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ख़ुद से अनजान चीता

khud se anjan chita

अन्य

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एक बार किसी मादा चीते ने भेड़ों के झुँड पर छलाँग लगाई। छलाँग लगाते ही उसके प्रसव पीड़ा हुई, उसने बच्चे को जन्म दिया और वहीं मर गई।

दयालु भेड़ों ने बच्चे को अपना दूध पिलाकर बड़ा किया। उन्हें घास खाते देखकर चीते का बच्चा भी घास खाने लगा। उनकी तरह वह भी मिमियाता। हालाँकि उसका मिमियाना कुछ अजीब होता। चीते का बच्चा दिखता तो चीते जैसा था, पर उसकी आदतें भेड़ों जैसी थीं।

एक दिन एक चीते की नज़र घास खाते चीते के बच्चे पर पड़ी। उसे अचंभा हुआ। बड़ा चीता और पास आया। उसे देखकर भेड़ें भाग गईं। चीते का बच्चा अकेला रह गया। डर के मारे वह मिमियाने लगा। बड़े चीते ने उससे मित्रता की और उसे झील पर ले गया। बोला, “पानी में अपना चेहरा देखो और फिर मुझे देखो! तुम हू-ब-हू मेरे जैसे हो। तुम भेड़ नहीं, चीते हो। चीते घास नहीं खाते, माँस खाते हैं।”

चीते के बच्चे को विश्वास नहीं हुआ। चीते ने उसे समझाया कि वह उससे भिन्न नहीं है। पर चीते के बच्चे ने माँस छुआ तक नहीं। वह वैसे ही घास खाता रहा और मिमियाता रहा। आख़िर एक दिन बड़े चीते ने उसे जबरन माँस चखाया। उसे वह बहुत अच्छा लगा। उस दिन से उसने मिमियाना और घास खाना छोड़ दिया। उसे यक़ीन हो गया कि वह भेड़ नहीं, चीता है। बड़े चीते के साथ वह उसी की तरह रहने लगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 189)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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