आँखों पर भार बहुत है
ankhon par bhaar bahut hai
आँखों पर भार बहुत है
आँखें कुछ दिन से भारी हैं।
नींदों ने निगले चौराहे,
अनुकल्प चयन करना क्या है!
स्पष्ट दृष्टि के धुंधलेपन में,
दृश-यंत्र पहन करना क्या है!
यह पूर्व-लिखित पटकथा-बंध,
निज-बुद्धि कहन करना क्या है!
यह दौर बिके तर्कों का है,
प्रति-मर्श गहन करना क्या है!
हर 'शब्द' ऋणी लगते सबके,
हर 'गर्व' कहीं आभारी हैं।
आँखों के जल से सींच-सींच,
उगते पौधे संबंधों के।
हैं बँधे रीढ़ के धागों से
काग़ज़-पत्तर अनुबंधों के।
पवनों के पाँव जकड़ते हैं,
लंगड़े सैनिक तटबंधों के।
अनफ़िट किरीट का भय गढ़ते
हैं अनुच्छेद प्रतिबंधों के।
अब धर्म वही, अब सत्य वही,
जो कृत्य-कथ्य सरकारी हैं।
- रचनाकार : राघवेंद्र शुक्ल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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