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किसी से संकट नहीं है

kisi se sankat nahin hai

राघवेंद्र शुक्ल

राघवेंद्र शुक्ल

किसी से संकट नहीं है

राघवेंद्र शुक्ल

और अधिकराघवेंद्र शुक्ल

    दृष्टि का अनिकेत होना

    शब्द का संकेत होना

    एक मुट्ठी भर समय है,

    इस समय का रेत होना।

    किस तरह की यह घड़ी है

    ज़िंदगी बेसुध पड़ी है।

    मौन भी नीरव नहीं है

    सब अपरिचित, नव नहीं है

    मन के पिंजड़े से निकलना

    लग रहा संभव नहीं है।

    चाँदनी का भ्रम विसर्जित

    मौसमों का क्रम विसर्जित

    नभ को ताने खड़े रहने

    का समर्पित श्रम विसर्जित।

    हृदय का खंडहर सजाना

    यूँ हुआ था लौट आना।

    तपन तीखी, चाह में भी।

    कल्पतरु की छाँह में भी।

    अब तनिक भी रस नहीं है

    राह में भी, बाँह में भी।

    कामना निर्जन नहीं है

    किंतु अब वह मन नहीं है।

    ख़ूब बरसा है अँधेरा

    किसको-किसको नहीं टेरा?

    जिस जगह ही मैं नहीं था

    जग ने मुझको वहीं हेरा।

    कहें तो क्या कठिन रण था!

    किंतु, अद्भुत जागरण था।

    जागरण के श्वेत घेरे

    राह भटके-से सवेरे।

    निशा की उत्कट निकटता

    बंधु-से लगते अँधेरे।

    कोई भी प्रतिभट नहीं है।

    किसी से संकट नहीं है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राघवेंद्र शुक्ल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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