लहर सागर का नहीं शृंगार
lahar saagar ka nahii.n shri.ngaar
लहर सागर का नहीं शृंगार,
उसकी विकलता है;
अनिल अंबर का नहीं खिलवार,
उसकी विकलता है;
विविध रूपों में हुआ साकार,
रंगों में सुरंजित,
मृत्तिका का यह नहीं संसार,
उसकी विकलता है।
गंध कलिका का नहीं उद्गार,
उसकी विकलता है;
फूल मधुवन का नहीं गलहार,
उसकी विकलता है;
कोकिला का कौन-सा व्यवहार,
ऋतुपति को न भाया?
कूक कोयल की नहीं मनुहार,
उसकी विकलता है।
गान गायक का नहीं व्यापार,
उसकी विकलता है;
राग वीणा की नहीं झंकार,
उसकी विकलता है;
भावनाओं का मधुर आधार
साँसों से विनिर्मित,
गीत कवि-उर का नहीं उपहार,
उसकी विकलता है।
- पुस्तक : बच्चन के लोकप्रिय गीत (पृष्ठ 45)
- रचनाकार : हरिवंशराय बच्चन
- प्रकाशन : हिंद पॉकेट बुक्स
- संस्करण : 2004
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