Font by Mehr Nastaliq Web

बेलवती कन्या

belavti kanya

एक राज्य में एक राजा था। उसका एक लड़का था। राजा उस लड़के की शादी नहीं करवा रहा था। वह लड़का मन में सोचता, “शायद आज मेरा विवाह पिता कर देंगे। या क्या पता कल करा दें शादी या फिर महीने बाद, या साल बीतने पर। इसी तरह राजकुमार इंतज़ार करता रहा। दिन बीतता, महीना बीतता, साल भी बीत जाता, पर राजा उसका विवाह नहीं करवाते। उस राजकुमार ने सोचा, जब पिता मेरा विवाह नहीं करवा रहे हैं, तो फिर जीने का कोई कारण नहीं है। जाता हूँ यहाँ से कहीं और चला जाता हूँ।”

ऐसा सोचकर राजकुमार ने तबेले से पंखवाला एक घोड़ा चुना, पगड़ी बाँधी, हथियार लिए, रुपया-पैसा कुछ पास रखकर विदेश चला। चलते-चलते एक बीहड़ जंगल आया। उस जंगल में कहीं कुछ नज़र नहीं रहा था। राजकुमार ने दूर-दूर तक अपनी नज़र दौड़ाई, तो एक लुहारिन को गोबर के कंडों की टोकरी ले जाते हुए देखा।

लुहारिन राजकुमार को देखकर बोली, “बेटा! तू तो राजकुमार की तरह दिख रहा है, तू क्यों इस देश में आया? अनआराधित देवी उधर एक परसुल लेकर बैठी है। अभी तुझे खा जाएगी। क्यों इस देश में आया है? अब तू वापस लौट जा।” राजकुमार बोला, “ठीक है मौसी। वह अनआराधित देवी मुझे खा लेगी तो खा ले, मैं तो मरने के लिए ही आया हूँ। मुझे इस बात से कोई डर नहीं है मौसी।”

ऐसा कहकर राजकुमार उसी रास्ते में आगे बढ़ा तो अनआराधित देवी आँखें चमकाते हुए राजकुमार से बोली, “अरे बेटा! तीन दिन की मुझ भूखी को तू आज भोजन के रूप में मिला, जल्दी आ, तुझे मैं खाऊँगी।” राजकुमार बोला, “खाना है तो खा ले।” अनआराधित देवी बोली, “तू घोड़े पर से नीचे उतर तो मैं तुझे खाऊँगी।”

राजकुमार बोला, “मैं कभी भी नीचे नहीं उतरूँगा।” अनआराधित देवी का वाहन तो घोड़ा है। फिर कैसे घोड़े पर से राजकुमार को लेकर खाएगी? इस तरह कई बार उससे नीचे उतरने के लिए कहते-कहते थक गई देवी, पर राजकुमार नीचे उतरा ही नहीं। आख़िर में देवी बोली, “तू तो बहुत चालाक निकला। तेरा साहस देखकर मैं प्रसन्न हुई। अपने मन का कोई वर माँग ले।”

राजकुमार बोला, “मैं क्या वर माँगूँ? मुझे मेरी मनपसंद कोई लड़की दो।” अनआराधित देवी बोली, “हे बेटा! पश्चिम की तरफ़ जाएगा तो राक्षसों का राज्य आएगा। तू जब उस राज्य में पहुँचेगा तो उस समय सारे राक्षस चरने-घूमने गए होंगे। तू तब यह करना कि उनका घर-द्वार झाडू करके साफ़ कर देना। उनके बर्तन माँज देना। दो सौ पतीले भात और सौ पतीले सब्ज़ी बना देना। शाम को राक्षस चरकर लौट आएँगे तो तू अटारी पर छुप जाना। ऐसा तू हर दिन करना। जिस दिन राक्षस यह कह दें कि, “अरे बेटा तू कौन है? हम तेरे से प्रसन्न हैं। तू कौन है? सामने आ।” तब तू गले में पुआल की रस्सी डालकर उनके पैरों पर गिर जाना। राक्षस जब कहेंगे, “हमसे क्या वर माँगना चाहता है, माँग, तब तू कहना इस घर में जो सुंदर कन्या है, उसे मुझे दे दो।”

राजकुमार ने यह बात सुनते ही पश्चिम की तरफ़ घोड़े का रुख़ कर दिया। चलते-चलते राक्षसों का राज्य मिला। जब वह राक्षसों के घर पहुँचा, तो वे चरने-घूमने गए थे। राजकुमार घर में घुसकर सारे बर्तन धो-माँजकर चमका दिए। घर-द्वार झाड़ू लगाई। फिर उन सब के लिए दो सौ पतीले भात, सौ पतीले सब्ज़ी पकाई। राजकुमार तो सुकुमार था। उसका आहार चिड़िया जितना था, उतना खाकर वह अटारी पर जाकर छुप गया।

राक्षस घूम-फिरकर चरकर वापस लौटे तो देखा घर साफ़-सुथरा है। बर्तन माँजे गए हैं, दो सौ पतीले भात और सौ पतीले सब्ज़ी पकाकर रखा हुआ है। राक्षसों ने सोचा किसने किया, फिर सबने मिलकर सारा खाना पोंछ-पोंछकर खा लिया।

फिर दूसरे दिन सुबह सभी राक्षस उठकर चरने गए तो राजकुमार बर्तन माँजकर झाड़बुहार कर, सब्ज़ी, भात पकाकर ख़ुद खाकर ऊपर अटारी में जाकर बैठ गया।

राक्षस घर लौटकर तुरंत खाना खाने बैठ गए। राजकुमार ऐसा सब दिन करता रहा। एक दिन राक्षस बोले, “अरे बेटा! तू कौन है? हमारी इतनी सेवा तूने की, इतना खाना खिलाया। तुमसे हम प्रसन्न हैं। तू कौन है? सामने आ।” राजकुमार पुआल की रस्सी गले में डालकर, दाँत में तिनका धरकर राक्षसों के पैरों पर दंडवत गिर गया।

राक्षसों ने कहा, “अरे बेटा! तू जो वर माँगता है माँग ले।” राजकुमार बोला, “तुम्हारे घर में जो सबसे सुंदर कन्या है, उसे मुझे दे दो।” राक्षसों ने कहा, “ओहो! तूने यह क्या माँगा? हमारी लाड़ली बेलवती को तूने माँग लिया? ठीक है बेटा, जब माँग लिया है, तो ले लेना। पर उसे साथ ले जाते हुए आधे रास्ते में उसे पुकारना मत। अपने नगर में पहुँचने पर “उठ बेलवती” कहकर पुकारना।”

राक्षसों ने यह कहकर राजकुमार को एक बेल दी और कहा, “इसके अंदर वह कन्या है।” राजकुमार ख़ुशी मन से बेल को लेकर अपने राज्य लौटने लगा। चलते-चलते राजमहल के पीछे के कुएँ के पास वह पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसके मन में आया कि बेलवती कन्या है भी कि नहीं। सच है या झूठ है जानने के लिए पुकारा, “उठ बेलवती।”

राजकुमार के पुकारते ही उस बेल के भीतर से एक दिव्य सुंदरी युवा कन्या पीतांबरी पहनकर, दिव्य अलंकार और पायल झनकाते निकल पड़ी। राजकुमार उस दिव्य सुंदरी बेलवती कन्या का रूप देखकर वहीं कुएँ के पास बेहोश होकर गिर गया। बेलवती कन्या यह देखकर रोते-बिलखते वहीं घोड़े को बाँधकर राजकुमार की पैर मालिश करने लगी।

उस बीच हुआ यों कि एक बेडौल भौंड़ी स्त्री ने आकर बेलवती कन्या का गला घोंटकर उसे कुएँ में फेंक दिया, और उसके गहने वस्त्र पहनकर राजकुमार के पैरों की मालिश करने लगी।

काफ़ी देर बाद राजकुमार की बेहोशी टूटी तो काली भौंड़ी एक औरत को अपना पैर घिसते पाया। राजकुमार ने मन में दुःखी होकर सोचा, “कितनी सुंदर कन्या को देखा था पर यह काली भौंड़ी रूप वाली कहाँ से आई?” राजकुमार तो उसके पहले वाले रूप पर विभोर हो गया था। इतना छल-कपट उसे पता नहीं था, सोचा, राक्षस नगरी की बेलवती कन्या है तो कोई भी रूप धर सकती है। राजकुमार फिर उस कुरूपा को लेकर राजमहल के अंदर गया।

नगर की जितनी प्रजा थी, सभी राजकुमार और नई दुलहन को देखकर ख़ूब ख़ुश हुए। आपस में सभी नई रानी के बारे में बात करने लगे। उसके दूसरे दिन, जिस कुएँ में बेलवती कन्या मरी पड़ी थी, वहाँ दो पद्म फूल खिले हुए थे। माली ने फूलों को देखा तो सोचा कि इसमें से एक राजकुमार को दूँगा और दूसरा नई बहू को दूँगा। ऐसा सोचकर माली ने दोनों फूलों को तोड़ा और एक फूल राजकुमार को और दूसरा फूल नई रानी को दिया।

नई बहूरानी ने राजकुमार से पूछा, “यह दो फूल कहाँ खिले थे?” राजकुमार बोला, “मुझे पता नहीं है, माली से पूछो।” फिर ख़ुद राजकुमार ने माली से पूछा, “अरे, हे माली! यह पद्म फूल कहाँ खिले थे?” माली बोला, “हुज़ूर! राजमहल के पीछे जो कुआँ है, उसी में खिले थे यह फूल।” माली से पूछकर राजकुमार बहूरानी से कहा, “हमारे कुएँ में खिले थे यह दोनों फूल।” उस काली भौंड़ी ने तो बेलवती कन्या को मारकर उसी कुएँ में डाल दिया था इसलिए उसका मन डर गया। सोचा बेलवती कन्या का ऐसा हुनर!

यह सोचकर जाकर राजकुमार से बोली, “इन दोनों फूलों को ले जाकर हमारे महल के पीछे वाले मैदान में टुकड़े-टुकड़े करके फेंक देना। तुम्हें ऐसा करते देखूँगी तब जाकर जीवन रखूँगी। अगर ऐसा नहीं करोगे तो अपने प्राण दे दूँगी।”

राजकुमार उसकी बात सुनकर डर गया और तुरंत मैदान में जाकर फूलों के टुकड़े-टुकड़े करके फेंक दिया। दूसरे दिन उस मैदान में एक बेल का पेड़ दिखा। माली सुबह जब उधर से गुज़रा तो देखा कि उस पेड़ में दो बेल फले हैं। माली ने बेल देखकर ख़ूब ख़ुश होते हुए सोचा, दोनों बेल तोड़ लेता हूँ। एक राजा को दूँगा, दूसरा मैं रख लूँगा।

माली ने ऐसा सोचकर दोनों बेल तोड़ लिए और एक राजा को देकर दूसरी मालिन को दे दी।

दोनों बेल का रंग बनहल्दी जैसा था। मालिन ने उस बेल को महाआनंद से अपने पास रख लिया। माली उससे बोला, “अरी! चल इस बेल को काटकर खाते हैं।” मालिन ने ख़ुश होकर घर के अंदर से कटार लाकर जैसे ही उसे काटने के लिए हाथ उठाया उस बेल के अंदर से बेलवती कन्या बोली, “मौसी री मौसी! इधर काटो, उधर काटो, बीच में मत काटो।”

बेल के अंदर से इंसानी आवाज़ सुनकर मालिन ने चौंककर बेल फेंक दी। तब बेलवती कन्या बोली, “मौसी! मैं बेलवती कन्या हूँ, बेल के अंदर रहती हूँ, तू मुझे रख ले। तेरे घर में राजा के घर से भी ज़्यादा धन-दौलत जाएगी।”

यह सुनते ही बेल को लाकर इधर-उधर से काटा तो दिव्य सुंदरी एक युवती उसके अंदर से निकलकर बोली, “मौसी! मैं तेरे घर में हूँ यह बात राजमहल में किसी से भी मत कहना। राजा गोबर गणेश है, जानेगा तो मुझे काट देगा। इतना कहकर वह बेलवती कन्या मालिन के घर रहने लगी। देखते-देखते मालिन के पास राजा से भी ज़्यादा धन-दौलत आने लगी। बेलवती कन्या रोज़ पौ फटने से पहले तालाब में नहाकर चली आती। एक दिन की बात है बेलवती कन्या की नींद खुलते-खुलते रात बीत चुकी थी। वह जल्दी-जल्दी तालाब से नहाकर लौट रही थी तभी अपने महल की छत पर टहल रही काली भौंड़ी ने उसे पहचान लिया और अपने कमरे में जाकर दरवाज़ा बंद करके सो गई। कितना भी पुकारा गया उसने किसी की भी बात नहीं सुनी।

राजकुमार ने जब आकर पुकारा तो बोली, “उस मालिन के घर एक लड़की है। तीन दिन हो गए वह मुझे मुँह चिढ़ाती है, गाली बकती है। उस लड़की को जब आप सूली दोगे तो मैं प्राण रखूँगी। जो तुरंत उसे सूली पर नहीं लटकाओगे तो मैं अभी अपनी जान दे दूँगी।”

यह बात राजा के कानों में पड़ी। राजा यह सुनकर ग़ुस्से से काँप उठे। मंत्री, सौदागर, सैन्य, सामंत, पहरेदार सबको साथ लेकर मालिन के घर पहुँचे। उस समय माली, मालिन दोनों साथ बैठे थे। राजा उनके पास पहुँचकर बोले, “माली! तेरे घर में एक छोकरी है। वह छोकरी रोज़ हमारे महल के अंदर जाकर हमारी नई बहू रानी को गाली बकती है और मुँह चिढ़ाती है। बता वह छोकरी तेरी क्या लगती है?” माली बोला, “हुज़ूर! वह छोकरी मेरी पत्नी की भतीजी है पर हुज़ूर वह तो कहीं नहीं जाती है।”

राजा बोले, “माली! जो तू उस छोकरी को सूली पर चढ़ाने के लिए आज हमें नहीं देगा तो तेरा गला काट दिया जाएगा।” माली-मालिन के पास और कोई चारा नहीं था। दोनों ने बहुत ही दुःखी मन से उस लड़की को वध स्थल के लिए राजा के साथ विदा कर दिया। राजा उस लड़की को ले जाकर फाँसी देकर वापस राजमहल पहुँचे।

बेलवती कन्या को जहाँ सूली दी गई थी, वहाँ एक रात के भीतर ही अपनेआप दीवार उठकर एक शिव मंदिर बन गया। दूसरे दिन सभी ने जब देखा तो पाया कि घिरी हुई दीवारों के अंदर एक मंदिर तैयार हो गया है। मंदिर के अंदर महादेव आवतरित हुए हैं। जिसने भी देखा वह अचंभित रह गया। कल तक तो यहाँ किसी घर-दरवाज़े का पता नहीं था। आज कहाँ से मंदिर बनकर उसमें शिव जी विराजमान हैं।

सब अचंभित हो गए। दूर-दूर से आदमी-औरत महादेव के दर्शन करने के लिए जुटने लगे। फिर सभी ने जाकर राजा को बताया, “हुज़ूर! जहाँ कल आपने उस कन्या को सूली दी थी, वहाँ एक बहुत बड़ी दीवार का घेरा बनकर उसके अंदर मंदिर बना है और शिव जी उसमें स्थापित हैं।”

राजा ने जब यह बात सुनी तो तुरंत वहाँ पहुँचे और देखा कि लोगों की बात सच है। तब राजा ने माली को बुलाकर कहा कि, “माली! तू हर दिन महादेव जी को नहला-धुलाकर फूल-चंदन देकर पूजा करना। हर रोज़ हमें देव का चरणामृत लाकर देना।'' माली उस दिन मंदिर पहुँचकर महादेव को नहला-धुलाकर फूल-चंदन से बैलपूजा से पूजा-अर्चना करके लौटा और चरणामृत लेकर राजा को दे आया। इसी तरह हर रोज़ वह माली महादेव को नहलाता-धुलाता, फूल बेलपत्ता चढ़ाकर पूजा करता। एक दिन माली पूजा कर रहा था तभी उस मंदिर के पास के एक पेड़ पर एक तोता और मैना बैठे थे। तोता बोला, “दीदी री दीदी! एक कहानी बता।” मैना बोली, “ठीक है भाई! सच कहूँ या झूठ? या जो आँखों से देखा उसे कहूँ?”

उस समय माली महादेव को नहला रहा था। बेलवती कन्या को काली भौंड़ी ने जो-जो दुःख-तकलीफ़ दी, सब एक-एक करके मैना ने तोते से खुलकर कहा। सब सुन लेने के बाद तोता बोला, “दीदी क्या इसका कोई हल नहीं है।”

मैना बोली, “अगर इसी पल राजा महादेव के सामने दाँतों में तिनका दबाकर पुआल की रस्सी गले में डालकर महादेव के सामने लेट जाएँ, तो तुरंत गर्भगृह के अंदर से बेलवती कन्या निकल आती।” माली मैना की बात सुनकर मंदिर के दीवार पर सारी बातें लिखता गया। सारी बातें लिखते-लिखते माली को देर हो गई। राजा चरणामृत पाने के लिए माली का इंतज़ार करते बैठे रहे। माली काँपते हुए राजा के पास पहुँचा और बोला, “सिर रहेगा तो मुँह खोलूँगा।”

राजा बोले, “बता क्या बात है?” माली बोला, हुज़ूर! महादेव मंदिर में एक बार आप ख़ुद पहुँचिए। राजा सदलबल मंदिर पहुँचे। माली ने जो कुछ दीवार पर लिखा था उसे राजा को दिखाया। राजा पुआल की रस्सी गले में डालकर, महादेव के सामने गिर गए। उनके गिरते ही तुरंत बेलवती कन्या गर्भगृह से दिव्य रूप लेकर पीतांबरी पहने, अलंकारों से सजी निकल आई। राजा ख़ुशी-ख़ुशी बेलवती कन्या को साथ लेकर राजमहल लौट आए।

राज्य भर में जय-जय का नारा गूँजने लगा। राजा ने काली भौंड़ी को सूली दे दी। राजकुमार का विवाह बेलवती कन्या के साथ कर दिया गया। नई रानी को लेकर राजकुमार ने अपना घर-संसार बसाया।

मेरी बात बस इतनी। फूल खिले केतकी कितनी!

स्रोत :
  • पुस्तक : ओड़िशा की लोककथाएँ (पृष्ठ 137)
  • संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2017
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY