Font by Mehr Nastaliq Web

कुलुपात्र

kulupatr

सियार इस गाँव उस गाँव घूम-घूमकर किसी का कबूतर तो किसी की मुर्ग़ी खाकर जी रहा था। इसी तरह साल-छह महीने बीत जाने पर उस इलाक़े के सारे कबूतर, मुर्ग़ी ख़त्म हो गए। उसके बाद वह घोंघा, केंकड़ा ढूँढ़कर खाने लगा। एक दिन सियार ने सुना कि नदी के उस पार बहुत सारी मुर्ग़ियाँ हैं। वे वहाँ कें-कें करते घूम-फिर रही हैं। यह ख़बर सुनकर वह ख़ुश होकर नाचने लगा। उसके बाद सोचा कि, “नदी पार करके कैसे उस पार पहुँचूँ? यह नदी तो मुश्किल कर रही है, नहीं तो ख़ूब मन भरकर खाने को मिलता।” कुछ भी हो, पहले नदी किनारे चलकर देखता हूँ—ऐसा सोचकर सियार नदी किनारे पहुँचा।

सियार ने देखा कि नदी के अंदर से कुछ तैरता हुआ रहा है। जो भी हो, पुकारता हूँ—ऐसा सोचकर उसने “हे मित्र!” कहकर पुकारा। उसकी पुकार सुनकर नदी में तैरते मगरमच्छ ने आँखों के कोने से देखा तो पाया एक सियार उसे बुला रहा है। क्यों बुला रहा है, चलकर पूछता हूँ—ऐसा सोचकर वह नदी के किनारे पहुँचा तो सियार बोला, “मित्र तुम्हारे पिता और मेरे पिता दोनों मित्र थे। इसलिए हम दोनों भी मित्र बन जाएँ इसीलिए पुकारा तुम्हें।” सियार का उद्देश्य मगरमच्छ को पता नहीं था, सो उसके इस साधु प्रस्ताव पर वह राज़ी हो गया।

उसी नदी के किनारे दोनों मित्र बन गए। उसके बाद सियार बोला, “मित्र! मुझे अगर नदी के उस पार तुम ले जाओगे तो मैं तुम्हें बहुत सारी मुर्ग़ियाँ खाने को दूँगा।” मुर्ग़ी का नाम सुनकर मगर भी ललचा गया और सियार की बात पर राज़ी होकर उसे अपनी पीठ पर बिठाकर नदी पार करा दी। किनारे पहुँचकर मगर को इंतज़ार करने के लिए कहकर सियार मुर्ग़ी लाने गया।

सियार ने ठीक जगह पर पहुँचकर देखा छोटी-बड़ी मुर्ग़ियों के जत्थे के जत्थे वहाँ घूम रहे हैं। मुर्ग़ी जितना खाओ ख़त्म नहीं होंगी। सियार मन-ही-मन ख़ुश हो गया। एक बार में जो मुर्ग़ियाँ पकड़ीं, उससे दो गट्ठर भर लिए। तुरंत नदी किनारे आकर एक गट्ठर मित्र को दिया और एक गट्ठर उसने खाया। दूसरे दिन भी ठीक उसी तरह से मुर्ग़ी लाने गया। पर इस बार गाँव वालों को पता चल गया। उन्होंने कुत्ता लेकर उसका पीछा किया। सियार ‘मर गया, मर गया’ चिल्लाते हुए एक गट्ठर मुर्ग़ी लेकर नदी किनारे लौटा।

ऐसे ही कुछ दिन बीत जाने पर सियार ने सोचा, “इतनी तकलीफ़ उठाकर, गाली-मार खाकर मुर्ग़ी मैं लाऊँगा और यह मित्र यहाँ बैठ कर आनंद से खाएगा। नहीं अब इसे सबक़ सिखाए बिना ठीक नहीं होगा।” ऐसा सोचकर वह गाँव की ओर गया। इस बार उसे दो-चार गट्ठर मुर्ग़ी मिली। मगरमच्छ जान पाए, उस तरह से सावधानी बरतते हुए नदी के किनारे बड़ी-बड़ी मुर्ग़ियों को छुपा दिया और कुछ चूज़े और एक गट्ठर गिट्टी लेकर किनारे पहुँचा और 'मित्र! मित्र!' की पुकार लगाई। मगरमच्छ तो कब से मित्र आएगा सोचकर उसका इंतज़ार कर रहा था। पुकार सुनते ही तुरंत आकर मुँह खोल दिया।

सियार ने पहले मगर के मुँह में दस-बारह चूज़े डाल दिए। उसके बाद साथ में लाया गट्ठर भर गिट्टी उसके मुँह में डाल दी। मगरमच्छ को पता नहीं चला। वह मुँह बंद करके सब निगल गया। दूसरे दिन सुबह हुई। मगरमच्छ सियार की चालाकी समझ गया। उस दिन से अब मगरमच्छ सियार के पास नहीं जाता है।

कुलुपात्र : सियार

स्रोत :
  • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 153)
  • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2017

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY