यह कहानी उस समय की है जब बस्तर के दक्षिणी भाग में और भी घना जंगल पाया जाता था। उस घने जंगल में सभी तरह के पशु और मनुष्य मिल-जुल कर रहते थे। जंगल के बीच में ही मनुष्य खेती करते थे और उनके पालतू पशु, जंगली पशुओं के साथ हिल-मिलकर रहते-खाते थे। वे दिन आजकल के दिनों से बिलकुल अलग थे। उन दिनों झरने गाना गाते थे और पेड़ राहगीरों पर पत्तों से पंखा झलते थे। जंगल में हज़ारों पक्षी भी रहते थे जो सुबह से शाम तक गाना गाते और यहाँ-वहाँ उड़ते रहते थे।
उसी जादुई जंगल में एक गाय रहती थी और एक शेरनी भी। दोनो में घनिष्ठ मित्रता थी। दोनों साथ-साथ खाती-पीती और घूमती थीं। उन दिनों शेर-शेरनी शाक-भाजी भी खाते थे। उन दिनों की एक और विशेषता यह भी थी कि शेरनी बछड़े को जन्म दे सकती थी और गाय शावक को। साथ-साथ घूमने वाली इन सहेलियों के संदर्भ में भी कुछ ऐसा ही था। गाय के पेट से शावक ने जन्म लिया था और शेरनी के पेट से बछड़े ने। गाय अपने शावक को बहुत प्रेम करती थी और शेरनी अपने बछड़े को दुलारती रहती थी। गाय और शेरनी एक-दूसरे के बच्चों को भी बहुत प्रेम करती थीं। शावक और बछड़े में भी घनिष्ठ मित्रता थी। वे दोनों साथ-साथ खेलते, खाते और घूमते थे।
एक दिन शेरनी और गाय एक खेत में चरने गईं। वहाँ उन्हें एक खीरा फला हुआ दिखा। खीरा देखकर शेरनी ने गाय से कहा, ‘बहन, यह खीरा देखकर मेरे मुँह में पानी आ गया है। अब तो मैं इसे खाए बिना नहीं रह सकती हूँ।’
‘हाँ, शेरनी बहन, मेरा भी यही हाल है। जैसे ही मैंने इस खीरे को देखा वैसे ही मेरा मन इसे खाने को ललच उठा है।’ गाय ने कहा।
‘अगर ऐसा है तो हम इस खीरे के दो टुकड़े कर लेते हैं, एक टुकड़ा तुम खा लो और एक टुकड़ा में खा लेती हूँ। आख़िर हम सहेलियाँ हैं और सदा मिल-बाँटकर खाती हैं।’ शेरनी ने कहा।
यह सुनकर गाय ने शेरनी की बात का समर्थन किया।
इसके बाद शेरनी और गाय ने खीरे को बेल से तोड़ा और उसके दो बराबर टुकड़े किए। एक टुकड़ा गाय ने लिया और दूसरा शेरनी ने। शेरनी ने अपने हिस्से का पूरा खीरा खा लिया जबकि गाय ने अपने हिस्से के खीरे का एक टुकड़ा अपने शावक के लिए बचा लिया। इसके बाद दोनों सहेलियाँ देर तक खेत में इधर-उधर चरती रहीं।
घर लौटने पर गाय ने साथ लाए खीरे के टुकड़े अपने शावक को खाने के लिए दिया। शावक ने बड़े चाव से उस टुकड़े को खाया। इसके बाद शावक अपने मित्र बछड़े के साथ खेलने जा पहुँचा।
‘अब कौन-सा खेल खेला जाए?’ बछड़े ने शावक से पूछा।
‘तुम सोचो कि कौन-सा खेल खेलना है? मैं तो थेड़ी देर आराम से बैठूँगा।’ शावक ने कहा।
‘लो, अभी तो हमने खेला भी नहीं और तुम थक गए। दाम देने से डरते हो क्या?’ बछड़े ने शावक से कहा।
‘नहीं, मैं दाम देने से नहीं डरता हूँ लेकिन क्या तुम सुस्ताना नहीं चाहते हो?’ शावक ने बछड़े से पूछा।
‘नहीं तो, भला मैं क्यों सुस्ताना चाहूँगा?’ बछड़े ने चकित होकर पूछा।
‘अरे? क्या तुमने अपना खीरा नहीं खाया है? क्या तुमने उसे बाद में खाने के लिए बचा रखा है?’ शावक ने बछड़े से पूछा।
‘खीरा? कैसा खीरा?’ बछड़े ने चकित होकर पूछा।
‘खीरा मतलब खीरा! क्या तुम्हारी माँ ने तुम्हें नहीं दिया? ज़रूर वह तुम्हें बाद में देने वाली होगी।’ शावक ने बछड़े से कहा।
खीरे का नाम सुनकर बछड़े के मुँह में पानी आ गया। वह दौड़ा-दौड़ा अपनी माँ शेरनी के पास पहुँचा। शेरनी ने उसे देखा तो दुलार भरे स्वर में पूछने लगी, ‘क्या बात है? आज तू जल्दी खेलकर लौट आया! स्वास्थ्य तो ठीक है न तेरा?’
‘हाँ माँ, ठीक है। मैं अभी फिर खेलने जाऊंगा मगर पहले तुम मुझे वह खीरा दे दो जो तुम मेरे लिए लाई हो।’ बछड़े ने शेरनी ने कहा।
‘कौन-सा खीरा? मैं कोई खीरा नहीं लाई हूँ।’
‘तुम ज़रूर लाई हो माँ!’
‘लेकिन बेटा मैं खीरा नहीं लाई हूँ!’
‘तुम झूठ बोलती हो।’
‘नहीं बेटा, मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ। मैं सचमुच खीरा नहीं लाई हूँ।’
‘ऐसा क्यों? मेरे दोस्त शावक के लिए उसकी माँ खीरा लाई है। तुम तो गाय मौसी के साथ खेत गई थीं। ज़रूर तुमने अकेले खीरा खा लिया होगा।’ बछड़े ने नाराज़ होते हुए कहा।
‘हाँ बेटा, बात तो सच है। मुझे बहुत ज़ोर की भूख लगी थी। तभी मुझे खीरा दिखाई दिया। गाय को भी भूख लगी थी। इसलिए हम दोनों ने खीरे के दो टुकड़े किए और खा लिए।’ शेरनी ने समझाते हुए बताया।
‘तुम झूठ बोलती हो! गाय मौसी ने खीरा नहीं खाया। वह अपने बेटे को बहुत प्यार करती है। वह अपने बेटे के लिए खीरा लेकर आई मगर तुम मुझे प्यार नहीं करती हो इसीलिए तुम मेरे लिए खीरा नहीं लाई।’
‘नहीं बेटा, तुमको धोखा हुआ है। मैंने स्वयं देखा था कि गाय ने अपने हिस्से का खीरा खा लिया था।’
‘नहीं मुझे कोई धोखा नहीं हुआ। मुझे शावक ने ख़ुद बताया कि उसकी माँ उसके लिए खीरा लाई थी। मगर तुम मेरे लिए नहीं लाई ऐसा क्यों किया तुमने? तुम जानती हो कि मुझे खीरा बहुत पसंद है। मुझे खीरा चाहिए। अभी और इसी समय।’ बछड़ें ने रोते और पैर पटकते हुए कहा।
‘देख बेटा, अब आज इस समय तो खीरा नहीं मिल सकता है। लेकिन कल तेरे लिए खीरा अवश्य लाऊँगी।’
बछड़ा बहुत देर तक हठ करता रहा, रोता रहा। बेटे की यह दशा देखकर शेरनी को गाय पर क्रोध आया और वह गाय के पास जाकर बोली, ‘देखो बहन, ये तुमने ठीक नहीं किया। अपने बेटे के लिए खीरा लाना था तो मुझे भी बता देती। मैं भी अपने बेटे के लिए खीरा ले आती। मेरे बेटे को इस बात का पता चला तो वह रोए जा रहा है। तुमने मेरे बेटे को दुख पहुँचाया है।’
‘मैंने ऐसा जानबूझ कर नहीं किया। तुम्हें याद होगा कि तुमने अपना हिस्सा मुझसे पहले खा लिया था। मैंने बाद में खाना शुरू किया था। खाते समय अचानक मुझे यह सूझा कि इतना स्वादिष्ट खीरा तो अपने बेटे को भी खिलाना चाहिए। बस, उसी समय मैंने खीरे का एक छोटा-सा टुकड़ा अपने शावक के लिए रख लिया था।’
‘मैं कुछ नहीं जानती! तुमने सहेली होकर मुझसे यह बात छिपाई। यह बहुत ग़लत है।’
‘ठीक है, मुझसे ग़लती हो गई। मुझे क्षमा कर दो।’
‘ठीक है, अब तुम क्षमा माँग रही हो तो मैं क्षमा कर देती हूँ। कल हम चरने कहाँ जाएँगी?’ शेरनी ने सामान्य होते हुए पूछा।
‘कल हम मैदान में चरने चलेंगी।’
‘ठीक है। लेकिन देखो, आइंदा अपने बेटे के लिए कुछ खाने का रखने से पहले मुझे बता देना।’
‘ठीक है। मैं ध्यान रखूँगी।’ गाय ने विश्वास दिलाया।
दूसरे दिन गाय और शेरनी घास चरने चल पड़ीं। दोनों चलते-चलते थोड़ा आगे-पीछे हो गईं। शेरनी पीछे, गाय आगे। शेरनी जब मैदान में पहुँची तो गाय नहीं दिखाई दी। उसने सोचा कि हो सकता है कि वह किसी दूसरे रास्ते से धीरे-धीरे आ रही हो शेरनी मैदान में चरने लगी और गाय की प्रतीक्षा करने लगी। बहुत देर हो गई किंतु गाय नहीं आई। शेरनी को उसकी चिंता हुई। वह घास चरना छोड़कर गाय को ढूँढ़ने चल पड़ी। शेरनी मैदान से बाहर निकलकर भाजी के खेत में पोखर के पास गई।
गाय कहाँ चली गई? यह सोचती हुई शेरनी उसे ढूँढ़ ही रही थी कि उसे गाय चिउर भाजी के खेत में दिखाई दी। शेरनी गाय को सही-सलामत देखकर बहुत ख़ुश हुई मगर उसे आश्चर्य हुआ कि मैदान में चरने की बात हुई थी तो गाय यहाँ चिउर भाजी के खेत में क्यों चर रही है? शेरनी गाय के पास पहुँची।
‘मैं वहाँ मैदान में कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूँ और तुम हो कि यहाँ मज़े से भाजी चर रही हो।’ शेरनी ने गाय से कहा।
‘अरे, मैंने समझा कि तुमने मुझे यहाँ आते हुए देख लिया होगा और तुम यहीं आ जाओगी।
‘मैं कैसे देख लेती? तुम तो मुझसे बहुत आगे निकल आई थी और कल तुमने ही मैदान में घास चरने की बात की थी।’
‘हाँ, कहा तो था मैंने। अचानक याद आया कि चिउर भाजी के पत्ते अब खाने लायक बड़े हो गए होंगे इसलिए मैं इधर निकल आई।’ गाय ने भोलेपन से कहा।
‘तुमने अपनी बात झुठलाई और मुझे धोखा दिया। ये बात ठीक नहीं है। तुम तो यहाँ अच्छी स्वादिष्ट चिउर भाजी खा रही हो और वहां मुझे मैदान में सूखी घास चरने को भेज दिया।’ शेरनी ने क्रोधित होते हुए कहा।
‘यदि तुम ऐसा समझती हो तो ऐसा ही सही। अब कल हम दोनों यहीं चिउर भाजी के खेत में आएँगी, ठीक है न!’
‘हाँ, ठीक है!’ शेरनी ने कहा।
मगर रास्ते में सोचने लगी कि गाय ने जानबूझ कर ऐसा किया, स्वयं भाजी के खेत में रुक गई और मुझे मैदान में भेज दिया। उधर गाय ने इसलिए ऐसा किया था क्योंकि उसके मन में इस बात की फाँस लग गई थी कि शेरनी ने खीरे को लेकर उसे उलाहना दिया था। इस प्रकार दोनों सहेलियाँ मन ही मन एक-दूसरे के प्रति क्रोध करती हुई घर लौटीं।
अगले दिन गाय और शेरनी चिउर भाजी के खेत में चरने के लिए निकलीं किंतु गाय चिउर भाजी के खेत में जाने के बदले मैदान में घास चरने जा पहुँची। यह देखकर शेरनी को बहुत क्रोध आया। उसे लगा कि गाय उसे जानबूझ कर तंग कर रही है। जब वह मैदान में चरने जाने की बात करती है तो खेत में जा पहुँचती है और जब चिउर भाजी के खेत में जाने की बात करती है तो मैदान में जा पहुँचती है। शेरनी को विश्वास हो गया कि गाय उसे अब अपनी सहेली नहीं मानती है अन्यथा वह ऐसा छल भरा व्यवहार नहीं करती। शेरनीं का क्रोध इतना बढ़ा कि उसका स्वयं पर वश नहीं रहा और क्रोध के वशीभूत वह गाय को मारकर खा गई।
शाम को शेरनी जब घर लौटी तो उसके साथ गाय को न देखकर शावक ने शेरनी से पूछा, ‘शेरनी मौसी, मेरी माँ कहाँ है?’
‘मुझे क्या पता?’ शेरनी ने कहा।
‘वह तो तुम्हारे साथ चरने गई थी और तुम कहती हो कि तुम्हें पता नहीं?’ शावक ने आश्चर्य से पूछा।
‘नहीं, वह मेरे साथ नहीं गई थी। उसे तो मैंने सुबह से नहीं देखा।’ शेरनी ने झूठ बोलते हुए कहा।
‘लेकिन मैंने तो माँ उसे तुम्हारे साथ जाते देखा था।’ शावक हठ करते हुए बोला।
‘ओह, हाँ, याद आया! वह सुबह मेरे साथ ही निकली थी किंतु फिर मेरा साथ छोड़कर कहीं और चली गई।’ शेरनी ने फिर झूठ बोला। उसी समय शेरनी ने जम्हाई ली। शावक को शेरनी के मुँह में ख़ून लगा दिखाई दिया। वह समझ गया कि शेरनी ने उसकी माँ को मार दिया है।
‘मौसी, तुम झूठ बोल रही हो। तुम्हारे मुँह में लगा हुआ ख़ून इस बात का सबूत है कि तुमने मेरी माँ को मारकर खा लिया है। अब मैं अनाथ हो गया हूँ इसलिए अब तुम्हें मेरा लालन-पालन करना होगा।’ शावक ने शेरनी से कहा।
शावक की बात सुनकर शेरनी को अपने किए का पछतावा हुआ और उसने सच्चाई स्वीकार करते हुए शावक के लालन-पालन करने की शर्त स्वीकार कर ली। शेरनी अपने बछड़े के साथ शावक को भी पालने लगी। दोनों मित्र सगे भाइयों की तरह साथ-साथ रहने लगे।
एक दिन शावक ने बछड़े से कहा कि चलो शिकार खेलने चलते हैं। बछड़ा सहर्ष तैयार हो गया। धनुष-बाण और तलवार लेकर दोनों शिकार के लिए निकल पड़े। शावक ने जानबूझ कर अपनी तलवार घर में ही छोड़ दी। जंगल में पहुँचने पर शावक ने बछड़े से कहा कि वह अपनी तलवार घर में ही भूल आया है।
‘तुम आगे बढ़ो तब तक मैं दौड़ कर अपनी तलवार ले आता हूँ’ शावक बोला।
‘नहीं, मुझे अकेले डर लगेगा। तुम मेरी तलवार ले लो।’ बछड़े ने कहा।
‘मुझे तुम्हारी तलवार से शिकार करने में मज़ा नहीं आएगा। यदि तुम्हें आगे बढ़ने में डर लग रहा है तो तुम यहीं पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ताओ तब तक मैं घर से अपनी तलवार ले आता हूँ।’ शावक ने कहा।
‘ठीक है। जल्दी आना।’ बछड़े ने कहा और वहीं एक पेड़ की छाँव में बैठ गया।
शावक बछड़े को छोड़कर घर जा पहुँचा। उस समय शेरनी घर पर ही थी। शावक ने अपनी तलवार उठाई और शेरनी के सामने जा खड़ा हुआ।
‘तुमने मेरी माँ को मारा था, अब मैं तुम्हें मारूँगा।’ कहते हुए शावक ने शेरनी की गर्दन तलवार से काट दी। शेरनी को मारने के बाद शावक वापस बछड़े के पास पहुँचा। बछड़े ने तलवार में ख़ून लगा देखा तो वह समझ गया कि शावक ने उसकी माँ को मार डाला है।
‘तुमने मेरी माँ को मार दिया न?’ बछड़े ने पूछा।
‘नहीं, नहीं तो!’ शावक अचकचाया।
‘तुम्हारी तलवार में लगा ख़ून इस बात का सबूत है कि तुमने मेरी माँ को मार दिया है।’ बछड़ा बोला।
‘हाँ, तुम ठीक कहते हो। मैंने तुम्हारी माँ को मार दिया है।’ शावक ने स्वीकार करते हुए कहा।
‘ओह, ख़ैर, जो हुआ सो हुआ। मेरी माँ ने तुम्हारी माँ को मारा था जिसके बदले तुमने मेरी माँ को मार दिया। बात बराबर हो गई। हम दोनों भाई-भाई हैं अत: अब हम सारी बातें भुला कर शिकार खेलने चलते हैं।’ बछड़े ने शावक से कहा।
शावक और बछड़ा शिकार खेलने जंगल में आगे चल दिए। एक स्थान पर उनका शिकारी मनुष्यों से सामना हो गया। शिकारी मनुष्यों ने उन्हें पकड़ने का प्रयास किया। शावक तो भाग कर बच गया किंतु बछड़ा पकड़ा गया। शिकारी मनुष्यों ने बछड़े को मारकर खा लिया। शिकारी मनुष्यों के जाने के बाद शावक बछड़े को ढूँढ़ता हुआ उसी स्थान पर पहुँचा जहाँ शिकारियों ने बछड़े को मारकर खाया था। शावक ने देखा कि वहाँ बछड़े की अस्थियाँ पड़ी हुई थीं। यह देखकर शावक बहुत दुखी हुआ। उसे लगा कि बछड़े के मारे जाने के बाद अब इस दुनिया में उसका अपना कोई नहीं बचा है। शावक दुखी हो गया। उसने बछड़े की अस्थियाँ एकत्र कीं और लकड़ियों तथा पत्तों से आग जलाकर उसमें अस्थियाँ डाल दीं। इसके बाद वह स्वयं भी उस आग में कूद पड़ा। इस प्रकार शावक ने बछड़े के मारे जाने के दुख में अपनी जान दे दी।
जिस स्थान पर शावक ने आत्मदाह किया था उस स्थान पर बाँस के पेड़ उग आए। पेड़ अच्छे हरे-भरे हो गए। एक दिन एक बूढ़ा-बुढ़िया बाँस के पेड़ों की खोज करते हुए वहाँ आ पहुँचे। उन्हें टोकरी बनाने के लिए बाँसों की आवश्यकता थी। बूढ़े ने बाँसों को देखा तो बहुत ख़ुश हुआ। वे बाँस ठीक वैसे थे जैसे उसे चाहिए थे। बूढ़े ने कुल्हाड़ी उठाई और बाँस के पेड़ों पर प्रहार किया।
‘ठीक से काटो, नहीं तो मैं तुम्हें खा जाऊँगा।’ बाँस के पेड़ से आवाज़ आई।
बूढ़ा चौंका। वह ठिठक गया। फिर उसे लगा कि यह उसका भ्रम था। उसने फिर कुल्हाड़ी चलाई।
‘ठीक से काटो वरना मैं तुम्हें सींग मार दूँगा।’ बाँस के पेड़ से आवाज़ आई।
अब बूढ़ा डर गया। उसने पेड़ काटना बंद कर दिया और आँखें फाड़-फाड़ कर बाँस के पेड़ों की ओर देखने लगा।
‘तुम बाँस क्यों नहीं काट रहे हो? यदि तुम बाँस नहीं काटोगे तो हम टोकरियाँ किससे बनाएँगे?’ बुढ़िया ने बूढ़े से कहा।
‘ये बाँस बोलते हैं। मैं इन्हें नहीं काटूँगा।’ बूढ़े ने बुढ़िया से कहा।
‘तुम नहीं काटोगे तो मुझे काटने पड़ेंगे।’ बुढ़िया ने कहा।
बुढ़िया की बात सुनकर बूढ़े ने साहस बटोरा और बाँस काट लिए। इस बार बाँसों से कोई आवाज़ नहीं आई। बूढ़े ने बाँसों का गट्ठा बनाया और अपने सिर पर लादकर घर लौट पड़ा। घर पहुँचकर बुढ़िया ने बूढ़े से कहा कि अब इन बाँसों को फाड़ दो ताकि मैं टोकरी बना सकूँ। बूढ़े ने जैसे ही बाँसों को फाड़ा वैसे ही शावक और बछड़ा जो कि अदृश्य रूप में बाँसों में रह रहे थे, बाँसों से निकल कर बूढ़े की झोपड़ी में छिप गए। वे दोनों बूढ़े की झोपड़ी में रहने लगे। वे प्रतिदिन नदी में नहाने जाते। नदी में नहाते समय प्रतिदिन उनका एक बाल नदी में बह जाया करता। उसी नदी में कुछ दूर पर एक लड़की नहाने आया करती थी। उस लड़की का कोई भाई नहीं था। वह नदी से प्रार्थना किया करती थी कि उसे एक भाई मिल जाए।
एक दिन शावक और बछड़े ने सोचा कि चल कर देखा जाए कि उनके बाल बह कर कहाँ पहुँचते हैं? उसी समय लड़की शावक और बछड़े के बालों को अपनी हथेली पर रखकर नदी से प्रार्थना कर रही थी कि इतने सुनहरे और स्वस्थ बालों वाले लड़कों को मेरा भाई बना दो। शावक और बछड़े ने लड़की की बात सुनी। वे अदृश्य रूप में थे अत: लड़की को नहीं दिखे।
‘तुम इन बालों को लेकर बूढ़ा-बुढ़िया के पास जाओ जो फर्लांग भर आगे इसी नदी के किनारे रहते हैं। ये बाल बुढ़िया को दे देना और उससे टोकरी में रखे दो फूल ले लेना।’ शावक ने लड़की से कहा।
शावक तो दिखाई दिया नहीं अत: लकड़ी ने समझा कि यह बड़ेदेव ने उससे कहा है। लड़की बड़ेदेव की आज्ञा के अनुसार बुढ़िया के पास पहुँची। उसने बुढ़िया से दो फूल माँगे।
‘मेरे पास फूल नहीं हैं।’ बुढ़िया बोली।
‘तुम्हारे पास हैं। तुम अपनी टोकरी में देखो।’ लड़की ने कहा।
बुढ़िया ने टोकरी में देखा। उसमें दो सुंदर फूल रखे दिखे। बुढ़िया ने बालों के बदले फूल लड़की को दे दिए। लड़की फूल लेकर अपने घर चल पड़ी। रास्ते में अचानक दोनों फूल शावक और बछड़े में बदल गए। यह देखकर लड़की डर गई।
‘डरो नहीं, हम तुम्हारे भाई हैं।’ शावक और बछड़े ने लड़की से कहा।
इसके बाद लड़की, शावक और बछड़ा भाई बहन बनकर हिलमिलकर प्रेम से एक साथ रहने लगे।
ye kahani us samay ki hai jab bastar ke dakshini bhaag mein aur bhi ghana jangal paya jata tha. us ghane jangal mein sabhi tarah ke pashu aur manushya miljul kar rahte the. jangal ke beech mein hi manushya kheti karte the aur unke paltu pashu, jangli pashuon ke saath hil milkar rahte khate the. ve din ajkal ke dinon se bilkul alag the. un dinon jharne gana gate the aur peD rahgiron par patton se pankha jhalte the. jangal mein hazaron pakshi bhi rahte the jo subah se shaam tak gana gate aur yahan vahan uDte rahte the.
usi jadui jangal mein ek gaay rahti thi aur ek sherni bhi. dono mein ghanishth mitrata thi. donon saath saath khati piti aur ghoom theen. un dinon shaak bhaji bhi khate the. un dinon ki ek aur visheshata ye bhi thi ki sherni bachhDe ko janm de sakti thi aur gaay shavak ko. saath saath ghumne vali in saheliyon ke sandarbh mein bhi kuch aisa hi tha. gaay ke pet se shavak ne janm liya tha aur sherni ke pet se bachhDe ne. gaay apne shavak ko bahut prem karti thi aur sherni apne bachhDe ko dularti rahti thi. gaay aur sherni ek dusre ke bachchon ko bhi bahut prem karti theen. shavak aur bachhDe mein bhi ghanishth mitrata thi. ve donon saath saath khelte, khate aur ghumte the.
ek din sherni aur gaay ek khet mein charne gain. vahan unhen ek khira phala hua dikha. khira dekhkar sherni ne gaay ye kaha, ‘bahan, ye khira dekhkar mere munh mein pani aa gaya hai. ab to main ise khaye bina nahin rah sakti hoon. ’
‘haan, sherni bahan, mera bhi yahi haal hai. jaise hi mainne is khire ko dekha vaise hi mera man ise khane ko lalach utha hai. ’ gaay ne kaha.
‘agar aisa hai to hum is khire ke do tukDe kar lete hain, ek tukDa tum kha lo aur ek tukDa mein kha leti hoon. akhir hum saheliyan hain aur sada mil bantakar khati hain. ’ sherni ne kaha.
ye sunkar gaay ne sherni ki baat ka samarthan kiya.
iske baad sherni aur gaay ne khire ko bel se toDa aur uske do barabar tukDe kiye. ek tukDa gaay ne liya aur dusra sherni ne. sherni ne apne hisse ka pura khira kha liya jabki gaay ne apne hisse ke khire ka ek tukDa apne shavak ke liye bacha liya. iske baad donon saheliyan der tak khet mein idhar udhar charti rahin.
ghar lautne par gaay ne saath laye khire ke tukDe apne shavak ko khane ke liye diya. shavak ne baDe chaav se us tukDe ko khaya. iske baad shavak apne mitr bachhDe ke saath khelne ja pahuncha.
‘ab kaun sa khel khela jaye?’ bachhDe ne shavak se puchha.
‘tum socho ki kaun sa khel khelna hai? main to theDi der aram se baithunga. ’ shavak ne kaha.
‘lo, abhi to hamne khela bhi nahin aur tum thak ge. daam dene se Darte ho kyaa?’ bachhDe ne shavak se kaha.
‘nahin, main daam dene se nahin Darta hoon lekin kya tum sustana nahin chahte ho?’ shavak ne bachhDe se puchha.
‘nahin to, bhala main kyon sustana chahunga?’ bachhDe ne chakit hokar puchha.
‘are? kya tumne apna khira nahin khaya hai? kya tumne use baad mein khane ke liye bacha rakha hai?’ shavak ne bachhDe se puchha.
‘khira? kaisa khira?’ bachhDe ne chakit hokar puchha.
‘khira matlab khira! kya tumhari maan ne tumhein nahin diya? zarur wo tumhein baad mein dene vali hogi. ’ shavak ne bachhDe se kaha.
khire ka naam sunkar bachhDe ke munh mein pani aa gaya. wo dauDa dauDa apni maan sherni ke paas pahuncha. sherni ne use dekha to dular bhare svar mein puchhne lagi, ‘kya baat hai? aaj tu jaldi khelkar laut aaya! svasthya to theek hai na tera?’
‘haan maan, theek hai. main abhi phir khelne jaunga magar pahle tum mujhe wo khira de do jo tum mere liye lai ho. ’ bachhDe ne sherni ne kaha.
‘kaun sa khira? main koi khira nahin lai hoon. ’
‘tum zarur lai ho maan!’
‘lekin beta main khira nahin lai hoon!’
‘tum jhooth bolti ho. ’
‘nahin beta, main jhooth nahin bol rahi hoon. main sachmuch khira nahin lai hoon. ’
‘aisa kyon? mere dost shavak ke liye uski maan khira lai hai. tum to gaay mausi ke saath khet gai theen. zarur tumne akele khira kha liya hoga. ’ bachhDe ne naraz hote hue kaha.
‘haan beta, baat to sach hai. mujhe bahut zor ki bhookh lagi thi. tabhi mujhe khira dikhai diya. gaay ko bhi bhookh lagi thi. isliye hum donon ne khire ke do tukDe kiye aur kha liye. ’ sherni ne samjhate hue bataya.
‘tum jhooth bolti ho! gaay mausi ne khira nahin khaya. wo apne bete ko bahut pyaar karti hai. wo apne bete ke liye khira lekar aai magar tum mujhe pyaar nahin karti ho isi liye tum mere liye khira nahin lai. ’
‘nahin beta, tumko dhokha hua hai. mainne svayan dekha tha ki gaay ne apne hisse ka khira kha liya tha. ’
‘nahin mujhe koi dhokha nahin hua. mujhe shavak ne khud bataya ki uski maan uske liye khira lai thi. magar tum mere liye nahin lai aisa kyon kiya tumne? tum janti ho ki mujhe khira bahut pasand hai. mujhe khira chahiye. abhi aur isi samay. ’ bachhDen ne rote aur pair patakte hue kaha.
‘dekh beta, ab aaj is samay to khira nahin mil sakta hai. lekin kal tere liye khira avashya laungi. ’
bachhDa bahut der tak hath karta raha, rota raha. bete ki ye dasha dekhkar sherni ko gaay par krodh aaya aur wo gaay ke paas jakar boli, ‘dekho bahan, ye tumne theek nahin kiya. apne bete ke liye khira lana tha to mujhe bhi bata deti. main bhi apne bete ke liye khira le aati. mere bete ko is baat ka pata chala to wo roe ja raha hai. tumne mere bete ko dukh pahunchaya hai. ’
‘mainne aisa janbujh kar nahin kiya. tumhein yaad hoga ki tumne apna hissa mujhse pahle kha liya tha. mainne baad mein khana shuru kiya tha. khate samay achanak mujhe ye sujha ki itna svadisht khira to apne bete ko bhi khilana chahiye. bas, usi samay mainne khire ka ek chhota sa tukDa apne shavak ke liye rakh liya tha. ’
‘main kuch nahin janti! tumne saheli hokar mujhse ye baat chhipai. ye bahut ghalat hai. ’
‘theek hai, mujhse ghalati ho gai. mujhe kshama kar do. ’
‘theek hai, ab tum kshama maang rahi ho to main kshama kar deti hoon. kal hum charne kahan jayengi?’ sherni ne samanya hote hue puchha.
‘kal hum maidan mein charne chalengi. ’
‘theek hai. lekin dekho, ainda apne bete ke liye kuch khane ka rakhne se pahle mujhe bata dena. ’
‘theek hai. main dhyaan rakhungi. ’ gaay ne vishvas dilaya.
dusre din gaay aur sherni ghaas charne chal paDin. donon chalte chalte thoDa aage pichhe ho gain. sherni pichhe, gaay aage. sherni jab maidan mein pahunchi to gaay nahin dikhai di. usne socha ki ho sakta hai ki wo kisi dusre raste se dhire dhire aa rahi ho sherni maidan mein charne lagi aur gaay ki prtiksha karne lagi. bahut der ho gai kintu gaay nahin aai. sherni ko uski chinta hui. wo ghaas charna chhoDkar gaay ko DhunDhane chal paDi. sherni maidan se bahar nikalkar bhaji ke khet mein pokhar ke paas gai.
gaay kahan chali gai? ye sochti hui sherni use DhoonDh hi rahi thi ki use gaay chiur bhaji ke khet mein dikhai di. sherni gaay ko sahi salamat dekhkar bahut khush hui magar use ashcharya hua ki maidan mein charne ki baat hui thi to gaay yahan chiur bhaji ke khet mein kyon char rahi hai? sherni gaay ke paas pahunchi.
‘main vahan maidan mein kab se tumhari prtiksha kar rahi hoon aur tum ho ki yahan maze se bhaji char rahi ho. ’ sherni ne gaay se kaha.
‘are, mainne samjha ki tumne mujhe yahan aate hue dekh liya hoga aur tum yahin aa jaogi.
‘main kaise dekh leti? tum to mujhse bahut aage nikal aai thi aur kal tumne hi maidan mein ghaas charne ki baat ki thi. ’
‘haan, kaha to tha mainne. achanak yaad aaya ki chiur bhaji ke patte ab khane layak baDe ho ge honge isliye main idhar nikal aai. ’ gaay ne bholepan se kaha.
‘tumne apni baat jhuthlai aur mujhe dhokha diya. ye baat theek nahin hai. tum to yahan achchhi svadisht chiur bhaji kha rahi ho aur vahan mujhe maidan mein sukhi ghaas charne ko bhej diya. ’ sherni ne krodhit hote hue kaha.
‘yadi tum aisa samajhti ho to aisa hi sahi. ab kal hum donon yahin chiur bhaji ke khet mein ayengi, theek hai na!’
‘haan, theek hai!’ sherni ne kaha.
magar raste mein sochne lagi ki gaay ne janbujh kar aisa kiya, svayan bhaji ke khet mein rook gai aur mujhe maidan mein bhed diya. udhar gaay ne isliye aisa kiya tha kyonki uske man mein is baat ki phaans lag gai thi ki sherni ne khire ko lekar use ulahna diya tha. is prakar donon saheliyan man hi man ek dusre ke prati krodh karti hui ghar lautin.
agle din gaay aur sherni chiur bhaji ke khet mein charne ke liye niklin kintu gaay chiur bhaji ke khet mein jane ke badle maidan mein ghaas charne ja pahunchi. ye dekhkar sherni ko bahut krodh aaya. use laga ki gaay use janbujh kar tang kar rahi hai. jab wo maidan mein charne jane ki baat karti hai to khet mein ja pahunchti hai aur jab chiur bhaji ke khet mein jane ki baat karti hai to maidan mein ja pahunchti hai. sherni ko vishvas ho gaya ki gaay use ab apni saheli nahin manti hai anyatha wo aisa chhal bhara vyvahar nahin karti. shernin ka krodh itna baDha ki uska svayan par vash nahin raha aur krodh ke vashibhut wo gaay ko markar kha gai.
shaam ko sherni jab ghar lauti to uske saath gaay ko na dekhkar shavak ne sherni se puchha, ‘sherni mausi, meri maan kahan hai?’
‘mujhe kya pata?’ sherni ne kaha.
‘vah to tumhare saath charne gai thi aur tum kahti ho ki tumhein pata nahin?’ shavak ne ashcharya se puchha.
‘nahin, wo mere saath nahin gai thi. use to mainne subah se nahin dekha. ’ sherni ne jhooth bolte hue kaha.
‘lekin mainne to maan use tumhare saath jate dekha tha. ’ shavak hath karte hue bola.
‘oh, haan, yaad aaya! wo subah mere saath hi nikli thi kintu phir mera saath chhoDkar kahin aur chali gai. ’ sherni ne phir jhooth bola. usi samay sherni ne jamhai li. shavak ko sherni ke munh mein khoon laga dikhai diya. wo samajh gaya ki sherni ne uski maan ko maar diya hai.
‘mausi, tum jhooth bol rahi ho. tumhare munh mein laga hua khoon is baat ka sabut hai ki tumne meri maan ko markar kha liya hai. ab main anath ho gaya hoon isliye ab tumhein mera lalan palan karna hoga. ’ shavak ne sherni se kaha.
shavak ki baat sunkar sherni ko apne kiye ka pachhtava hua aur usne sachchai svikar karte hue shavak ke lalan palan karne ki shart svikar kar li. sherni apne bachhDe ke saath shavak ko bhi palne lagi. donon mitr sage bhaiyon ki tarah saath saath rahne lage.
ek din shavak ne bachhDe se kaha ki chalo shikar khelne chalte hain. bachhDa saharsh taiyar ho gaya. dhanush baan aur talvar lekar donon shikar ke liye nikal paDe. shavak ne janbujh kar apni talvar ghar mein hi chhoD di. jangal mein pahunchne par shavak ne bachhDe se kaha ki wo apni talvar ghar mein hi bhool aaya hai.
‘tum aage baDho tab tak main dauD kar apni talvar le aata hoon’ shavak bola.
‘nahin, mujhe akele Dar lagega. tum meri talvar le lo. ’ bachhDe ne kaha.
‘mujhe tumhari talvar se shikar karne mein maza nahin ayega. yadi tumhein aage baDhne mein Dar lag raha hai to tum yahin peD ke niche baithkar sustao tab tak main ghar se apni talvar le aata hoon. ’ shavak ne kaha.
‘theek hai. jaldi aana. ’ bachhDe ne kaha aur vahin ek peD ki chhaanv mein baith gaya.
shavak bachhDe ko chhoDkar ghar ja pahuncha. us samay sherni ghar par hi thi. shavak ne apni talvar uthai aur sherni ke samne ja khaDa hua.
‘tumne meri maan ko mara tha, ab main tumhein marunga. ’ kahte hue shavak ne sherni ki gardan talvar se kaat di. sherni ko marne ke baad shavak vapas bachhDe ke paas pahuncha. bachhDe ne talvar mein khoon laga dekha to wo samajh gaya ki shavak ne uski maan ko maar Dala hai.
‘tumne meri maan ko maar diya na?’ bachhDe ne puchha.
‘nahin, nahin to!’ shavak achakchaya.
‘tumhari talvar mein laga khoon is baat ka sabut hai ki tumne meri maan ko maar diya hai. ’ bachhDa bola.
‘haan, tum theek kahte ho. mainne tumhari maan ko maar diya hai. ’ shavak ne svikar karte hue kaha.
‘oh, khair, jo hua so hua. meri maan ne tumhari maan ko mara tha jiske badle tumne meri maan ko maar diya. baat barabar ho gai. hum donon bhai bhai hain atah ab hum sari baten bhula kar shikar khelne chalte hain. ’ bachhDe ne shavak se kaha.
shavak aur bachhDa shikar khelne jangal mein aage chal diye. ek sthaan par unka shikari manushyon se samna ho gaya. shikari manushyon ne unhen pakaDne ka prayas kiya. shavak to bhaag kar bach gaya kintu bachhDa pakDa gaya. shikari manushyon ne bachhDe ko markar kha liya. shikari manushyon ke jane ke baad shavak bachhDe ko DhunDhata hua usi sthaan par pahuncha jahan shikariyon ne bachhDe ko markar khaya tha. shavak ne dekha ki vahan bachhDe ki asthiyan paDi hui theen. ye dekhkar shavak bahut dukhi hua. use laga ki bachhDe ke mare jane ke baad ab is duniya mein uska apna koi nahin bacha hai. shavak dukhi ho gaya. usne bachhDe ki asthiyan ekatr keen aur lakaDiyon tatha patton se aag jalakar usmen asthiyan Daal deen. iske baad wo svayan bhi us aag mein kood paDa. is prakar shavak ne bachhDe ke mare jane ke dukh mein apni jaan de di.
jis sthaan par shavak ne atmadah kiya tha us sthaan par baans ke peD ug ki khoj karte hue vahan aa pahunche. unhen tokari banane ke liye banson ki avashyakta thi. buDhe ne banson ko dekha to bahut khush hua. ve baans theek vaise the jaise use chahiye the. buDhe ne kulhaDi uthai aur baans ke peDon par prahar kiya.
‘theek se kato, nahin to main tumhein kha jaunga. ’ baans ke peD se avaz aai.
buDha chaunka. wo thithak gaya. phir use laga ki ye uska bhram tha. usne phir kulhaDi chalai.
‘theek se kato varna main tumhein seeng maar dunga. ’ baans ke peD se avaz aai.
ab buDha Dar gaya. usne peD katna band kar diya aur ankhen phaaD phaaD kar baans ke peDon ki or dekhne laga.
‘tum baans kyon nahin kaat rahe ho? yadi tum baans nahin katoge to hum tokariyan kisse banayenge?’ buDhiya ne buDhe se kaha.
‘ye baans bolte hain. main inhen nahin katunga. ’ buDhe ne buDhiya se kaha.
‘tum nahin katoge to mujhe katne paDenge. ’ buDhiya ne kaha.
buDhiya ki baat sunkar buDhe ne sahas batora aur baans kaat liye. is baar banson se koi avaz nahin aai. buDhe ne banson ka gattha banaya aur apne sir par ladkar ghar laut paDa. ghar pahunchakar buDhiya ne buDhe se kaha ki ab in banson ko phaaD do taki main tokari bana sakun. buDhe ne jaise hi banson ko phaDa vaise hi shavak aur bachhDa jo ki adrishya roop mein banson mein rah rahe the, banson se nikal kar buDhe ki jhopDi mein chhip ge. ve donon buDhe ki jhopDi mein rahne lage. ve pratidin nadi mein nahane jate. nadi mein nahate samay pratidin unka ek baal nadi mein bah jaya karta. usi nadi mein kuch door par ek laDki nahane aaya karti thi. us laDki
ka koi bhai nahin tha. wo nadi se pararthna kiya karti thi ki use ek bhai mil jaye.
ek din shavak aur bachhDe ne socha ki chal kar dekha jaye ki unke baal bah kar kahan pahunchte hain? usi samay laDki shavak aur bachhDe ke balon ko apni hatheli par rakhkar nadi se pararthna kar rahi thi ki itne sunahre aur svasth balon vale laDkon ko mera bhai bana do. shavak aur bachhDe ne laDki ki baat suni. ve adrishya roop mein the atah laDki ko nahin dikhe.
‘tum in balon ko lekar buDha buDhiya ke paas jao jo pharlang bhar aage isi nadi ke kinare rahte hain. ye baal buDhiya ko de dena aur usse tokari mein rakhe do phool le lena. ’ shavak ne laDki se kaha.
shavak to dikhai diya nahin atah lakDi ne samjha ki ye baDedev ne usse kaha hai. laDki baDedev ki aagya ke anusar buDhiya ke paas pahunchi. usne buDhiya se do phool mange.
‘mere paas phool nahin hain. ’ buDhiya boli.
‘tumhare paas hain. tum apni tokari mein dekho. ’ laDki ne kaha.
buDhiya ne tokari mein dekha. usmen do sundar phool rakhe dikhe. buDhiya ne balon ke badle phool laDki ko de diye. laDki phool lekar apne ghar chal paDi. raste mein achanak donon phool shavak aur bachhDe mein badal ge. ye dekhkar laDki Dar gai.
‘Daro nahin, hum tumhare bhai hain. ’ shavak aur bachhDe ne laDki se kaha.
iske baad laDki, shavak aur bachhDa bhai bahan bankar hilamilkar prem se ek saath rahne lage.
ye kahani us samay ki hai jab bastar ke dakshini bhaag mein aur bhi ghana jangal paya jata tha. us ghane jangal mein sabhi tarah ke pashu aur manushya miljul kar rahte the. jangal ke beech mein hi manushya kheti karte the aur unke paltu pashu, jangli pashuon ke saath hil milkar rahte khate the. ve din ajkal ke dinon se bilkul alag the. un dinon jharne gana gate the aur peD rahgiron par patton se pankha jhalte the. jangal mein hazaron pakshi bhi rahte the jo subah se shaam tak gana gate aur yahan vahan uDte rahte the.
usi jadui jangal mein ek gaay rahti thi aur ek sherni bhi. dono mein ghanishth mitrata thi. donon saath saath khati piti aur ghoom theen. un dinon shaak bhaji bhi khate the. un dinon ki ek aur visheshata ye bhi thi ki sherni bachhDe ko janm de sakti thi aur gaay shavak ko. saath saath ghumne vali in saheliyon ke sandarbh mein bhi kuch aisa hi tha. gaay ke pet se shavak ne janm liya tha aur sherni ke pet se bachhDe ne. gaay apne shavak ko bahut prem karti thi aur sherni apne bachhDe ko dularti rahti thi. gaay aur sherni ek dusre ke bachchon ko bhi bahut prem karti theen. shavak aur bachhDe mein bhi ghanishth mitrata thi. ve donon saath saath khelte, khate aur ghumte the.
ek din sherni aur gaay ek khet mein charne gain. vahan unhen ek khira phala hua dikha. khira dekhkar sherni ne gaay ye kaha, ‘bahan, ye khira dekhkar mere munh mein pani aa gaya hai. ab to main ise khaye bina nahin rah sakti hoon. ’
‘haan, sherni bahan, mera bhi yahi haal hai. jaise hi mainne is khire ko dekha vaise hi mera man ise khane ko lalach utha hai. ’ gaay ne kaha.
‘agar aisa hai to hum is khire ke do tukDe kar lete hain, ek tukDa tum kha lo aur ek tukDa mein kha leti hoon. akhir hum saheliyan hain aur sada mil bantakar khati hain. ’ sherni ne kaha.
ye sunkar gaay ne sherni ki baat ka samarthan kiya.
iske baad sherni aur gaay ne khire ko bel se toDa aur uske do barabar tukDe kiye. ek tukDa gaay ne liya aur dusra sherni ne. sherni ne apne hisse ka pura khira kha liya jabki gaay ne apne hisse ke khire ka ek tukDa apne shavak ke liye bacha liya. iske baad donon saheliyan der tak khet mein idhar udhar charti rahin.
ghar lautne par gaay ne saath laye khire ke tukDe apne shavak ko khane ke liye diya. shavak ne baDe chaav se us tukDe ko khaya. iske baad shavak apne mitr bachhDe ke saath khelne ja pahuncha.
‘ab kaun sa khel khela jaye?’ bachhDe ne shavak se puchha.
‘tum socho ki kaun sa khel khelna hai? main to theDi der aram se baithunga. ’ shavak ne kaha.
‘lo, abhi to hamne khela bhi nahin aur tum thak ge. daam dene se Darte ho kyaa?’ bachhDe ne shavak se kaha.
‘nahin, main daam dene se nahin Darta hoon lekin kya tum sustana nahin chahte ho?’ shavak ne bachhDe se puchha.
‘nahin to, bhala main kyon sustana chahunga?’ bachhDe ne chakit hokar puchha.
‘are? kya tumne apna khira nahin khaya hai? kya tumne use baad mein khane ke liye bacha rakha hai?’ shavak ne bachhDe se puchha.
‘khira? kaisa khira?’ bachhDe ne chakit hokar puchha.
‘khira matlab khira! kya tumhari maan ne tumhein nahin diya? zarur wo tumhein baad mein dene vali hogi. ’ shavak ne bachhDe se kaha.
khire ka naam sunkar bachhDe ke munh mein pani aa gaya. wo dauDa dauDa apni maan sherni ke paas pahuncha. sherni ne use dekha to dular bhare svar mein puchhne lagi, ‘kya baat hai? aaj tu jaldi khelkar laut aaya! svasthya to theek hai na tera?’
‘haan maan, theek hai. main abhi phir khelne jaunga magar pahle tum mujhe wo khira de do jo tum mere liye lai ho. ’ bachhDe ne sherni ne kaha.
‘kaun sa khira? main koi khira nahin lai hoon. ’
‘tum zarur lai ho maan!’
‘lekin beta main khira nahin lai hoon!’
‘tum jhooth bolti ho. ’
‘nahin beta, main jhooth nahin bol rahi hoon. main sachmuch khira nahin lai hoon. ’
‘aisa kyon? mere dost shavak ke liye uski maan khira lai hai. tum to gaay mausi ke saath khet gai theen. zarur tumne akele khira kha liya hoga. ’ bachhDe ne naraz hote hue kaha.
‘haan beta, baat to sach hai. mujhe bahut zor ki bhookh lagi thi. tabhi mujhe khira dikhai diya. gaay ko bhi bhookh lagi thi. isliye hum donon ne khire ke do tukDe kiye aur kha liye. ’ sherni ne samjhate hue bataya.
‘tum jhooth bolti ho! gaay mausi ne khira nahin khaya. wo apne bete ko bahut pyaar karti hai. wo apne bete ke liye khira lekar aai magar tum mujhe pyaar nahin karti ho isi liye tum mere liye khira nahin lai. ’
‘nahin beta, tumko dhokha hua hai. mainne svayan dekha tha ki gaay ne apne hisse ka khira kha liya tha. ’
‘nahin mujhe koi dhokha nahin hua. mujhe shavak ne khud bataya ki uski maan uske liye khira lai thi. magar tum mere liye nahin lai aisa kyon kiya tumne? tum janti ho ki mujhe khira bahut pasand hai. mujhe khira chahiye. abhi aur isi samay. ’ bachhDen ne rote aur pair patakte hue kaha.
‘dekh beta, ab aaj is samay to khira nahin mil sakta hai. lekin kal tere liye khira avashya laungi. ’
bachhDa bahut der tak hath karta raha, rota raha. bete ki ye dasha dekhkar sherni ko gaay par krodh aaya aur wo gaay ke paas jakar boli, ‘dekho bahan, ye tumne theek nahin kiya. apne bete ke liye khira lana tha to mujhe bhi bata deti. main bhi apne bete ke liye khira le aati. mere bete ko is baat ka pata chala to wo roe ja raha hai. tumne mere bete ko dukh pahunchaya hai. ’
‘mainne aisa janbujh kar nahin kiya. tumhein yaad hoga ki tumne apna hissa mujhse pahle kha liya tha. mainne baad mein khana shuru kiya tha. khate samay achanak mujhe ye sujha ki itna svadisht khira to apne bete ko bhi khilana chahiye. bas, usi samay mainne khire ka ek chhota sa tukDa apne shavak ke liye rakh liya tha. ’
‘main kuch nahin janti! tumne saheli hokar mujhse ye baat chhipai. ye bahut ghalat hai. ’
‘theek hai, mujhse ghalati ho gai. mujhe kshama kar do. ’
‘theek hai, ab tum kshama maang rahi ho to main kshama kar deti hoon. kal hum charne kahan jayengi?’ sherni ne samanya hote hue puchha.
‘kal hum maidan mein charne chalengi. ’
‘theek hai. lekin dekho, ainda apne bete ke liye kuch khane ka rakhne se pahle mujhe bata dena. ’
‘theek hai. main dhyaan rakhungi. ’ gaay ne vishvas dilaya.
dusre din gaay aur sherni ghaas charne chal paDin. donon chalte chalte thoDa aage pichhe ho gain. sherni pichhe, gaay aage. sherni jab maidan mein pahunchi to gaay nahin dikhai di. usne socha ki ho sakta hai ki wo kisi dusre raste se dhire dhire aa rahi ho sherni maidan mein charne lagi aur gaay ki prtiksha karne lagi. bahut der ho gai kintu gaay nahin aai. sherni ko uski chinta hui. wo ghaas charna chhoDkar gaay ko DhunDhane chal paDi. sherni maidan se bahar nikalkar bhaji ke khet mein pokhar ke paas gai.
gaay kahan chali gai? ye sochti hui sherni use DhoonDh hi rahi thi ki use gaay chiur bhaji ke khet mein dikhai di. sherni gaay ko sahi salamat dekhkar bahut khush hui magar use ashcharya hua ki maidan mein charne ki baat hui thi to gaay yahan chiur bhaji ke khet mein kyon char rahi hai? sherni gaay ke paas pahunchi.
‘main vahan maidan mein kab se tumhari prtiksha kar rahi hoon aur tum ho ki yahan maze se bhaji char rahi ho. ’ sherni ne gaay se kaha.
‘are, mainne samjha ki tumne mujhe yahan aate hue dekh liya hoga aur tum yahin aa jaogi.
‘main kaise dekh leti? tum to mujhse bahut aage nikal aai thi aur kal tumne hi maidan mein ghaas charne ki baat ki thi. ’
‘haan, kaha to tha mainne. achanak yaad aaya ki chiur bhaji ke patte ab khane layak baDe ho ge honge isliye main idhar nikal aai. ’ gaay ne bholepan se kaha.
‘tumne apni baat jhuthlai aur mujhe dhokha diya. ye baat theek nahin hai. tum to yahan achchhi svadisht chiur bhaji kha rahi ho aur vahan mujhe maidan mein sukhi ghaas charne ko bhej diya. ’ sherni ne krodhit hote hue kaha.
‘yadi tum aisa samajhti ho to aisa hi sahi. ab kal hum donon yahin chiur bhaji ke khet mein ayengi, theek hai na!’
‘haan, theek hai!’ sherni ne kaha.
magar raste mein sochne lagi ki gaay ne janbujh kar aisa kiya, svayan bhaji ke khet mein rook gai aur mujhe maidan mein bhed diya. udhar gaay ne isliye aisa kiya tha kyonki uske man mein is baat ki phaans lag gai thi ki sherni ne khire ko lekar use ulahna diya tha. is prakar donon saheliyan man hi man ek dusre ke prati krodh karti hui ghar lautin.
agle din gaay aur sherni chiur bhaji ke khet mein charne ke liye niklin kintu gaay chiur bhaji ke khet mein jane ke badle maidan mein ghaas charne ja pahunchi. ye dekhkar sherni ko bahut krodh aaya. use laga ki gaay use janbujh kar tang kar rahi hai. jab wo maidan mein charne jane ki baat karti hai to khet mein ja pahunchti hai aur jab chiur bhaji ke khet mein jane ki baat karti hai to maidan mein ja pahunchti hai. sherni ko vishvas ho gaya ki gaay use ab apni saheli nahin manti hai anyatha wo aisa chhal bhara vyvahar nahin karti. shernin ka krodh itna baDha ki uska svayan par vash nahin raha aur krodh ke vashibhut wo gaay ko markar kha gai.
shaam ko sherni jab ghar lauti to uske saath gaay ko na dekhkar shavak ne sherni se puchha, ‘sherni mausi, meri maan kahan hai?’
‘mujhe kya pata?’ sherni ne kaha.
‘vah to tumhare saath charne gai thi aur tum kahti ho ki tumhein pata nahin?’ shavak ne ashcharya se puchha.
‘nahin, wo mere saath nahin gai thi. use to mainne subah se nahin dekha. ’ sherni ne jhooth bolte hue kaha.
‘lekin mainne to maan use tumhare saath jate dekha tha. ’ shavak hath karte hue bola.
‘oh, haan, yaad aaya! wo subah mere saath hi nikli thi kintu phir mera saath chhoDkar kahin aur chali gai. ’ sherni ne phir jhooth bola. usi samay sherni ne jamhai li. shavak ko sherni ke munh mein khoon laga dikhai diya. wo samajh gaya ki sherni ne uski maan ko maar diya hai.
‘mausi, tum jhooth bol rahi ho. tumhare munh mein laga hua khoon is baat ka sabut hai ki tumne meri maan ko markar kha liya hai. ab main anath ho gaya hoon isliye ab tumhein mera lalan palan karna hoga. ’ shavak ne sherni se kaha.
shavak ki baat sunkar sherni ko apne kiye ka pachhtava hua aur usne sachchai svikar karte hue shavak ke lalan palan karne ki shart svikar kar li. sherni apne bachhDe ke saath shavak ko bhi palne lagi. donon mitr sage bhaiyon ki tarah saath saath rahne lage.
ek din shavak ne bachhDe se kaha ki chalo shikar khelne chalte hain. bachhDa saharsh taiyar ho gaya. dhanush baan aur talvar lekar donon shikar ke liye nikal paDe. shavak ne janbujh kar apni talvar ghar mein hi chhoD di. jangal mein pahunchne par shavak ne bachhDe se kaha ki wo apni talvar ghar mein hi bhool aaya hai.
‘tum aage baDho tab tak main dauD kar apni talvar le aata hoon’ shavak bola.
‘nahin, mujhe akele Dar lagega. tum meri talvar le lo. ’ bachhDe ne kaha.
‘mujhe tumhari talvar se shikar karne mein maza nahin ayega. yadi tumhein aage baDhne mein Dar lag raha hai to tum yahin peD ke niche baithkar sustao tab tak main ghar se apni talvar le aata hoon. ’ shavak ne kaha.
‘theek hai. jaldi aana. ’ bachhDe ne kaha aur vahin ek peD ki chhaanv mein baith gaya.
shavak bachhDe ko chhoDkar ghar ja pahuncha. us samay sherni ghar par hi thi. shavak ne apni talvar uthai aur sherni ke samne ja khaDa hua.
‘tumne meri maan ko mara tha, ab main tumhein marunga. ’ kahte hue shavak ne sherni ki gardan talvar se kaat di. sherni ko marne ke baad shavak vapas bachhDe ke paas pahuncha. bachhDe ne talvar mein khoon laga dekha to wo samajh gaya ki shavak ne uski maan ko maar Dala hai.
‘tumne meri maan ko maar diya na?’ bachhDe ne puchha.
‘nahin, nahin to!’ shavak achakchaya.
‘tumhari talvar mein laga khoon is baat ka sabut hai ki tumne meri maan ko maar diya hai. ’ bachhDa bola.
‘haan, tum theek kahte ho. mainne tumhari maan ko maar diya hai. ’ shavak ne svikar karte hue kaha.
‘oh, khair, jo hua so hua. meri maan ne tumhari maan ko mara tha jiske badle tumne meri maan ko maar diya. baat barabar ho gai. hum donon bhai bhai hain atah ab hum sari baten bhula kar shikar khelne chalte hain. ’ bachhDe ne shavak se kaha.
shavak aur bachhDa shikar khelne jangal mein aage chal diye. ek sthaan par unka shikari manushyon se samna ho gaya. shikari manushyon ne unhen pakaDne ka prayas kiya. shavak to bhaag kar bach gaya kintu bachhDa pakDa gaya. shikari manushyon ne bachhDe ko markar kha liya. shikari manushyon ke jane ke baad shavak bachhDe ko DhunDhata hua usi sthaan par pahuncha jahan shikariyon ne bachhDe ko markar khaya tha. shavak ne dekha ki vahan bachhDe ki asthiyan paDi hui theen. ye dekhkar shavak bahut dukhi hua. use laga ki bachhDe ke mare jane ke baad ab is duniya mein uska apna koi nahin bacha hai. shavak dukhi ho gaya. usne bachhDe ki asthiyan ekatr keen aur lakaDiyon tatha patton se aag jalakar usmen asthiyan Daal deen. iske baad wo svayan bhi us aag mein kood paDa. is prakar shavak ne bachhDe ke mare jane ke dukh mein apni jaan de di.
jis sthaan par shavak ne atmadah kiya tha us sthaan par baans ke peD ug ki khoj karte hue vahan aa pahunche. unhen tokari banane ke liye banson ki avashyakta thi. buDhe ne banson ko dekha to bahut khush hua. ve baans theek vaise the jaise use chahiye the. buDhe ne kulhaDi uthai aur baans ke peDon par prahar kiya.
‘theek se kato, nahin to main tumhein kha jaunga. ’ baans ke peD se avaz aai.
buDha chaunka. wo thithak gaya. phir use laga ki ye uska bhram tha. usne phir kulhaDi chalai.
‘theek se kato varna main tumhein seeng maar dunga. ’ baans ke peD se avaz aai.
ab buDha Dar gaya. usne peD katna band kar diya aur ankhen phaaD phaaD kar baans ke peDon ki or dekhne laga.
‘tum baans kyon nahin kaat rahe ho? yadi tum baans nahin katoge to hum tokariyan kisse banayenge?’ buDhiya ne buDhe se kaha.
‘ye baans bolte hain. main inhen nahin katunga. ’ buDhe ne buDhiya se kaha.
‘tum nahin katoge to mujhe katne paDenge. ’ buDhiya ne kaha.
buDhiya ki baat sunkar buDhe ne sahas batora aur baans kaat liye. is baar banson se koi avaz nahin aai. buDhe ne banson ka gattha banaya aur apne sir par ladkar ghar laut paDa. ghar pahunchakar buDhiya ne buDhe se kaha ki ab in banson ko phaaD do taki main tokari bana sakun. buDhe ne jaise hi banson ko phaDa vaise hi shavak aur bachhDa jo ki adrishya roop mein banson mein rah rahe the, banson se nikal kar buDhe ki jhopDi mein chhip ge. ve donon buDhe ki jhopDi mein rahne lage. ve pratidin nadi mein nahane jate. nadi mein nahate samay pratidin unka ek baal nadi mein bah jaya karta. usi nadi mein kuch door par ek laDki nahane aaya karti thi. us laDki
ka koi bhai nahin tha. wo nadi se pararthna kiya karti thi ki use ek bhai mil jaye.
ek din shavak aur bachhDe ne socha ki chal kar dekha jaye ki unke baal bah kar kahan pahunchte hain? usi samay laDki shavak aur bachhDe ke balon ko apni hatheli par rakhkar nadi se pararthna kar rahi thi ki itne sunahre aur svasth balon vale laDkon ko mera bhai bana do. shavak aur bachhDe ne laDki ki baat suni. ve adrishya roop mein the atah laDki ko nahin dikhe.
‘tum in balon ko lekar buDha buDhiya ke paas jao jo pharlang bhar aage isi nadi ke kinare rahte hain. ye baal buDhiya ko de dena aur usse tokari mein rakhe do phool le lena. ’ shavak ne laDki se kaha.
shavak to dikhai diya nahin atah lakDi ne samjha ki ye baDedev ne usse kaha hai. laDki baDedev ki aagya ke anusar buDhiya ke paas pahunchi. usne buDhiya se do phool mange.
‘mere paas phool nahin hain. ’ buDhiya boli.
‘tumhare paas hain. tum apni tokari mein dekho. ’ laDki ne kaha.
buDhiya ne tokari mein dekha. usmen do sundar phool rakhe dikhe. buDhiya ne balon ke badle phool laDki ko de diye. laDki phool lekar apne ghar chal paDi. raste mein achanak donon phool shavak aur bachhDe mein badal ge. ye dekhkar laDki Dar gai.
‘Daro nahin, hum tumhare bhai hain. ’ shavak aur bachhDe ne laDki se kaha.
iske baad laDki, shavak aur bachhDa bhai bahan bankar hilamilkar prem se ek saath rahne lage.
स्रोत :
पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 187)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।