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छोटी बहू

chhoti bahu

एक गाँव था। वहाँ एक बूढ़ा और बुढ़िया रहते थे। उनकी सात बेटियाँ थीं। छोटी बेटी अपनी बहनों में सबसे सुंदर थी जबकि शेष छः बहनों में कोई कोई अंग-दोष था। सातों बेटियाँ अलग-अलग एक-एक कोठरियों में रहती थीं। छोटी बहन की कोठरी बीच में थी। अंगदोष के कारण किसी भी बड़ी बहन का विवाह नहीं हो पा रहा था। जब भी कोई विवाह संबंध की बात करने आता तो छः बहनों को छोड़कर सबसे छोटी सातवीं बहन से विवाह करने की इच्छा प्रकट करता। इस बात से छहों बड़ी बहनों में अपनी छोटी बहन के प्रति ईर्ष्या पनपने लगी। भाग्य की बात है कि एक दिन छोटी बहन का विवाह तय हो गया। बूढ़ा-बुढ़िया ने सोचा कि अगर छोटी बेटी का विवाह तय हो रहा है तो छोटी का ही विवाह कर दिया जाए। यह देखकर शेष बहनों के मन में अपनी छोटी बहन के प्रति बैर भावना जाग उठी।

छोटी बहन के विवाह की धूम-धाम से तैयारियाँ होने लगीं। विवाह के दिन सभी बहनें जंगल गई और वहाँ उन्होंने फूलों का एक हार पिरोया। उस हार में उन बहनों ने एक विषैला साँप भी लपेट दिया। बाहर से बंद करके दससर्पयुक्त हार लेकर वे अपनी छोटी बहन के कमरे में पहुँची। उन्होंने फूलों का वह हार छोटी बहन के गले में पहना दिया। फिर उसे एक चौकी पर बिठा दिया। साथ ही, छोटी बहन के कमरे का दरवाज़ा बाहर से लगा दिया।

बारात जब दरवाज़े पर पहुँची तो छोटी के माता-पिता छोटी को बुलाने पहुँचे। पिता ने गीत गाते हुए कहा—

‘उठ-उठ बेटी तोरे लेगिन गजन-बजन

बेटी तोरे लेगिन गजन-बजन।’

—अर्थात् उठो उठो बेटी, तुम्हारी लगन के बाजे बजने लगे हैं।

इस पर छोटी बेटी ने अपने पिता से कहा कि वह नहीं उठ सकती है। वह तो उठकर द्वार भी नहीं खोल सकती है क्योंकि—

‘कइसे कइसे उठब आयो

दीदी तो नागिन कर हार पिंधाय देलक आयो,

नागिन कर हार पिंधाय देलक आयो।’

—अर्थात् मैं कैसे उठकर आऊँ? दीदी ने तो नागिन का हार पहना दिया है।

माता ने देखा कि बेटी पिता का कहना नहीं मान रही है तो उसने बेटी से आग्रह किया—

‘उठ-उठ बेटी तोरे लेगिन गजन-बजन

बेटी तोरे लेगिन गजन-बजन।’

—अर्थात् उठो-उठो बेटी, तुम्हारी लगन के बाजे बजने लगे हैं।

इस पर छोटी बेटी ने अपनी माता से कहा कि वह नहीं उठ सकती है क्योंकि—

‘कइसे कइसे उठब आयो

दीदी तो नागिन कर हार पिंधाय देलक आयो,

नागिन कर हार पिंधाय देलक आयो।'

—अर्थात् मैं कैसे उठकर आऊँ? दीदी ने तो नागिन का हार पहना दिया है।

माता-पिता ने समझा कि उनकी छोटी बेटी लगन मंडप में जाने में इसलिए संकोच कर रही है कि उसकी दीदियाँ अभी कुँवारी हैं और वह अपना ब्याह रचाने जा रही है। यह विचार करके छोटी के माता-पिता ने छोटी की बहनों को छोटी को बुलाने भेजा। बहनों ने सोचा कि यदि छोटी उठकर लगन मंडप की ओर जाएगी तो उसके हिलने-डुलने से माला में पिरोया हुआ साँप उसे काट लेगा और उसका ब्याह नहीं हो सकेगा। यह विचार आते ही एक-एक करके सभी बहनें छोटी के पास आकर उसे उठकर लगन मंडप में चलने को कहने लगीं।

‘उठ उठ बहिन तोरे लेगिन गजन-बजन

बहिन तोरे लेगिन गजन-बजन।’

—अर्थात् उठो-उठो बहन, तुम्हारी लगन के बाजे बजने लगे हैं।

इस पर छोटी बेटी ने अपनी एक-एक बहन से कहा कि वह नहीं उठ सकती है क्योंकि—

‘कइसे कइसे उठब दीदी,

रउरे तो नागिन कर हार पिंधाय देला,

नागिन कर हार पिंधाय देला।’

—अर्थात् मैं कैसे उठकर आऊँ? दीदी तुम्हीं ने तो मुझे नागिन का हार पहना दिया है।

जब छोटी की बहनें छोटी को लगन मंडप में ले जाने में सफल नहीं हुईं तो उन्होंने जाकर दूल्हे से निवेदन किया कि अब वही जाकर छोटी को मनाए और उसे लगन मंडप में ले आए। दूल्हे ने छोटी की बहनों का निवेदन स्वीकार कर लिया क्योंकि वह स्वयं छोटी के साथ जल्दी से जल्दी ब्याह रचाना चाहता था।

दूल्हा छोटी के कमरे के दरवाज़े पर पहुँचा और उसने छोटी से कहा कि वह उठकर दरवाज़ा खोले और उसके साथ लगन-मंडप में चले।

‘उठ-उठ छोटकी तोरे लेगिन गजन-बजन

छोटकी तोरे लेगिन गजन-बजन।’

—अर्थात् उठो-उठो छोटी, तुम्हारी लगन के बाजे बजने लगे हैं।

दूल्हे की बात सुनकर छोटी अपनी असमर्थता पर रो पड़ी। उसने दूल्हे से कहा—

‘कइसे-कइसे उठब संइया,

दीदी तो नागिन कर हार पिंधाय देलैंय हो,

नागिन कर हार पिंधाय देलैंय हो।’

—अर्थात् मैं कैसे उठकर आऊँ सैंया? दीदी ने मुझे नागिन का हार पहना रखा है।

दूल्हे ने जब छोटी की बात सुनी तो वह तुरंत समझ गया कि यदि छोटी अपने स्थान से उठेगी तो साँप उसे डँस लेगा और वह मर जाएगी। इस पर दूल्हे ने छोटी को कमरे से बाहर निकालने का निश्चय किया और वह छोटी के कमरे का दरवाज़ा तोड़ने लगा। दरवाज़ा मज़बूत था। दरवाज़ा तोड़े जाने की आवाज़ से साँप विचलित हो गया और इधर दरवाज़ा टूटा और उधर साँप ने छोटी को डंस लिया। साँप के डँसने से छोटी मर गई।

छोटी को मरा हुआ पाकर दूल्हा रो पड़ा। सब लोग छोटी के अंतिम संस्कार की तैयारियाँ करने लगे। किंतु दूल्हे ने उन्हें रोक दिया और वह छोटी की मृत देह को मिट्टी के एक घड़े में रखकर अपने घर की ओर चल पड़ा।

अपने घर पहुँचकर दूल्हे ने घड़े को एक कोने में रख दिया। दूल्हे की भाभी ने जब देखा कि उसका देवर जीवित वधू लाने के बदले वधू का मृत शरीर ले आया है तो उसे अच्छा नहीं लगा। वैसे भी भाभी का व्यवहार दूल्हे के प्रति अच्छा नहीं था। वह दूल्हे को भरपेट खाने को नहीं देती थी। कई-कई दिन उसे भूखा रखती थी। दूल्हे को घर-बाहर का अपना सारा काम स्वयं करना पड़ता था। दूल्हे की माँ भी उसकी कोई सहायता नहीं कर पाती थी। भाभी दूल्हे की माँ को भी बहुत सताती थी। दूल्हे की माँ ने सोचा था कि उसके छोटे बेटे की छोटी बहू आएगी तो उसके सारे क्लेश मिट जाएँगे। छोटी बहू आई तो, मगर जीवित नहीं मृत। इससे माँ को भी बहुत दुख हुआ। उसे लगा कि अब उसके छोटे बेटे को इसी तरह जीवन भर दुख-कष्ट झेलने पड़ेंगे और उसे भी अपनी बड़ी बहू की डाँट-फटकार सुन-सुनकर जीवन काटना पड़ेगा।

एक दिन दूल्हा अपना काम करके घर लौटा तो उसने पाया कि उसका सारा घरेलू काम किसी ने कर दिया है। घर बिलकुल साफ़-सुथरा है और सारी वस्तुएँ व्यवस्थित रखी हैं। यह देखकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसे समझ में नहीं आया कि सारा काम किसने किया। वह जानता था कि उसकी भाभी तो कभी उसके काम को हाथ भी नहीं लगाती है। उसे कुछ भी समझ में नहीं आया।

दूसरे दिन शाम को जब दूल्हा काम-धाम करके अपने घर लौटा तो उसने देखा कि आज भी उसका सारा घरेलू काम किसी ने कर दिया है। यहाँ तक कि उसके लिए भात पकाकर भी रख दिया है। यह सब देखकर उसे अत्यंत आश्चर्य हुआ।

दो-तीन दिन तक यही क्रम चलता रहा। अंतत: दूल्हे ने निश्चय किया कि वह इस रहस्य का पता लगा कर रहेगा कि उसके घरेलू काम कौन कर देता है? अगले दिन दूल्हे ने काम पर जाने का नाटक किया। वह घर से निकला और चार क़दम जाकर वापस गया। वापस आकर वह कमरे के एक कोने में छिप गया। तभी उसने देखा कि जिस घड़े में उसने छोटी की मृत देह को रखा हुआ था, उस घड़े से छोटी बाहर आई और घर का काम-काज करने लगी। दूल्हे को यह देखकर अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। एक पल वह छोटी को देखता रह गया फिर दूसरे ही पल उसने लपक कर छोटी की बाँह पकड़ ली।

‘मुझे छोड़ दो! मुझे वापस घड़े में जाने दो!’ छोटी ने अनुनय-विनय करते हुए दूल्हे से कहा।

‘क्यों छोड़ दूँ? एक बार में तुमको खो चुका हूँ अब दुबारा नहीं खोऊँगा। अब हम सदा साथ-साथ रहेंगे। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता हूँ।’ दूल्हे ने कहा और लात मारकर घड़े को फोड़ दिया।

घड़ा फूटते ही छोटी ने दूल्हे से कहा—‘मैं अपनी बहनों की ईर्ष्या के कारण उन्हीं के हाथों मारी गई और तुम्हारे प्रेम के कारण फिर से ज़िंदा हो गई। अब मैं तुम्हारे साथ रहूँगी लेकिन अगर तुम्हारी माँ को पता चला कि मैं फिर से ज़िंदा हो गई हूँ तो वह डर जाएगी। इसलिए मैं घर से बाहर नहीं निकलूँगी।’

‘ठीक है, तुम बाहर मत निकलना।’ दूल्हा भी मान गया।

इसके बाद दूल्हा जब काम पर जाता तो छोटी घर के अंदर रहती। एक दिन एक दही बेचने वाली उधर से निकली।

‘दही ले लो! दही ले लो!’ सुनकर छोटी ने खिड़की से बाहर झाँका। फिर दहीवाली को देखकर झट से अपना सिर अंदर कर लिया और खिड़की बंद कर ली। मगर दही वाली ने उसे देख लिया। उसी समय दूल्हे की माँ दही लेने बाहर निकली।

‘तुम्हारी छोटी बहू तो बहुत सुंदर है। तुमने उसे कमरे में क्यों बंद कर रखा है?’ दही वाली ने छोटी की प्रशंसा करते हुए छोटी की सास से पूछा।

‘ऐं? मेरी छोटी बहू को तुमने कहाँ से देख लिया? उसे तो आज तक मैंने भी नहीं देखा है।’ छोटी की सास दहीवाली की बातें सुनकर चकित रह गई।

‘तो क्या मैं झूठ बोल रही हूँ? जो तुम्हें मेरी बातों पर भरोसा नहीं है तो तुम स्वयं जाकर देख लो।’ दहीवाली तुनक कर बोली।

छोटी की सास को फिर भी विश्वास नहीं हो रहा था। इसलिए उसने दहीवाली से दही का मटका लिया और ‘दही ले लो! दही ले लो!' की आवाज़ लगाती हुई छोटी के कमरे की ओर चल पड़ी। छोटी ने सुना तो उसे लगा कि यह आवाज़ तो उस दहीवाली की नहीं है जो कुछ देर पहले आई थी। इतनी जल्दी ये दूसरी दहीवाली कौन-सी गई? जिज्ञासावश छोटी ने अपने कमरे की खिड़की खोली और बाहर झाँककर देखा। जैसे ही छोटी ने बाहर झाँका वैसे ही उसकी सास ने उसे देख लिया। सास उसे देखते ही प्रसन्नता के आवेग से मूर्छित होकर गिर पड़ी। तब छोटी अपने कमरे का दरवाज़ा खोलकर बाहर आई। उसने अपनी सास के चेहरे पर पानी के छींटे मारे। उसे होश में लाई और सहारा देकर अपने कमरे में लिवा लाई।

सास ने होश में आकर छोटी को जी भरकर देखा। उसकी ढेर सारी बलाएँ लीं। इसके बाद छोटी अपनी सास और अपने दूल्हे के साथ ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगी।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 1)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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