों दिलदारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
शबनम-सा बचपन उतरा था तारों की गुमसुम गलियों में
थी प्रीति-रीति की समझ नहीं, तो प्यार मिला था छलियों से
बचपन का संग जब छूटा तो
नयनों से मिले सजल नयना
नादान नए दो नयनों को नित नए नज़ारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
जुगनू से तारे बड़े लगे, तारों से सुंदर चाँद जँचा
धरती पर देखा तो लाखों चल रहे चाँद थे नज़र बचा
उड़ चली हवा के साथ नज़र
दर से दर खिड़की से खिड़की
प्यासे मन को रंग बदल-बदल रंगीन इशारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
हर शाम गगन में चिपका दी, तारों के अक्षर की पाती
किसने लक्खी, किसको लिक्खी, देखी तो पढ़ी नहीं जाती
कहते हैं, ये तो क़िस्मत है
धरती पर रहने वालों की
पर मेरी क़िस्मत को तो इन ठंडे अंगारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
मानस में जो भी लहर उठी, वह चली किनारा छूने को
लहरों में जो भी नाव पड़ी, वह चली सहारा छूने को
जीवन की चंचल लहरों ने
मुझसे मझधर छुड़ाई तो
इस पार किनारों ने लूटा, उस पार किनारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
काया के वन में हवा चली, मुस्काई नयनों की कलियाँ
फिर साँस देह से निकल चली तो छोड़ गई सूनी गलियाँ
जीवन की डोली लचक चली
हर समय हवा के कंधों पर
अवसर पाकर पुरवैया के सुकुमार सहारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
वीरानों को आराम रहे या फूल खिले गुलज़ारों में
दुनिया की रचना ऐसी है हर माल बिका बाज़ारों में
मैं बाज़ारों में निकला तो
कौड़ी के मोल बिका सर्वस
तन-मन लूटा व्यवहारों ने, जीवन व्यापारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
अब जाना कितना अंतर है नज़रों के झुकने-झुकने में
हो जाती है कितनी दूरी थोड़ा-सा रुकने में
मुझ पर जो जग की नज़र पड़ी
वह ढाल बनी मेरे आगे
मैंने जो नज़र झुकाई तो फिर मुझे हज़ारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
जो दिया शाम को जलता है, वह सुबह-सुबह बुझ जाता है
मैं हँसता हूँ, फिर परवाना, किस लौ पर जलने आता है
पनघट की हलचल शीशा है
तो पत्थर मरघट की चुप्पी
दुनिया ने लूटे मज़े यहाँ, संसार मज़ारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
पूनम की उड़ती चुनरी ने चहुँ ओर मचा दी चहल-चहल
तिर गए दूध की गंगा में क्या राजमहल क्या ताजमहल
बादल गरजा तो उठी-गिरी
हर कुटी-अटारी पर बिजली
मिल गया जहाँ भी जो, उसको पश्चिमी बयारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
जग में जो भी दो जने मिले, उनमें रुपयों का नाता है
जाती है क़िस्मत बैठ यहाँ पतला काग़ज़ चल जाता है
संगीत छिड़ा है सिक्कों का
फिर मीठी नींद नसीब कहाँ
नींदें तो लूटी रुपयों ने, सपना झनकारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
आज़ादी हो कि ग़ुलामी, दोनों की ज़ंज़ीरें टूट गईं
कमज़ोर लुटे बलियों से दोनों को तदबीरें लूट गईं
तदबीरों से, ज़ंजीरों से
दीवारें भी कमज़ोर नहीं
पंडित-मुल्ले मुँह तका किए मज़हब दीवारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
वन में उड़ने वाला पंछी, घर लौट शाम को आता है
जग में जाने वाला पंछी तो घर भी पहुँच न पाता है
ससुराल चली जो डोली तो
बाराती द्वारे ले आए
नैहर को लौटी डोली तो बेदर्द कहारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
- पुस्तक : संकलित कविताएँ (पृष्ठ 132)
- संपादक : नंदकिशोर नंदन
- रचनाकार : गोपाल सिंह नेपाली
- प्रकाशन : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया
- संस्करण : 2013
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