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अवधी लोकगीत : मति ठान्यो राम से बैर पिया

awadhi lokgit ha mati thanyo ram se bair piya

रोचक तथ्य

संदर्भ—मंदोदरी का रावण को समझाना।

मति ठान्यो राम से बैर पिया।।टेक।।

सोने कै लंका बनवायो, देउतन का बलिदान दिहा।

पवन बाँधि झाडू का देवायो, पानी मेघ के हाथ पिहा।

अइस जगत माँ कोऊ जनमा, जइसन तुम अन्धेर किहा।

सब सेखी एक दिन माँ जइहै, काहेन का घबड़ात पिया।।1।।

काहू का कछु दोष नहीं, तुमही सीता उत्पन्न किहा।

हे अभिमानी ख्याल करौ, साधुन से तुम दण्ड लिहा।

ओनके रकत से घड़ा भरायो, जाइ जनक पुर गाड़ि दिहा।

ओहि घड़े से सीता निकसीं, फिर सीतइ से लाग हिया।

सब परदा हम खोलि कहति हौं, तबहूँ नाहिं सुझाइ पिया।।2।।

तिनहुँ लोक कै उई मालिक हैं, जिनकै सीता है नारी।

चोरी कइकै हरि लइ आयो, दगा किहेउ उनसे भारी।

ओहि दिन कहाँ रही मरदई, जब गयउ जग्य माँ तुम हारी।

काउ कही कहूँ बूड़ि मरि जातिउ, तनिकउ नाहिं लजात पिया।।3।।

तुम सोचत हौ अथह समुन्दर, कइसे कोऊ पार पइहै।

उनके साथ माँ एक-एक जोधा, फाँदि समुन्दर का अहहैं।

दूसरे कै काउ बात कही, खुद भेद भभीषन बतलइहै।

चाहे पूछि लिहउ पंडितन से, हमरे कहे पतिआउ पिया।।4।।

मंदोदरी ने रावण को समझाया कि हे प्रिय! राम से बैर मत ठानना।।टेक।।

आपने सोने की लंका बनवाई और देवताओं का बलिदान दिया। पवन को बाँधकर आपने उससे झाडूँ दिलाया और मेघ के हाथों पानी पिया। संसार में आप जैसा क्रूर पैदा नहीं हुआ, जैसा आपने अंधेर किया। आपकी सब शेखी एक दिन में चली जाएगी, घबड़ाते क्यों हो।।1।।

किसी का कोई दोष नहीं है, आप ही ने सीता को जन्म दिया। हे अभिमानी! विचार कर, आपने साधु-संतों से दंड लिया। उनके रक्त से घड़ा भराया, जिसे जनकपुर ले जाकर भूमि में गाड़ दिया। उसी घड़े से सीता का जन्म हुआ, फिर आपका सीता से ही मन लग गया। मैं सारे रहस्य को स्पष्ट कहती हूँ, तब भी आपको नहीं सूझता।।2।।

वे (राम) तीनों लोकों के स्वामी हैं, जिनकी पत्नी सीता हैं। आप उन्हें चोरी से हर लाए, यह आपने उनसे भारी दग़ा किया। आपका पुरुषत्व उस दिन कहाँ रहा, जब आप धनुर्यज्ञ में हार गए। क्या कहूँ, कहीं डूबकर मर जाते, आप तनिक भी नहीं लजाते?।।3।।

आप सोचते हैं कि अथाह समुद्र कोई कैसे पार पाएगा। उनके साथ एक से एक योद्धा हैं, जो समुद्र को लाँघकर लंका आएँगे। मैं दूसरे की बात क्या कहूँ, स्वयं विभीषण भेद बतलाएँगे। यदि मेरी बात पर विश्वास हो तो आप ज्योतिषी पंडितों से पूछ लीजिए।।4।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 192)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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