स्वामीभक्त कुत्ता

svamibhakt kutta

यह कहानी मंडला क्षेत्र के एक छोटे से गाँव की है जहाँ एक लमाना (छोटा व्यापारी अथवा दुकानदार) रहता था। उस लमाना की छोटी-सी दुकान थी। उसका एक पालतू कुत्ता था। वह कुत्ता अत्यंत स्वामीभक्त था। लमाना जहाँ जाता, कुत्ता भी वहाँ जाता। रात को कुत्ता लमाना के घर की चौकीदारी किया करता। लमाना भी कुत्ते को बहुत प्रेम करता था। वह उसे अपने पुत्रवत् मानता था। लमाना और कुत्ते में परस्पर अगाध स्नेह था।

एक बार लमाना को दुकान में बहुत घाटा हुआ और उसे क़र्ज़ लेने की आवश्यकता पड़ी। लमाना पास के एक दूसरे गाँव के साहूकार के पास क़र्ज़ लेने गया। लमाना के साथ-साथ उसका कुत्ता भी गया।

‘मैं तुम्हें क़र्ज़ देने को तो तैयार हूँ लेकिन तुम्हें क़र्ज़ के बदले कुछ बंधक या गिरवी रखना पड़ेगा।’ साहूकार ने लमाना से कहा।

लमाना के पास गिरवी रखने को भी कुछ बचा था। क़र्ज़ लिए बिना भी काम चलने वाला नहीं था। अत: बहुत सोच-विचार के बाद उसने कुत्ते को गिरवी रखने का निश्चय किया।

‘देखो भैया, मुझे किसी प्राणी को गिरवी के रूप में बंधक बनाकर अच्छा तो नहीं लगता है किंतु मैं साहूकारी के अपने उसूल भी नहीं तोड़ सकता हूँ इसलिए मैं तुम्हारा कुत्ता रख लेता हूँ लेकिन तुम इसे जल्दी से जल्दी छुड़ा ले जाना।’ साहूकार ने लमाना से कहा।

‘मैं भी इसके बिना नहीं रह सकता हूँ। ये मेरे बेटे जैसा है। मैं इसे हर हाल में जल्दी से जल्दी छुड़ा ले जाऊँगा।’ लमाना ने कहा और अपने कुत्ते को पुचकारकर, समझा-बुझा कर चला गया।

कुत्ता साहूकार के घर चौकीदारी करने लगा। एक दिन आधी रात को साहूकार के घर दो चोर घुसे। वे घातक हथियार लिए हुए थे। कुत्ते ने उन्हें देखा तो भौंका नहीं। चोरों ने आराम से साहूकार के घर चोरी की और सारा बहुमूल्य सामान एक पोटली में बाँध कर चल दिए। कुत्ते ने उन पर भौंकने के बदले उनका पीछा किया और उस स्थान तक गया जहाँ एक तालाब के किनारे पहुँचकर चोरों ने सामान की पोटली तालाब में फेंक दी ताकि बाद में वे आकर उसे ले जा सकें। चोर अपने रास्ते चले गए और कुत्ता साहूकार के घर लौट आया।

गहरी नींद में सोए साहूकार और उसके परिवार को चोरों द्वारा सामान ले जाने का पता ही नहीं चला। प्रात होने पर साहूकार के घर कोहराम मच गया।

‘मैं लुट गया! मैं बर्बाद हो गया!’ कहकर साहूकार विलाप करने लगा। उसे कुत्ते पर भी बड़ा क्रोध आया कि उसने चोरों के आने पर भौंका तक नहीं। लेकिन कुत्ता साहूकार की धोती पकड़ कर खींचने लगा ताकि साहूकार उसके साथ चले। साहूकार ने उसे बार-बार दुतकारा किंतु कुत्ता साहूकार का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करता रहा।

एक नौकर जो बहुत देर से कुत्ते की चेष्टाएँ देख रहा था, उसे लगा कि कुत्ता अवश्य कुछ जानता है और बताना चाहता है। नौकर ने साहूकार से कहा कि कुत्ता जहाँ ले जाना चाह रहा है, वहाँ एक बार जाकर देख लेना चाहिए। साहूकार को भी नौकर की बात जँची। वह कुत्ते के साथ चल पड़ा। पीछे-पीछे गाँव वालों की भीड़ चली। कुत्ता उन्हें तालाब के किनारे ले गया और पानी की ओर देखकर ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लगा। साहूकार ने कुछ तैराकों को तालाब में उतारा। तैराक तालाब के तल तक गए तो उन्हें एक पोटली मिली। वे उसे ऊपर ले आए। साहूकार ने पोटली खोली तो वह प्रसन्नता से रो पड़ा। उसके सभी बहुमूल्य सामान उसके सामने थे। साथ ही पोटली में दो घातक हथियार भी थे जिन्हें चोरों ने छिपाने के उद्देश्य से पोटली में बाँध कर पानी में डाल दिया था ताकि सुरक्षित समय में सबसे दृष्टि बचा कर पोटली को ले जाएँ और साथ ही अपने हथियार भी ले जाएँ।

यह देखकर साहूकार समझ गया कि कुत्ते ने हथियार देखकर नहीं भौंका होगा। यदि वह भौंकता तो साहूकार और उसके परिवार के लोग जाग जाते और चोर अपने घातक हथियारों से उन्हें घायल कर देते। साहूकार कुत्ते की चतुराई और स्वामीभक्ति देखकर गदगद हो उठा। कुत्ते के कारण वह, उसका परिवार और उसका सारा बहुमूल्य सामान सुरक्षित बच गया था। कुत्ते से प्रसन्न होकर साहूकार ने उसे ऋण-बंधन से मुक्त करने का निश्चय किया। साहूकार ने लमाना के नाम एक पत्र लिखा जिसमें उसने कुत्ते के कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए घोषित किया कि वह लमाना के सभी क़र्ज़े माफ़ कर रहा है और कुत्ते को ऋण-बंधन से मुक्त करके वापस लमाना के पास भेज रहा है। चिट्ठी उसने कुत्ते के गले में बाँध दी और कुत्ते को छोड़ दिया।

‘जाओ अपने मालिक के पास और उससे कहना कि मैंने तुम्हें और उसे ऋण के बंधन से मुक्त किया।’ साहूकार ने कुत्ते को विदा करते हुए कहा।

कुत्ता प्रसन्नता से भरकर अपने स्वामी लमाना से मिलने उसके गाँव की ओर दौड़ पड़ा। उधर लमाना भी अपने प्रिय कुत्ते के बिना व्याकुल था अत: उसने छोटा-मोटा व्यापार करके इतना पैसा जोड़ लिया था कि वह कुत्ते को छुड़ा सके। अपने कुत्ते को छुड़ाने के लिए लमाना पैसा लेकर साहूकार के गाँव की ओर रहा था।

अभी लमाना अपने गाँव से कुछ ही दूर पहुँचा था कि उसे अपना प्रिय कुत्ता सरपट भागता हुआ आता दिखाई दिया। पहले तो वह चकित हुआ फिर उसे यह देखकर लमाना को भ्रम हो गया कि उसका कुत्ता रस्सी तुड़ा कर भाग आया है और अब साहूकार सोचेगा कि लमाना ने उसके साथ धोखा किया तथा अपने कुत्ते को भगा ले गया। लमाना के मन में विचार आया कि देखो तो इधर मैं इस कुत्ते को छुड़ाने के लिए ख़ून-पसीना एक करके धन जुटा कर ला रहा हूँ और यह साहूकार को धोखा देकर भागा चला रहा है। साहूकार उसे कितना कृतघ्न समझेगा। पूरे बाज़ार में उसकी साख गिर जाएगी। इस कुत्ते ने उसे कहीं का नहीं रखा। इस कुत्ते को उसके किए का दंड देना ही होगा।

‘तू क्यों भागा चला रहा है? रे दुष्ट!’ लमाना ने चिल्ला कर कहा। यह इतना सोचकर ‘लमाना के मन में क्रोध की लहर दौड़ गई और उसने बिना कुछ सोचे-समझे कुत्ते को मारने के लिए अपनी लाठी कुत्ते की ओर फेंकी। दुर्भाग्यवश लाठी कुत्ते के सिर पर लगी और कुत्ते का सिर फट गया। जब तक लमाना कुत्ते के पास पहुँचता तब तक कुत्ता मर गया। अपने कुत्ते को अपने हाथों से मारकर लमाना विलाप कर उठा। वह कुत्ते को मात्र दण्डित करना चाहता था, उसके प्राण नहीं लेना चाहता था।

लमाना कुत्ते के शव को अपने गले से लगा कर रोने लगा। तभी उसे कुत्ते के गले में चिट्ठी बंधी दिखी। उसने चिट्ठी खोलकर पढ़ी तो उसका हृदय धक् से रह गया। उससे बहुत बड़ा अनर्थ हो गया था। उसने अपने स्वामीभक्त निर्दोष कुत्ते को मार डाला था। लमाना आजीवन पश्चाताप करता रहा और उसने कुत्ते का एक स्मारक बनवाया। इस स्मारक-स्थल पर आज भी प्रति वर्ष मेला लगता है। वह जब तक जीवित रहा तब तक सबको यही सीख देता रहा कि बिना सोचे-समझे कोई काम नहीं करना चाहिए। बिना सोचे-समझे काम करने से बाद में बहुत पछताना पड़ता है और फिर भी बिगड़ा हुआ काम नहीं सुधरता है।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 202)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए